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धर्मशास्त्र का इतिहास
है । " प्रो० के० वी० रंगस्वामी आयंगर ने कहा है कि मत्स्य० की बात ठीक है, क्योंकि नर्मदा वास्तव में लगभग १९९ ) । किन्तु दो योजन ( अर्थात् उनके मतानुसार कथन है कि नर्मदा अमरकण्टक से निकली है, जो कलिंग
८०० मील लम्बी है ( उनके द्वारा सम्पादित कल्पतरु, पृ० १६ मील) की चौड़ाई भ्रामक है। मत्स्य० एवं कूर्म० का देश का पश्चिमी भाग है । "
विष्णुपुराण ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई रात एवं दिन में और जब अन्धकारपूर्ण स्थान में उसे जाना हो तब 'प्रातः काल नर्मदा को नमस्कार, रात्रि में नर्मदा को नमस्कार ! हे नर्मदा, तुम्हें नमस्कार; मुझे विषधर सांपों से बचाओ' इस मन्त्र का जप करके चलता है तो उसे साँपों का भय नहीं होता।"
कूर्म० एवं मत्स्य ० में ऐसा कहा गया है कि जो अग्नि या जल में प्रवेश करके या उपवास करके ( नर्मदा के किसी तीर्थ पर या अमरकण्टक पर ) प्राण त्यागता है वह पुन: ( इस संसार में) नहीं आता । *"
टॉलेमी ने नर्मदा को 'नमडोज' कहा है ( पृ० १०२ ) । नर्मदा की चर्चा करनेवाले शिलालेखों में एक अति प्राचीन लेख है एरन प्रस्तरस्तम्भाभिलेख, जो बुधगुप्त के काल (गुप्त संवत् १६५ = ४८४-८५ ई०) का है। देखिए कांस इंस्क्रिप्शनम इण्डिकेरम (जिल्द ३, पृ० ८९ ) ।
नर्मदा में मिलने वाली कतिपय नदियों के नाम मिलते हैं, यथा कपिला (दक्षिणी तट पर, मत्स्य० १८६।४० एवं पद्म० १।१३।३५), विशल्या (मत्स्य० १८६ | ४६ == पद्म० २।३५-३९), एरण्डी ( मत्स्य० १९१।४२-४३ एवं पद्म० १ १ ८ ४४ ), इक्षु-नादी ( मत्स्य० १९१।४९ एवं पद्म० १।१८।४७ ), कावेरी ( मत्स्य० १८९।१२-१३ एवं पद्म ० १।१६।६ ) । बहुत-से उपतीर्थों के नाम आते हैं जिनमें दो या तीन का यहाँ उल्लेख किया जाएगा। एक है महेश्वरतीर्थ ( अर्थात् ओंकार), जहाँ से एक तीर द्वारा रुद्र ने बाणासुर की तीन नगरियाँ जला डालीं ( मत्स्य० १८८।२ एवं पद्म ० १।१५/२), शुक्ल तीर्थ ( मत्स्य० १९२।३ द्वारा अति प्रशंसित और जिसके बारे में यह कहा जाता है कि राजर्षि चाणक्य ने यहाँ सिद्धि प्राप्त की थी), भृगुतीर्थ ( जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है, जिसमें स्नान करने से स्वर्ग मिलता है और जहाँ मरने से संसार में पुनः लौटना नहीं पड़ता ), जामदग्न्य-तीर्थ ( जहाँ नर्मदा समुद्र में गिरती है और जहाँ भगवान् जनार्दन ने पूर्णता प्राप्त की) । अमरकण्टक पर्वत एक तीर्थ है जो ब्रह्महत्या के साथ अन्य पापों का मोचन करता है और यह विस्तार में एक योजन है (मत्स्य० १८९।८९ एवं ९८ ) । नर्मदा का अत्यन्त महत्वपूर्ण तीर्थ है माहिष्मती, जिसके स्थल के विषय में विद्वानों में मतभेद रहा है। अधिकांश लेखक यही कहते हैं कि यह ओंकार मान्धाता है जो इन्दौर से लगभग ४० मील दक्षिण नर्मदा में एक द्वीप है। इसका इतिहास पुराना है। बौद्ध ग्रन्थों में ऐसा आया
३९. योजनानां शतं साग्रं श्रूयते सरिदुत्तमा। विस्तारेण तु राजेन्द्र योजनद्वयमायता ।। कूर्म० (२/४०/१२ == मत्स्य ० १८६।२४-२५) । और देखिए अग्नि० ( ११३२ ) ।
४०. कलिंगदेशपश्चार्थे पर्वतेऽमरकण्टके । पुष्या च त्रिषु लोकेषु रमणीया मनोरमा ॥ कूर्म० (२।४०।९) एवं मत्स्य ० ( १८६ । १२) ।
४१. नर्मदायै नमः प्रातर्नमंदायै नमो निशि । नमोस्तु नर्मदे तुभ्यं त्राहि मां विषसर्वतः ॥ विष्णुपुराण ( ४ | ३ | १२-१३)।
४२. अनाशकं तु यः कुर्यातस्मिंस्तीर्थे नराधिप । गर्भवासे तु राजेन्द्र न पुनर्जायते पुमान् ॥ मत्स्य ० ( १९४/२९३०); परित्यजति यः प्राणान् पर्वतेऽमरकण्टके । वर्षकोटिशतं साग्रं रुद्रलोके महीयते ॥ मत्स्य० (१८६१५३-५४) । ४३. नर्मदा की उत्तरी शाखा जहाँ 'ओंकार' नामक द्वीप अवस्थित है 'कावेरी' नाम से प्रसिद्ध है।
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