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________________ गोदावरी ( दण्डकारण्य), कांची पुरी १३९१ लोग नासिक में ही करते हैं। नासिक के उत्सवों में रामनवमी एक बहुत बड़ा पर्व है ( देखिए बम्बई गजेटियर, जिल्द ६, पृ० ५१७ ५१८, ५२९-५३१ एवं ५२२-५२६) । उषवदात के नासिक - शिलालेख में, जो बहुत लम्बा एवं प्रसिद्ध है, 'गोवर्धन' शब्द आया है । देखिए बम्बई गजेटियर, जिल्द १६, पृ० ५६९-५७० । पंचवटी नाम ज्यों-का-त्यों चला आया है। यह ज्ञातव्य है कि रामायण ( ३|१३| १३) में पंचवटी को देश कहा गया है । शल्यपर्व (३९१९ - १० ), रामायण ( ३।२१।१९-२० ), नारदीय० (२/७५ | ३०) एवं अग्नि० (७/२-३) के मत से जनस्थान दण्डकारण्य में था और पंचवटी उसका ( अर्थात् जनस्थान का ) एक भाग था । जनस्थान विस्तार में ४ योजन था और यह नाम इसलिए पड़ा कि यहाँ जनक-कुल के राजाओं ने गोदावरी की कृपा से मुक्ति पायी थी (ब्रह्म० ८८।२२-२४) । जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में प्रवेश करता है उस समय का गोदावरी - स्नान आज भी महापुण्य-कारक माना जाता है (धर्मसिन्धु, पृ० ७ ) । ब्रह्म० ( १५२।३८-३९) में ऐसा आया है कि तीनों लोकों के साढ़े तीन करोड़ देवता इस समय यहाँ स्नानार्थं आते हैं और इस समय का केवल एक गोदावरी-स्नान भागीरथी में प्रति दिन किये जाने वाले ६० सहस्र वर्षो तक के स्नान के बराबर है । वराह० ( ७११४५-४६ ) में ऐसा आया है कि जब कोई सिंहस्थ वर्ष में गोदावरी जाता है, वहाँ स्नान करता है और पितरों का तर्पण एवं श्राद्ध करता है तो उसके वे पितर, जो नरक में रहते हैं, स्वर्ग चले जाते हैं, और जो स्वर्ग के वासी होते हैं, वे मुक्ति पा जाते हैं । १२ वर्षों के उपरान्त, एक बार बृहस्पति सिंह राशि में आता है । इस सिंहस्य वर्ष में भारत के सभी भागों से सहस्रों की संख्या में यात्रीगण नासिक आते हैं । काञ्ची ( आधुनिक काञ्जीवरम् ) भारत की सात पुनीत नगरियों में एक है और दक्षिण भारत के अति प्राचीन नगरों में मुख्य है ।" यदि ह्वेनसांग द्वारा उल्लिखित जनश्रुतियों पर विश्वास किया जाय तो यह पता चलता है कि गौतम बुद्ध काञ्चीपुर में आये थे और अशोकराज ने यहाँ पर एक स्तूप बनवाया था । ह्वेनसांग (लगभग ६४० ई० सन् ) के अनुसार काञ्ची ३० ली ( लगभग ५ ।। मील) विस्तार में थी और उसके समय में वहां आउ देव मन्दिर थे और बहुत-से निर्ग्रन्थ लोग वहाँ ह थे। महाभाष्य (वार्तिक २६, पाणिनि ४।२।१०४ ) ने भी 'काञ्चीपुरक' (काञ्ची का निवासी) का प्रयोग किया है। पल्लवों के बहुत-से अभिलेख काञ्ची के प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालते हैं, यथा -- युवमहाराज शिव-स्कन्दवर्मा के मयिवोलु दानपत्र (एपि० इण्डि०, जिल्द ६, पृ० ८४), ८वें वर्ष का हिरहड़गल्ली लेख ( वह, जिल्द १, पृ० २ ) एवं कदम्ब काकुस्थवर्मा का तालगुंड स्तम्भ लेख (वही, जिल्द ८, पृ० २४ ) । समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति ( गुप्त इंस्क्रिप्शंस, फ्लीट द्वारा सम्पादित, पृ० ७) में आया है कि समुद्रगुप्त ने चौथी शताब्दी के प्रथम चरण में काञ्ची के विष्णु गोप को पराजित किया था । 'मणिमेखलै' में काञ्ची का विशद वर्णन है, जहाँ मणिमेखले ने अन्त में प्रकाश पाया था ( एम्० कृष्णस्वामी आयंगरकृत मणिमेखले इन इट्स हिस्टॉरिकल सेटिंग', पृ० २०) । यहाँ पर पल्लवों, काञ्ची ४७. 'नासिक' शब्द 'नासिका' से बना है और इसी से 'नासिक्य' शब्द भी बना है। सम्भवतः यह नाम इसलिए पड़ा है कि यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक (नासिका) काटी थी। ४८. अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची हायन्तिका । एताः पुण्यतमाः प्रोक्ताः पुरीणामुत्तमोत्तमाः ॥ ब्रह्माण्ड ० (४।४०।९१ ) ; काशी कान्ती च मायाख्या त्वयोध्या द्वारवत्यपि । मथुरावन्तिका चैताः सप्त पुर्योत्र मोक्षदा ॥ स्कन्द० ( काशीखण्ड ६।६८) आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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