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________________ १२२२ धर्मशास्त्र का इतिहास पूर्व पुरुषों का आवाहन होता है। बृहस्पति (रुद्रधर का श्राद्धविवेक) ने मनु द्वारा घोषित श्राद्धों की पांच कोटियाँ कही हैं ---नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि एवं पार्वण। श्राद्धविवेक का कथन है कि नैमित्तिक में सोलह प्रेत-बाब होते हैं और गोष्ठी-श्राद्ध-जैसे श्राद्ध जो अन्य स्मृतियों में उल्लिखित हैं, पार्वण थाद्धों में गिने जाते हैं। कूर्मपुराण (२।२०।२६) ने इसी प्रकार पाँच श्राद्धों का उल्लेख किया है। मिताक्षरा (याज्ञ० १।२१७) ने पाँच श्राद्धों के नाम दिये हैं-अहरहः-श्राद्ध, पार्वण, वृद्धि, एकोद्दिष्ट एवं सपिण्डीकरण। मनु (३।८२=शंख १३।१६ एवं मत्स्य० १६।४) ने अहरहः-श्राद्ध को वह श्राद्ध माना है जो प्रति दिन भोजन (पके हुए चावल या जौ आदि) या जल या दूध, फलों एवं मूलों के साथ किया जाता है। बहुत-से ग्रन्थों द्वारा उद्धृत विश्वामित्र के दो श्लोकों में बारह प्रकार के श्राद्ध उल्लिखित हैं-नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि-श्राद्ध (पुत्रोत्पत्ति, विवाह या किसी शुभ घटना पर किया जानेवाला), सपिण्डन (सपिण्डीकरण), पार्वण, गोष्ठीश्राद्ध, शुद्धिश्राद्ध, काग, दैविक, यात्रा-श्राद्ध, पुष्टि-श्राद्ध। कुछ ग्रंथों में इनकी परिभाषा भविष्यपुराण से दी गयी है। सपिण्डन एवं पार्वण की व्याख्या नीचे दी जायगी। शेष, जिनकी परिभाषा अभी तक नहीं दी गयी है, वह निम्न है-गोष्ठीबार वह है जो किसी व्यक्ति द्वारा श्राद्ध के विषय में चर्चा करने के कारण प्रेरित होकर किया जाता है या जब बहुत से विद्वान् लोग किसी पवित्र स्थान पर एकत्र होते हैं और अलग-अलग भोजन पकानेवाले पात्रों का मिलना उनके लिए असम्भव हो जाता है और वे मिल-जुलकर श्राद्ध के सम्भार (सामग्रियाँ) एकत्र करते हैं और एक साथ अपने पितरों की संतुष्टि के लिए एवं अपने को आनन्द देने के लिए श्राद्ध करते हैं, तब वह गोष्ठीश्राद्ध कहलाता है। शद्धि श्राद्ध वह है जिसमें किसी पाप के अपराधी होने के कारण या प्रायश्चित्त न करने के कारण (वह प्रायश्चित्त का एक सहायक व्रत है) व्यक्ति शुद्धि का कृत्य करके ब्रह्मभोज देता है। उसे कर्माग कहा जाता है जो गर्भाधान संस्कार या किसी यज्ञ-सम्पादन या सीमन्तोन्नयन एवं पुंसवन के समय किया जाता है। उसे दैविक भार कहा जाता है जो देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है (यह नित्य-श्राद्ध के समान है और यज्ञिय भोजन के साथ सप्तमी या द्वादशी को किया जाता है) । जब कोई दूर देश की यात्रा करते समय श्राद्ध करता है, जिसमें ब्राह्मणों को पर्याप्त मात्रा में घृत दिया जाता है या जब वह अपने घर को लौट आता है और श्राद्ध करता है तब उसे यात्रा-श्राब कहते हैं। वह पुष्टि-बाद कहलाता है जो शरीर के स्वास्थ्य (या मोटे होने के लिए जब कोई औषध सेवन की जाती है) या धन-वृद्धि के लिए किया जाता है। इन बारहों में मुख्य हैं पार्वण, एकोद्दिष्ट, वृद्धि एवं सपिण्डन। शिवभट्ट के पुत्र गोविन्द और रघुनाथ ने 'षण्णवति श्राद्ध' नामक ग्रन्थ में इन सबका संग्रह किया है। एक वर्ष में किये जाने वाले ९६ श्राद्ध संक्षिप्त रूप में ये हैं-वर्ष की १२ अमावास्याओं पर १२ श्राद्ध, युगादि दिनों पर ४ श्राद्ध, मन्वन्तरादि पर १४ श्राद्ध, संक्रांतियों के १२ श्राद्ध, धृति (वैधृति) नामक योग पर १३ श्राद्ध, व्यतीपात योग पर १३ श्राद्ध, १६ महालय श्राद्ध, ४ अन्वष्टका दिन, ४ अष्टका दिन और चार अन्य दिन (हेमन्त एवं शिशिर के महीनों के कृष्णपक्ष की ४ सप्तमी)। इन वर्गीकरणों एवं श्राद्ध-सूचियों से यह प्रकट हो जाता है कि किस प्रकार श्राद्धों का सिद्धान्त शताब्दियों से बहता हुआ आतिशय्य की सीमा को पार कर गया। कहना न होगा कि कुछ ही लोग वर्ष में इतने श्राद्ध करने में लवलीन रहे होंगे और अधिकांश में लोग महालय श्राद्ध या दो-एक और श्राद्ध करके संतुष्ट हो जाते रहे होंगे। यह ज्ञातव्य है कि मनु (३।१२२) ने प्रथमतः प्रत्येक मास की अमावास्या पर बड़े परिमाण में श्राद्ध करने की व्यवस्था दी थी, किन्तु यह समझकर कि यह सब के लिए सम्भव नहीं है, उन्होंने वर्ष में (हेमन्त, ग्रीष्म एवं वर्षा में) तीन अमावस्याओं पर ही बड़े पैमाने पर श्राद्ध करने की व्यवस्था दी और कहा कि प्रति दिन वह श्राद्ध करना चाहिए जो पञ्चमहायज्ञों में सम्मिलित है। देवल कुछ पग आगे चले गये हैं और उन्होंने कहा है कि वर्ष में केवल एक ही श्राद्ध बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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