SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११५६ पनशास्त्र का इतिहास गाड़ने या अन्य विधि से नष्ट कर देने के उपरान्त एक सूक्ष्म रूप धारण करना पड़ता था। सूक्ष्म शरीर का निर्माण क्रमशः होता है (मार्कण्डेयपुराण १०।७३) और यह मृत्यु के उपरान्त बहुत दिनों के कृत्यों के उपरान्त ही मिलता है। यद्यपि ऐसी धारणा स्पष्ट रूप से पुराणों में व्यक्त की गयी है, किन्तु ऐसा नहीं समझना चाहिए कि यह सर्वथा नवीन धारणा है। इसकी ओर संकेत आरम्भिक वैदिककाल में हो चुका था (ऋ० १०।१५।१४; १०।१६।४-५, जिनका अनुवाद इस अध्याय में हो चुका है)। यद्यपि तै० सं० (१३८।५।१-२) एवं तै० बा० तथा शत० साल में कहा गया है कि पूर्वज पितृ-पुरुषों को आहुतियाँ दी जाती हैं, किन्तु इससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता है कि उनके निमित्त बना हुआ भोजन ब्राह्मणों को खाने के लिए नहीं दिया जाता, क्योंकि वैदिक यज्ञों में जब अग्नि, इन्द्र, प्रजापति, विष्णु आदि देवताओं को आहुतियां दी जाती हैं तो यज्ञ में नियुक्त पुरोहितों को भोजन एवं मेटें (दक्षिणा) दी जाती हैं। अतः ऐसा नहीं समझना चाहिए कि श्राद्ध के समय ब्रह्मभोज पश्चात्कालीन धारणा है और मृत को आहुतियों या पिण्डों के रूप में भोजन देना मौलिक धारणा या प्राचीन विधि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy