SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्तक पुत्र के कुल-गोत्र का विचार; वृपोत्सर्ग १२९१ से हटना केवल आंशिक है, विवाह एवं आशौच के लिए दत्तक हो जाने के उपरान्त भी पिता का गोत्र चलता रहता है। निर्णयसिन्धु (३, पृ० ३८९), धर्मसिन्धु (३, उत्तरार्ध, पृ० ३७१) एवं दत्तकचन्द्रिका में यह उद्घोषित है कि दत्तक रूप में दिया गया पुत्र अपने पुत्रहीन वास्तविक पिता की मृत्यु पर उसका श्राद्ध कर सकता है और उसकी सम्पत्ति भी ले सकता है। वृषोत्सर्ग (साँड या बैल छोड़ना) के विषय में कतिपय सूत्रों ने वर्णन उपस्थित किया है, यया शांखा० गृ० (३।२), कौषीतकि गृ० (३।२ या ३।६ मद्रास यूनि० माला), काठक गृ० (५९।१), पारस्कर गृ० (३१९), विष्णुधर्मसूत्र (८६।१-२०) आदि । कुछ ग्रन्थों में पितरों की गाथाओं में कुछ ऐसी बातें हैं, जिनमें पितरों की अभिलाषा व्यक्त की गयी है"-'बहुत से पुत्रों की अभिलाषा करनी चाहिए, क्योंकि यदि एक भी पुत्र गया जाता है (और पिता की मृत्यु पर श्राद्धार्पण करता है) या वह अश्वमेध यज्ञ करता है या नील (काले रंग का) बैल छोड़ता है तो ऐसे पुत्र वाला व्यक्ति संसार से मुक्ति पा जाता है। विष्णुधर्मसूत्र (८६।१-२०) का वर्णन यथासम्भव पूर्ण है और हम उसे ही उद्धृत करते हैं-"(यह कृत्य) कार्तिक या आश्विन मास की पूर्णिमा को किया जाता है। इसके लिए सर्वप्रथम वृषभ की परीक्षा करती चाहिए। वृषम को पयस्विनी (दुधारू) एवं बहुत-से जीवित बछड़ों वाली गाय का बच्चा होना चाहिए, उसे सर्वलक्षण युक्त (अर्थात् किसी अंग से भंग नहीं) होना चाहिए, उसे नील या लोहित रंग का होना चाहिए, उसके मुख, पुंछ, पैर एवं सींग श्वेत होने चाहिए और उसे यूथ (झुण्ड) को आच्छादित करनेवाला होना चाहिए (अर्थात् जो अपनी ऊंचाई से अन्य पशुओं को निम्नश्रेणी में रख सके)। इसके उपरान्त उसे (कर्ता को) गायों के बीच (गोशाला में) अग्नि जलाकर और उसके चतुर्दिक कुश बिछाकर पूषा के लिए दूध से पायस तैयार करना चाहिए और 'पूषा हमारी गायों के पीछे-पीछे चले' (ऋ० ६।५४।५) एवं 'यहाँ आनन्द है (वाज० सं० ८५१) मन्त्रों का पाठ करके (दो ) आहुतियाँ देनी चाहिए; किसी लोहार (अयस्कार) को उसे दागना चाहिए; एक पुठे पर 'चक्र' और दूसरे पर 'त्रिशूल' का चिह्न लगाना चाहिए। इस प्रकार के अंकन के उपरान्त उसे (कर्ता को) दो मन्त्रों (तै० सं० ५।६।१११-२) एवं पाँच मन्त्रों (ऋ० १०।९।४-८) के साथ वृष को नहलाना चाहिए। उसको पोंछकर एवं अलंकृत कर इसी तरह अलंकृत चार गायों के साथ लाना चाहिए, और रुद्रों (तै० सं० ४।५।१-११), पुरुषसूक्त (ऋ० १०।९०।१-१६) एवं कूष्माण्डीय (वाज० सं० २०१४-१६ एवं ते० आ० १०॥३-५) मन्त्रों का पाठ करना चाहिए। इसके उपरान्त कर्ता को वृषभ के दाहिने कान में 'बछड़ों के पिता' तथा निम्न मन्त्र कहना चाहिए-'पवित्र धर्म वृषभ है और उसके चार पैर हैं, मैं उसे भक्ति के साथ चुनता हूँ, वह मेरी चारों ओर से रक्षा करे। (हे युवा गौओ) मैं तुम्हें इस वृष को पत्ति के रूप में देता हूँ, इसके साथ इसे प्रेमी मानकर मस्ती से घूमो। हे सोम राजन्, हमें सन्तति का अभाव न हो और न शारीरिक सामर्थ्य की कमी हो और न हम शत्रु से पछाड़ खायें।' तब उत्तर-पूर्व दिशा में गायों के साथ वृषभ को हाँकना चाहिए और वस्त्रों का जोड़ा, सोना एवं कांसे का पात्र पुरोहित को देना चाहिए। अयस्कार (लोहार) को मुंहमांगा पुरस्कार देना चाहिए और कम-से-कम तीन ब्राह्मणों को घृत से बना पक्वान्न खिलाना चाहिए। उस जलाशय २४. एष्टव्या बहवः पुत्रा योकोपि गयां बजेत् । यजेत वाश्वमेधेन नीलं वा वृषमुत्सृजेत् ॥ विष्णुधर्म० (८५।६७), बृहस्पतिस्मृति (श्लोक २१), लघुशंख (१०), मत्स्य० (२२१६), ब्रह्म० (२२०॥३२-३३), वायु० (८३।११-१२), पन० (सृष्टिखण्ड, १२६८), ब्रह्माण्ड० (उपोद्घातपाव १९।११), विष्णुधर्मोत्तर० (१११४६।५८ एवं १३१४४॥३)। मत्स्य० (२०७४४०) ने कहा है कि यह प्राचीन गाथा है और तीसरे पाद को यों पढ़ा है-'गौरी वाप्यवहेत्कन्याम् ।' मिलाइए कूर्म० (२।२०।३०-३१) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy