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________________ धाड में भोजनीय ब्राह्मणों की योग्यता १२२७ कारण किसी ब्राह्मण के दोष सरलतापूर्वक जान लिये जाये तो उसे नहीं आमन्त्रित करना चाहिए (५।६)। इसी पुराण (उपो०१५।२४-२६) ने वरीयता के क्रम को यों रखा है-सर्वप्रथम यति (संन्यासी), तब चतुर्वेदी ब्राह्मण जो इतिहासज्ञ भी हो, तब त्रिवेदी, इसके उपरान्त द्विवेदी, तब एकवेदी और तब उपाध्याय। हेमाद्रि (श्रा०, पृ० ४४३) ने अग्नि० को इस प्रकार उद्धृत किया है-किसी प्रसिद्ध कुल में जन्म लेने से क्या लाभ है, जब कि व्यक्ति वृत्तहीन (सदाचरणरहित) हो? क्या सुगन्धयुक्त कुसुमों में कृमि (कीड़े) नहीं उत्पन्न हो जाते ? जातूकर्ण्य का कथन है-देवों और पितरों के कृत्यों में चरित्रहीन ब्राह्मणों से बात भी नहीं करनी चाहिए, भोजन आदि देने की तो बात ही दूसरी है, भले ही वे विद्वान् हों या अच्छे कुल में उत्पन्न हुए हों।" योग्यता पर इतना बल इसलिए दिया गया है कि श्राद्ध के समय पितर लोग वायव्य रूप धारण कर ब्राह्मणों में प्रविष्ट हो जाते हैं। और देखिए ब्रह्माण्ड पुराण (उपोद्घातपाद ११॥४९) उपर्युक्त विद्या, शील एवं सदाचरण-सम्बन्धी योग्यताएँ श्राद्धकर्ता को आमंत्रित होनेवाले ब्राह्मणों के अतीत जीवन, गुणों एवं दोषों को जानने के लिए स्वाभाविक रूप से विवश करती हैं। मनु आदि ने आमंत्रित होनेवाले ब्राह्मणों की परीक्षा के कतिपय नियम दिये हैं। मनु (३।३४९), विष्णु० ध० सू० (८२।१-२)" ने व्यवस्था दी है'देवकर्मों में (आमंत्रित करने के लिए) ब्राह्मण (के गुणों की) परीक्षा नहीं ली जानी चाहिए, किन्तु पितृश्राद्ध में (गुणों की) भली प्रकार छान-बीन उचित एवं न्यायसंगत घोषित है।' मनु (३।१३०) में आया है कि भले ही ब्राह्मण वेद का पूर्ण ज्ञाता हो, उसकी (पूर्वज-वंशपरम्परा में) पूर्ण छान-बीन करनी चाहिए। वायु० (८३१५१) में व्यवस्था दी हुई है कि दान-धर्म में ब्राह्मणों के गुणों की परीक्षा नहीं करनी चाहिए, किन्तु देवों एवं पितरों के कृत्यों में परीक्षा आवश्यक है। अनुशासन० (९०।२, हेमाद्रि, पृ० ५११) ने कहा है कि देवकृत्यों में क्षत्रिय को दान-नियम जानते हुए ब्राह्मण की योग्यताओं की जानकारी नहीं करनी चाहिए, किन्तु देवों एवं पितरों के श्राद्धों में ऐसी जानकारी उचित है । वृद्ध मनु एवं मत्स्य० (हेमाद्रि, पृ० ५१३ एवं श्रा० प्र०, पृ० १०२) ने व्यवस्था दी है कि ब्राह्मण के शील (चरित्र) की जानकारी उसके दीर्घकालीन निवासस्थल पर करनी चाहिए,उसकी पवित्रता उसके कर्मों एवं अन्य लोगों के साथ के व्यवहारों से जाननी चाहिए तथा उसकी बुद्धि की परीक्षा उसके साथ विवेचन करके करनी चाहिए। इन्हीं तीन विधियों से यह जानना चाहिए कि आमंत्रित होनेवाला ब्राह्मण योग्य है अथवा नहीं। नृसिंहपुराण ने श्राद्ध के समय अचानक आये हुए अतिथि की विद्या एवं चरित्र के विषय में जानकारी प्राप्त करना वर्जित किया है। इसमें सन्देह नहीं है कि कुछ ऐसी उक्तियां भी हैं, विशेषतः पुराणों में, जो ब्राह्मणों की योग्यताओं अथवा उनके गुणों की जानकारी की भर्त्सना करती हैं। उदाहरणार्थ, स्कन्द० (अपरार्क, पृ० ४५५; कल्पतरु, श्रा०, पृ० १०२) में आया है—वैदिक कथन तो यह है कि (विद्या एवं शील की) छानबीन के उपरान्त ही (किसी ब्राह्मण को) श्राद्धार्पण करना चाहिए, किन्तु छानबीन की अपेक्षा सरल सीधा व्यवहार अच्छा माना जाता है। जब कोई बिना किसी छानबीन के सीधी तौर से पितरों को श्राद्धार्पण करता है तो वे और देवगण प्रसन्न होते हैं। भविष्य० (बालंभट्टी, आचार, पृ० ४९५) ने कहा हैयह मेरा मत है कि ब्राह्मणों के गुणों की परीक्षा नहीं करनी चाहिए, केवल उनकी जाति देखनी चाहिए न कि उनके ३७. तदुक्तमग्निपुराणे। किं कुलेन विशालेन वृत्तहीनस्य देहिनः । कृमयः किं न जायन्ते कुसुमेषु सुगंषिषु ॥ जातकोपि। अपि विद्याकुलयुक्तान् वृत्तहीनान् द्विजाषमान् । अनर्हान हव्यकव्येष वाङमात्रेणापि नार्चयेत् ॥ हेमावि (पृ० ४४३-४४४) एवं श्रा०प्र० (पृ०७४)। ३८. देवे कर्मणि ब्राह्मणं न परीक्षेत । प्रयत्नात्पित्र्ये परीक्षेत । विष्णुधर्मसूत्र (८२३१-२)। ८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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