SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय ११ तीर्थयात्रा सभी धर्मों में कुछ विशिष्ट स्थलों की पवित्रता पर बल दिया गया है और वहाँ जाने के लिए धामिक व्यवस्था बतलायी गयी है या उनकी तीर्थयात्रा करने के विषय में प्रशंसा के वचन कहे गये हैं। मसलमानों के पाँच व्यावहारिक धार्मिक कर्तव्यों में एक है जीवन में कम-से-कम एक बार हज करना, यानी मक्का एवं मदीना जाना जो क्रम से मुहम्मद साहब के जन्म एव मत्य के स्थल हैं।' बौद्धों के चार तीर्थ-स्थल हैं; लम्बिनी (रुम्मिनदेई), बोधगया, सारनाथ एवं कुशीनारा, जो कम से भगवान् बुद्ध के जन्म-स्थान, सम्बोधि-स्थल (जहाँ उन्हें सम्बोधि या ज्ञान प्राप्त हुआ था), धर्मचक्र प्रवर्तन-स्थल (जहाँ उन्होंने पहला धार्मिक उपदेश दिया था) एवं निर्वाणस्थल (जहाँ उनकी मृत्यु हुई थी) के नाम से प्रसिद्ध है (देखिए महापरिनिब्वानसुत्त)। ईसाइयों के लिए जेरुसलेम सर्वोच्च पवित्र स्थल है, जहाँ ऐतिहासिक कालों में बड़ी से बड़ी सैनिक तीर्थयात्राएँ की गयी थीं। सैनिक तीर्थयात्रियों ने अपने इस पुनीत स्थल को मुसलमानों के अधिकार से छीनना चाहा था। ऐसी भयानक सैनिक तीर्थयात्राएँ किसी अन्य धार्मिक जाति में नहीं पायी गयी हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार गिब्बन ने निन्दात्मक ढंग से इन सैनिक तीर्थयात्राओं का वर्णन किया है। किन्तु इतना तो मानना ही पड़ेगा कि उन सैनिक धर्मयात्रियों में सहस्रों ऐसे थे, जिन्होंने अपने आदर्श के परिपालन में अपना जीवन एवं सर्वस्व त्याग कर दिया था। भारतवर्ष में पवित्र स्थानों ने अति महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। विशाल एवं लम्बी नदियां, पर्वत एवं वन सदैव पुण्यप्रद एवं दिव्य स्थल कहे गये हैं। प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत में तीर्थयात्राओं से समाज एवं १. देखिए सैक्रेड बुक आव दि ईस्ट (जिल्द ६, भूमिका) जहाँ पाँच कर्तव्यों का उल्लेख है। मक्का एवं मदीना की तीर्थयात्रा को हज कहा जाता है और जो मुसलमान हज करता है उसे हाजी कहलाने का अधिकार है। २. गिम्धन ने लिखा है--'अपने पादरी को पुकार पर सहलों की संख्या में डाकू, गृहदाही एवं नर-घाती लोग अपनी आत्माओं को पापमक्त करने के लिए उठ खड़े हए और अधार्मिकों पर वही अत्याचार ढाहने लगे जिसे वे स्वयं अपने ईसाई भाइयों पर करते थे, और पापमुक्ति के ये साधन सभी प्रकार के अपराधियों द्वारा अपनाये गये। देखिए डेक्लाइन एण्ड फाल आव दि रोमन एम्पायर, जिल्द ७ (सन् १८६२ का संस्करण), पृ० १८८। ३. महाकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपनी 'साधना' में कहा है---'भारतवर्ष ने तीर्थयात्रा के स्थलों को वहाँ चुना, जहाँ प्रकृति में कुछ विशिष्ट रमणीयता या सुन्दरता थी, जिससे कि उसका मन संकीर्ण आवश्यकताओं के ऊपर उठ सके और अनन्त में अपनी स्थिति का परिज्ञान कर सके। यही कारण था कि भारत में जहाँ एक समय सभी लोग मांसभक्षी थे, उन्होंने जीवन के प्रति सार्वभौम सहानुभूति की भावना के संवर्धन के लिए पशु-भोजन का परित्याग कर दिया---यह मानवजाति के इतिहास में एक विलक्षण घटना है।' आधुनिक पाश्चात्य लोगों तथा प्राचीन एवं मध्य काल के भारतीयों के दृष्टिकोण में मौलिक भेद है (जो आज भी अत्यधिक मात्रा में विराजमान है)। यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy