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________________ सप्त पुरी, चार धाम, द्वादश ज्योतिलिंग १३७१ कहना एक सामान्य रीति हो गयी है। किन्तु वायु० के मतानुसार गयाक्षेत्र लम्बाई में प्रेतशिला से लेकर महाबोधिवृक्ष तक लगभग १३ मील है। गया को मुण्डपृष्ठ की चारों दिशाओं में ढाई कोश विस्तृत माना गया है।" गयाशिर गया से छोटा है और उसे फल्गुतीर्थ माना गया है। प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों में गया एवं गयासीस ( गयाशीर्ष का पालि रूप) अति प्रसिद्ध कहे गये हैं ( महावग्ग १।२१।१ एवं अंगुत्तरनिकाय, जिल्द ४, पृ० ३०२ ) । हमने अति प्रसिद्ध एवं पवित्र तीर्थों में चार का वर्णन विस्तार से किया है। अन्य तीर्थों के विषय में विस्तार से लिखना स्थानाभाव से यहाँ सम्भव नहीं है। लगभग आधे दर्जन तीर्थों के विषय में, संक्षेप में हम कुछ लिखेंगे। आगे हम कुछ विशिष्ट बातों के साथ अन्य तीर्थों की सूची देंगे । किन्तु यहाँ कुछ कहने के पूर्व कुछ प्रसिद्ध तीर्थ- कोटियों की चर्चा कर देना आवश्यक है। सात नगरियों का एक वर्ग प्रसिद्ध है, जिसमें प्रत्येक तीर्थ अति पवित्र एवं मोक्षदायक माना जाता है और ये सात तीर्थ हैं-- अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, काञ्ची, अवन्तिका (उज्जयिनी) एवं द्वारका । *८ बदरीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर एवं द्वारका को चार धाम कहा जाता है। शिवपुराण (४।१।१८३ । २१-२४) में १२ ज्योतिलिंगों के नाम आये हैं--सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल पर्वत ( कर्नूल जिले में कृष्ण नामक स्टेशन से ५० मील दूर) पर मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकाल, ओंकार क्षेत्र ( एक नर्मदा द्वीप) में परमेश्वर, हिमालय में केदार, डाकिनी में भीमाशंकर (पूना के उत्तर-पश्चिम भीमा नदी के निकास स्थल पर ), काशी में विश्वेश्वर, गौतमी ( गोदावरी, नासिक के पास ) के तट पर त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, दारुकावन में नागेश, सेतुबन्ध में रामेश्वर एवं शिवालय (देवगिरि या दौलताबाद से ७ मील की दूरी पर एलूर नामक ग्राम का आधुनिक स्थल) में घुष्णेश । शिवपुराण (कोटिद्रुम-संहिता, अध्याय १) ने १२ ज्योतिर्लिंगों के नाम दिये हैं और इनके विषय की प्रायिकाएँ अध्याय १४- ३३ में दी हुई हैं। स्कन्द० ( केदारखण्ड, ७।३०-३५ ) ने १२ ज्योतिर्लिंगों के साथ अन्य लिंगों का भी वर्णन दिया है। बार्हस्पत्यसूत्र (डा० एफ० डब्लू० टामस द्वारा सम्पादित) ने विष्णु, शिव एवं शक्ति के आठ-आठ बड़े तीर्थों का उल्लेख किया है, जो सिद्धियाँ देते हैं ।।' ४७. मुण्डपृष्ठाच्च पूर्वस्मिन् दक्षिणे पश्चिमोत्तरे । सार्धं क्रोशद्वयं मानं गयेति परिकीर्तितम् ॥ वायु० (त्रिस्थलसेतु, पृ० ३४२ ) । ४८. अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची हावन्तिका । एताः पुण्यतमाः प्रोक्ताः पुरीणामुत्तमोत्तमाः ॥ ब्रह्माण्ड ० ( ४१४०/९१); काशी कान्ती च मायाख्या त्वयोध्या द्वारवत्यपि । मथुरावन्तिका चैताः सप्त पुर्योत्र मोक्षदाः ।। स्कन्द ० ( काशीखण्ड, ६०६८ ) ; काञ्च्यवन्ती द्वारवती काश्ययोध्या च पञ्चमी । मायापुरी च मथुरा पुर्यः सप्त विमु कितवा: ॥ काशीखण्ड (२३।७ ); अयोध्या... वन्तिका । पुरी द्वारवती ज्ञेया सप्तैता मोक्षदायिकाः ॥ गरुड़ ० ( प्रेतखण्ड, ३४।५-६ ) । स्कन्द० ( नागरखण्ड, ४७।४) में कान्ती को रुद्रसेन की राजधानी कहा गया है, किन्तु ब्रह्माण्ड ० ( ३।१३।९४ - ९७ ) में कान्तीपुरी को व्यास के ध्यान का स्थल, कुमारधारा एवं पुष्करिणो कहा गया है । कान्ती को कुछ लोग नेपाल की राजधानी काठमाण्डू का प्राचीन नाम कहते हैं, किन्तु ऐंश्येण्ट जियाग्रफी में इसे ग्वालियर के उत्तर २० मील दूर पर स्थित कोटिवल कहा गया है। ४९ अष्ट वैष्णवक्षेत्राः । बदरिका - सालग्राम-पुरुषोत्तम द्वारका-बिल्वाचल - अनन्त सिंह - श्रीरंगाः । अष्टो । अविमुक्त-गंगाद्वार - शिवक्षेत्र रामेयमुना (?) - शिवसरस्वती-मय्य-शार्दूल-गजक्षेत्राः । शावता अष्टौ च । ओग्धीणजाल- पूर्ण-काम-कोल्ल-श्रीशैल काची- महेन्द्राः । एते महाक्षेत्राः सर्वसिद्धिकराश्च । बार्हस्पत्यसूत्र ( ३।११९-१२६) । १०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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