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________________ एकोद्दिष्ट धान के तीन प्रकार; षोडश श्राद्ध १२७९ आते हैं) नामक मन्त्र नहीं कहना चाहिए और 'पितृ' का उच्चारण (जब तक सपिण्डीकरण न सम्पादित हो जाय नहीं होना चाहिए, उसके स्थान पर 'प्रेत' शब्द कहना चाहिए (अपरार्क, पृ० ५२५ में शौनक-गृह्यपरिशिष्ट का उद्धरण दिया गया है)। जैसा कि हमने इस खण्ड के सातवें अध्याय में देख लिया है (अपरार्क, पृ० ५२५; निर्णयसिन्धु ३, पृ. २९५ आदि) एकोद्दिष्ट के तीन प्रकार हैं-नव, नवमिश्र एवं पुराण। नव श्राद्ध वे हैं जिनमें मृत्यु के १०वें या ११वें दिन तक श्राद्ध किया जाता है, नवमिश्र (या मिश्र) वे श्राद्ध हैं जो मत्य के उपरान्त ११वें दिन से लेकर एक वर्ष (कुछ लोगों के मत से छ: मासों) तक किये जाते हैं। अपरार्क ने व्याघ्र का एक श्लोक उद्धृत किया है कि एकोद्दिष्ट श्राद्ध का सम्पादन मत्य के पश्चात् ११वें या चौथे दिन या वर्ष भर प्रत्येक मास के अन्त में और प्रत्येक वर्ष मृत्यु के दिन किया जाता है। कात्यायन के एक श्लोक में आया है कि आहिताग्नि के लिए एकोद्दिष्ट श्राद्ध दाह के ११वें दिन करना चाहिए और ध्रुव श्रादों का सम्पादन मृत्यु-दिन पर किया जाना चाहिए। अपरार्क ने व्याख्या की है कि 'ध्रुवाणि' का अर्थ है वे श्राद्ध जो मृत्यु के तीन पक्षों के पश्चात् किये जाते हैं। नव श्राद्धों के विषय में भी कई मत हैं। स्कन्द० (६, नागरखण्ड, २०५।१-४) एवं गरुडपुराण (प्रेतखण्ड, ५।६७-६९) का कथन है कि नव श्राख नौ हैं, जिनमें तीन का सम्पादन मृत्यु-स्थल, शवयात्रा-विश्रामस्थल, अस्थिसंचयन-स्थल पर होता है और छ: का सम्पादन मृत्य के उपरान्त ५वें, ७, ८, ९, १०वें एवं ११वें दिन होता है। बहुत-से ग्रन्थों में ऐसा आया है कि षोडश श्राव होते हैं जिनका सम्पादन मृत व्यक्ति के लिए अवश्य होना चाहिए, नहीं तो जीवात्मा प्रेत एव पिशाच की दशा से छुटकारा नहीं पाता। इन षोडश श्राद्धों के विषय में कई मत हैं। कुछ ग्रन्थों में सपिण्डीकरण को सोलहों में गिना जाता है और कुछ ग्रन्थों ने इसे उनमें नहीं रखा है। गोभिलस्मृति (३।६७) ने षोडश श्राद्धों को इस प्रकार गिना है-१२ मासिक श्राख (जो मृत्यु-तिथि पर प्रत्येक मास में किये जाते हैं), प्रथम श्राव (अर्थात् ११वें दित वाला श्राद्ध), मृत्यु तिथि के उपरान्त प्रत्येक छ:मासी पर (समाप्त होने के एक दिन पूर्व) दो श्राद एवं सपिण्डीकरण। गरुड० (प्रेतखण्ड, ५।४९-५० एवं अध्याय ३५।३३-३६ तथा ३७) ने १६ श्राद्धों के तीन पक्ष दिये हैं, जिनमें एक की परिगणना में वे हैं जो मृत्यु के १२वें दिन, तीन पक्षों के पश्चात्, छ: मासों के पश्चात्, प्रत्येक मास के पश्चात् एवं वर्ष के अन्त में किये जाते हैं। पद्मपुराण (सृष्टि खण्ड, ५।२७१) में गणना इस प्रकार है-षोडश श्राद्ध वे हैं जो मृत्यु के चौथे दिन, तीन पक्षों के अन्त में, छ:मासों के उपरान्त, वर्ष के अन्त में एवं प्रत्येक मास में १२ श्राद्ध (मृत्यु तिथि पर) किये जाते हैं। कल्पतरु (पृ० २५) एवं ब्रह्मपुराण (अपरार्क, पृ० ५२३) का कथन है कि षोडश श्राद्ध वे हैं जो मृत्यु के पश्चात् चौथे, ५३, ९वें एवं १२वें दिन तथा मृत्यु-तिथि पर ४. तत्र व्याघ्रः। एकावशे चतुर्थे च मासि मासि च वत्सरम् । प्रतिसंवत्सरं चैवमेकोद्दिष्टं मृताहनि ॥ कात्या. यनः। श्रावमग्निमतः कार्य दाहादेकादशेऽहनि । ध्रुवाणि तु प्रकुर्वीत प्रमीताहनि सर्वदा ॥ अपरार्क, पृ०५२१ । यह अन्तिम गोभिलस्मृति (३॥६६) में भी है जिसमें प्रत्यान्दिकं प्रकुर्वीत' पाठ आया है। ५. यस्य॑तानि न दीयन्ते प्रेतश्राद्धानि षोडश । पिशाचत्वं ध्रुवं तस्य दत्तः श्राद्धशतैरपि ॥ यम (श्रातक्रियाकौमुदी, पृ० ३६२)। यही श्लोक गर० (प्रेतखण्ड, ५।५०-५१), लिखितस्मृति (१६, यस्यैतानि न कुर्वीत एकोद्दिष्टानि), लघुशंख (१३), पद्म० (सृष्टिखण्ड, ४७।२७२, न सन्तीह यथाशक्त्या च श्रद्धया) में भी आया है। और देखिए मिता० (याज्ञ. १२२५४, पाठान्तर-'न दत्तानि' एवं 'प्रेतत्वं सुस्थिरं तस्य') एवं पुनः मिता० (याज्ञ०१२२५३) 'प्रेतलोके तु वसतिर्नृणां वर्ष प्रकीर्तिता। क्षुतृष्णे प्रत्यहं तत्र भवेतां भृगुनन्दन ॥ जो मार्कण्डेयपुराण से उद्धृत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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