SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास है कि जल सूर्य एवं चन्द्र की किरणों, वायु-सम्बन्ध, गोबर एवं गोमूत्र से शुद्ध हो जाता है। इनमें कुछ पदार्थ आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से शुद्धिकारक मान लिये गये हैं। ____एक स्मृति-वचन (अपरार्क, पृ० २७३), के अनुसार वन में, प्रपा (पौसरा या प्याऊ) या कूप के पास रखे हुए घड़े (जिससे कोई भी कूप से जल निकाल सकता है) का जल या पत्थर या लकड़ी वाले पान (लो सभी के लिए रहते हैं) का एवं चर्म-पात्र (चरस, मशक आदि) का जल, भले ही उससे शूद्र का कोई सम्बन्ध न हो, पीने के अयोग्य ठहराया गया है, किन्तु आपत्-काल में ऐसा जल जितना चाहे उतना पीया जा सकता है। इससे प्रकट होता है कि प्राचीन काल में भी जलामाव में जल चर्म-पात्र या ढोलक (मशक, जिसे आजकल भिश्ती काम में लाते हैं) में भरकर लाया जाता था और द्विज लोग भी उसे प्रयोग में लाते थे। __ अब हम धातुओं एवं पात्रों की शुद्धि की चर्चा करेंगे। बौ० घ० सू० (१।५।-३४-३५ एवं १।६।३७-४१), वसिष्ठ (३१५८ एवं ६१-६३), मन (५।१११-११४), याज्ञ० (१३१८२ एवं १९०), विष्णु० (२३।२।७, २३-२४), शंख (१६॥३-४), स्मृत्यर्थसार (पृ०७०) ने धातु-शुद्धि के विषय में नियम दिये हैं, जो विभिन्न प्रकार के हैं। अतः केवल मनु एवं दो-एक के मत यहां दिये जायंगे। मनु (५।११३) का कहना है-'बुधों (विद्वान् लोगों) ने उद्घोषित किया है कि सोना आदि घातुएँ, मरकत जैसे रत्न एवं पत्थर के अन्य पात्र राख, जल एवं मिट्टी से शुद्ध हो जाते हैं, सोने की वस्तुएं (जो जूठे भोजन आदि से गन्दी नहीं हो गयी हैं) केवल जल से ही पवित्र हो जाती हैं। यही बात उन वस्तुओं के साथ भी पायी जाती है जो जल से प्राप्त होती हैं (यथा-सीपी, मूंगा, शंख आदि) या जो पत्थर से बनी होती हैं या चांदी से बनी होती हैं और जिन पर शिल्पकारी नहीं हुई रहती है। सोना-चांदी जल एवं तेज से उत्पन्न होते हैं, अतः उनकी शुद्धि उनके मूलभूत कारणों से ही होती है, अर्थात् जल से (थोड़ा अशुद्ध होने पर) एवं अग्नि से (अधिक अशुद्ध होने पर)। ताम्र, लोह, कांस्य, पीतल, टीन (अपु या रांगा) और सीसा को क्षार (भस्म), अम्ल एवं जल से परिस्थिति के अनुसार (जिस प्रकार की अशुद्धि हो) शुद्ध किया जाता है।' वसिष्ठ (३।५८, ६१-६३) का कथन है-'त्रपु (टीन), सीसा, तांबा की शुद्धि नमक के पानी, अम्ल एवं साधारण जल से हो जाती है, कांसा एवं लोह भस्म एवं जल से शुद्ध होते हैं।' लिंगपुराण (पूर्वार्ष, १८९।५८) ने कहा है-'कासा भस्म से, लोह-पात्र नमक से, ताँबा, वपु एवं सीसा अम्ल से शुद्ध होते हैं; सोने एवं चांदी के पात्र जल से, बहुमूल्य पत्थर, रत्न, मूंगे एवं मोती धातु-पात्रों के समान शुद्ध किये जाते हैं।' और देखिए वामनपुराण (१४१७०)। मेधातिथि (मनु ५।११४) ने एक उक्ति उद्धृत की है'काँसे या पीतल के पात्र जब गायों द्वारा चाट लिये जायें या जिन्हें गायें संघ लें या जो कुत्तों द्वारा चाट या छ लिये जायें, जिनमें शूद्र भोजन कर ले तथा जिन्हें कौए अपवित्र कर दें, वे नमक या भस्म द्वारा १० बार रगड़ने से शुद्ध हो जाते हैं। देखिए पराशर भी (परा० मा०, जिल्द २, भाग १, पृ० १७२)। सामान्य जीवन में व्यवहृत पात्रों एवं बरतनों की शुद्धि के विषय में बौघा० घ० सू० (११५।३४-५० एवं १।६।३३-४२), याज्ञ० (१११८२-१८३), विष्णु० (२३॥२-५), शंख (१६।११५) आदि ने विस्तृत नियम दिये हैं। इनका कतिपय नियमों में मतैक्य नहीं है। मिता० (याज्ञ० १११९०) ने कहा है कि यह कोई आवश्यक नहीं है कि तान्न ६८. प्रपास्वरण्ये घटगं च कूपे बोल्यो जलं फोशगतास्तथापः । ऋतेपि शबात्तवपेयमाहुरापद्गतः कामितवत् पिबेत्तु ॥ यम (अपरार्क, पृ० २७३, शु०प्र०, पृ० १०४)। ६९. गवाघ्रातानि कांस्यानि शूद्रोच्छिष्टानि यानि च । शुष्यन्ति बशभिः क्षारैः श्वकाकोपहतानि च ॥ मेषा० (मनु ५१११३ एवं याज्ञ० १३१९०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy