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________________ प्रयाग, काशी आदि में देहत्याग का विधान को अग्नि में जलकर आत्महत्या करके मरते हुए वणित किया है, जो एथेंस के ऑगस्टस सीज़र के यहाँ दूत होकर गया था ('इन्वेज़न आव इण्डिया बाई अलेक्जेण्डर', पृ० ३८९)। ह्वेनसांग ने भी प्रयाग में आत्महत्या की चर्चा की है (बील का 'बुद्धिस्ट रेकर्डस आव दि वेस्टर्न वर्ल्ड,जिल्द १,१०२३२-२३४)। जैनों ने जहाँ एक ओर अहिंसा पर बड़ा बल दिया है, वहीं उन्होंने दूसरी ओर कुछ विषयों में 'सल्लेखना' नामक धार्मिक आत्महत्या को भी मान्यता दी है। काशीमृति-मोक्षविचार (सुरेश्वरकृत, पृ० २-९), त्रिस्थलीसेतु (पृ० ५०-५५), तीर्यप्रकाश (पृ० ३१३३१८) आदि ग्रन्थों ने विस्तार के साथ विवेचन उपस्थित किया है कि किस प्रकार वाराणसी या प्रयाग में जाने या अनजाने मर जाने से मोक्ष प्राप्त होता है। स्थानाभाव से हम इस विषय के विस्तार में नहीं जायँगे। उनके तर्क संक्षेप में यों हैं--कर्म तीन प्रकार के होते हैं; संचित (पूर्व जन्मों से एकत्र),प्रारब्ध (जो वर्तमान शरीर में आने पर आत्मा के साथ कार्यशील हो जाते हैं) एवं क्रियमाण (इस शरीर एवं भविष्य में किये जाने वाले)। उपनिषदों एवं गीता ने उद्घोष किया है कि जिस प्रकार कमल-दल से जल नहीं लिपटता उसी प्रकार उस व्यक्ति से, जो ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर लेता है, पापकर्म नहीं लगे रहते, ज्ञानाग्नि सभी कर्मों को जलाकर भस्म कर देती है और मोक्ष की प्राप्ति परब्रह्म के ज्ञान से होती है (वेदान्तसूत्र ४।१।१३)। इससे यह प्रकट होता है कि वह व्यक्ति जिसने परम सत्ता की अनुभूति कर ली है, अपने क्रियमाण कर्मों से प्रभावित नहीं होता और उसके संचित कर्म उस अनुभूति से नष्ट हो जाते हैं। वर्तमान शरीर, जिसमें व्यक्ति का आत्मा ब्रह्म का साक्षात्कार करता है, उसी कर्म का एक भाग है जो क्रियाशील हुआ रहता है। ब्रह्मज्ञानी का शरीर जब नष्ट हो जाता है तब उसे अन्तिम पद मोक्ष प्राप्त हो जाता है, क्योंकि तब प्रभाव उत्पन्न करने के लिए कोई कर्म नहीं रह जाते। जो व्यक्ति वाराणसी में स्वाभाविक मृत्यु पाता है उसे मरते समय तारक (तारने वाला) मन्त्र दिया जाता है। मत्स्य० (१८३१७७-७८) का कथन है--'जो अविमुक्त (वाराणसी) के विधानों के अनुसार अग्निप्रवेश करते हैं, वे शिव के मुख में प्रविष्ट होते हैं और जो शिव के दृढप्रतिज्ञ भक्त वाराणसी में उपवास करके मरते हैं वे कोटि कल्पों के उपरान्त भी इस विश्व में जन्म नहीं लेते। अतः वे सभी जो वाराणसी में किसी ढंग से मरते हैं, मृत्यु के उपरान्त शिव का अनुग्रह पाते हैं, उससे तत्त्वज्ञान की प्राप्ति होती है जो अन्ततोगत्वा मोक्ष का कारण होती है। कतिपय उक्तियाँ ऐसी हैं जिनसे प्रकट होता है कि इन नगरों में मरने के तुरत बाद ही मोक्ष नहीं प्राप्त होता।" तारक मन्त्र की व्याख्या कई प्रकार से की गयी है। सुरेश्वर के मतानुसार तारक मन्त्र 'ओम्' है जो 'ब्रह्म' का प्रतीक है, जैसा कि तैत्तिरीयोपनिषद् (१११३८, ओमिति ब्रह्म) में आया है, और गीता (८।१३, ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म) ने भी कहा ३९. देखिए इण्डियन ऐण्टीक्वरी, जिल्द २, पृ० ३२२ 'जैन इंस्क्रिप्संस ऐट श्रवण बेलगोला, जहाँ रत्नकरण्ड के कुछ श्लोक उद्धृत किये गये हैं, जिनमें एक निम्न है। 'उपसर्गे दुभिक्षे जरसि हजायां च निष्प्रतीकारे । धर्माय तनुविमोचनमाहुः सल्लेखनामार्याः॥ ४०. यथा पुष्करपलाश आपोन श्लिष्यन्त एवमेवंविदि पापं कर्म न श्लिष्यत इति । छा० उप० (४११४१३); भिद्यते हृदयग्रन्यिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः। क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन् दृष्टे परावरे॥ मुण्डकोपनिषद् (२।२।८); यथैषांसि समिद्धोग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन। ज्ञामाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा॥ भगवद्गीता (४॥३७)। ४१. साक्षान्मोक्षो न चैतास पुरीषु प्रियभाषिणि । स्कन्द० (काशी०, ८१२, यहाँ अगस्त्य ने लोपामुद्रा से बात की है)। तारकः प्रणवः, तारयतीति तारः, स्वार्थे कप्रत्ययः। संसारसागरादुत्तारकं तारकं च तद् ब्रह्म इति तारकं ब्रह्म उच्यते। काशीमृतिमोक्षविचार (पृ० ३)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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