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________________ १२२६ धर्मशास्त्र का इतिहास प्रायश्चित्तों की व्यवस्था दे दी है। उदाहरणार्थ, मिता० (याज्ञ० २।२८९) ने भारद्वाज के कतिपय श्लोक उद्धृत किये हैं-'यदि कोई ब्राह्मण पार्वण श्राद्ध में भोजन करता है तो उसे प्रायश्चित्त-स्वरूप छ: प्राणायाम करने पड़ते हैं, यदि वह मत्यु के तीन मासों से लेकर एक वर्ष के भीतर श्राद्ध-मोजन करता है तो उसे एक उपवास करना पड़ता है, यदि वह वृद्धि-श्राद्ध में भोजन करता है तो उसे तीन प्राणायाम करने पड़ते हैं और यदि कोई सपिण्डन श्राद्ध में खाता है तो उसे एक दिन एवं रात का उपवास करना पड़ता है। मिता० ने धौम्य का एक श्लोक उद्धत किया है, जिसने पत्रोत्पत्ति या सीमन्तोन्नयन पर किये गये श्राद्ध या नव-श्राद्ध आदि में भोजन करने पर चान्द्रायण व्रत की व्यवस्था दी है। और देखिए इस विषय में निर्णयसिन्धु (३, पृ० ४६७-४६८) । वराहपुराण (१८९।१२-१३) में आया है कि यदि कोई ब्राह्मण प्रेत को दिया गया भोजन खाता है और पेट में उस भोजन को लिये हए मर जाता है तो वह एक कल्प तक भयंकर नरक में रहता है, फिर राक्षस हो जाता है और तब कभी पाप से छुटकारा पाता है। गौतम (१५।१०) के मत से गुणशाली (आवश्यक गुणों से सम्पन्न) युवा व्यक्तियों को वृद्ध लोगों की अपेक्षा वरीयता मिलनी चाहिए; कुछ लोगों के मत से पिता के श्राद्ध-भोज में नवयुवकों तथा पितामह के श्राद्ध में बूढ़े लोगों को आमंत्रित करना चाहिए। दूसरी ओर आप० घ० सू० (२।७।१७) का कथन है कि तुल्य गुण वालों में वृद्धों को तथा बुड्ढों में जो दरिद्र हैं और धनार्जन के इच्छुक हैं उन्हें वरीयता मिलनी चाहिए (तुल्यगुणेषु वयोवृद्धः श्रेयान् द्रव्यकृशश्चेप्सन्)। कुछ ग्रन्थ संन्यासियों या योगियों को श्राद्ध में आमंत्रित करने पर बल देते हैं। विष्णुध० (८३।१९-२०) ने योगियों को विशेष रूप से पंक्तिपावन कहा है और पितरों द्वारा उच्चरित एक श्लोक उद्धृत किया है-'हमारे कुल में कोई (वंशज) उत्पन्न हो, जो श्राद्ध में ब्राह्मण योगी को खिलाये, जिससे हम स्वयं संतुष्ट होते हैं।' वराहपुराण (१४।५०) में योगी को १०० ब्राह्मणों से उत्तम कहा गया है। मार्कण्डेय० (२९।२९-३०) में आया है--समझदार व्यक्ति को श्राद्ध-भोजन में सदैव योगियों को खिलाना चाहिए, क्योंकि पितर लोग आश्रय के लिए योग पर निर्भर रहते हैं; यदि सहस्रों ब्राह्मणों में प्रथम बैठे हुए योगी को खिलाया जाता है तो वह योगी कर्ता (श्राद्धकर्ता) एवं अन्य भोजन करनेवालों को उसी प्रकार बचाता है जिस प्रकार नौका जल में से मनुष्यों को बचाती है। इसके उपरान्त उसने राजा ऐल के लिए पितरों द्वारा गाये गये श्लोकों को उद्धृत किया है (२९।३२-३४)। सौरपुराण (१९।२-३) ने गुणों या योग्यताओं का उल्लेख करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि एकाग्र मन से शिव की पूजा करनेवाला व्यक्ति श्राद्ध भोजन के लिए पर्याप्त है। ___ मत्स्य० (१६।११-१२) में आया है जो वैदिक मन्त्रों का विवेचन करता है, जो श्रौत यज्ञों का विचार करता है और जो साम की लयों के नियमों को जानता है, वह पंक्तिपावन रूप में पवित्र करनेवाला है। सामवेद में प्रवीण, वैदिक छात्र, वेदज्ञ एवं ब्रह्मज्ञ-ऐसे लोग जिस श्राद्ध में खिलाये जाते हैं वह सर्वोत्तम कल्याण देनेवाला है। उपयुक्त वचनों में वेद-ज्ञान पर सबसे अधिक बल दिया गया है, किन्तु वेदज्ञों का सदाचारी होना एवं नियमरत रहना परम आवश्यक है (आश्व० गृ० ४।७।२, गौतम १५।९ एवं मनु २१११८)। मनु (२।११८) में आया है-'उस ब्राह्मण को जो केवल गायत्री मन्त्र जानता है किन्तु नियमों से युक्त जीवन बिताता है, वरीयता मिलनी चाहिए ; किन्तु उसे नहीं जो तीनों वेदों का ज्ञाता है किन्तु नियम-नियन्त्रित नहीं है और जो चाहे (निषिद्ध या वर्जित खाद्य पदार्थ) खा लेता है तथा सभी प्रकार की वस्तुओं का विक्रेता है।' स्कन्द० (६।२१७।२७) में आया है कि ब्राह्मणों के कुल, उनके शील एवं अवस्था को जानना चाहिए और यह देखना चाहिए कि वे किससे विवाह करते हैं या किन्हें अपनी पुत्रियाँ देते हैं । ब्रह्माण्ड ० (उपोद्घात, अ० १५) का कथन है कि अज्ञात ब्राह्मणों के विषय में छानबीन नहीं होनी चाहिए, क्योंकि सिद्ध योगी लोग ब्राह्मण के रूप में विचरण किया करते हैं। किन्तु यदि ब्राह्मण के अवगण बिना कठिनाई के ज्ञात हो जायेंया पास में रहने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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