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ena के समय दर्शनीय प्राणी; श्राद्धों का वर्गीकरण
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देखने या अन्य प्रकारों से विघ्न डालने की अनुमति नहीं है । गौतम (१५।२५-२८) ने व्यवस्था दी है कि कुत्तों, चाण्डालों एवं महापातकों के अपराधियों से देखा गया भोजन अपवित्र ( अयोग्य) हो जाता है, इसलिए श्राद्ध कर्म घिरे हुए स्थल में किया जाना चाहिए; या कर्ता को उस स्थल के चतुर्दिक् तिल बिखेर देने चाहिए या किसी योग्य ब्राह्मण को, जो अपनी उपस्थिति से पंक्ति को पवित्र कर देता है, उस दोष (कुत्ता या चाण्डाल द्वारा देखे गये भोजन आदि दोष) को दूर करने के लिए शान्ति का सम्पादन करना चाहिए। आप० घ० सू० ने कहा है कि विद्वान् लोगों ने कुत्तों, पतितों, कोढ़ी, खल्वाट व्यक्ति, परदारा से यौन-संबंध रखनेवाले व्यक्ति, आयुधजीवी ब्राह्मण के पुत्र तथा शूद्रा से उत्पन्न ब्राह्मणपुत्र द्वारा देखे गये श्राद्ध की भर्त्सना की है-यदि ये लोग श्राद्ध-भोजन करते हैं तो वे उस पंक्ति में बैठकर खानेवाले व्यक्तियों को अशुद्ध कर देते हैं। मनु ( ३।२३९-२४२) ने कहा है - चाण्डाल, गाँव के सूअर या मुर्गा, कुत्ता, रजस्वला एवं क्लीब को भोजन करते समय ब्राह्मणों को देखने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। इन लोगों द्वारा यदि होम ( अग्निहोत्र ), दान (गाय एवं सोने का ) कृत्य देख लिया जाय, या जब ब्राह्मण भोजन कर रहे हों तब या किसी धार्मिक कृत्य (दर्श - पूर्णमास आदि) के समय या श्राद्ध के समय ऐसे लोगों की दृष्टि पड़ जाय तो सब कुछ फलहीन हो जाता है। सूअर देवों या पितरों के लिए अर्पित भोजन को केवल सूंघकर, मुर्गा भागता हुआ या उड़ता हुआ, कुत्ता केवल दृष्टिनिक्षेप से एवं नीच जाति स्पर्श से ( उस भोजन को ) अशुद्ध कर देते हैं। यदि कर्ता का नौकर लँगड़ा, ऐंचाताना, अधिक या कम अंगवाला (११ या ९ आदि अंगुलियों वाला) हो तो उसे श्राद्ध सम्पादन स्थल से बाहर कर देना चाहिए । अनुशासन पर्व में आया है कि रजस्वला या पुत्रहीना नारी या चरक प्रस्त ( श्वित्री) द्वारा श्राद्धभोजन नहीं देखा जाना चाहिए । विष्णुध० सू० (८२/३ ) में श्राद्ध के निकट आने की अनुमति न पानेवाले ३० व्यक्तियों की सूची है। कूर्म ० ( २।२२।३४-३५ ) का कथन है कि किसी अंगहीन, पति, कोढ़ी, पूयत्रण ( पके हुए घाव ) से ग्रस्त, नास्तिक, मुर्गा, सूअर, कुत्ता आदि को श्राद्ध से दूर रखना चाहिए नृणास्पद रूप वाले, अपवित्र, वस्त्रहीन, पागल, जुआरी, रजस्वला, नील रंग या पीत-लोहित वस्त्र धारण करने वालों एवं नास्तिकों को श्राद्ध से दूर रखना चाहिए । मार्कण्डेय ० ( ३२१२०-२४), वायु० (७८२२६-४०), विष्णुपुराण ( ३।१६।१२-१४) एवं अनुशासन पर्व ( ९११४३४४) में भी लम्बी सूचियाँ दी हुई हैं किन्तु हम उन्हें यहाँ नहीं दे रहे हैं। स्कन्दपुराण (६:२१७।४३ ) ने भी लिखा है कि कुत्ते, रजस्वला, पतित एवं वराह ( सूअर ) को श्राद्धकृत्य देखने की अनुमति नहीं देनी चाहिए ।
श्राद्धों का वर्गीकरण
श्राद्धों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया गया है। वर्गीकरण का एक प्रकार है नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य । इसके विषय में ऊपर हमने पढ़ लिया है। दूसरा है एकोद्दिष्ट एवं पार्वण", जिनमें पहला एक मृत व्यक्ति के लिए किया जाता है और दूसरा मास की अमावास्या, या आश्विन कृष्णपक्ष में, या संक्राति पर किया जाता है और इसमें मुख्यतः तीन
३१. देखिए इन दोनों की व्याख्या के लिए इस ग्रन्थ का खण्ड ३, अध्याय २९ । एकः उद्दिष्टः यस्मिन् श्राद्धे तदेोद्दिष्टमिति कर्मनामधेयम् । मिता० ( याज्ञ० १।२५१ ) ; तत्र त्रिपुरुषोद्देशेन यत् क्रियते तत्पार्वणम् । एकपुरुषोद्देशेन क्रियमाणमेकोद्दिष्टम् । मिताक्षरा ( याज्ञ० १।२१७) । 'पार्वण' का अर्थ है 'किसी पर्व दिन में सम्पावित।' विष्णुपुराण ( ३।११।११८ ) के मत से पर्व दिन ये हैं-- अमावास्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी, अष्टमी एवं संक्रान्ति । भविष्यपुराण ( श्राद्धतत्व, पृ० १९२ ) ने पार्वण श्राद्ध की परिभाषा यों की है- 'अमावास्यां यत्क्रियते पार्वणमुदाहृतम् । क्रियते वा पर्वणि यत्तत्पार्वणमिति स्थितिः ॥'
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