SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११५४ धर्मशास्त्र का इतिहास सूक्ष्म वायु में ही संतरण करता रहता है। नवश्राद्धों के विषय में बहुत-से सिद्धान्त हैं, जिन्हें हम स्थानाभाव से यहाँ नहीं दे रहे हैं। नवश्राद्धों के विषम दिनों में दो पिण्ड दिये जाते हैं, एक प्रति दिन का और दूसरा नवश्राद्ध का। पद्मपुराण (सृष्टिखण्ड, १०११९) ने व्यवस्था दी है कि नवश्राद्धों के अन्तर्गत भोजन नहीं करना चाहिए, नहीं तो ऐसा करने पर चान्द्रायण व्रत करना पड़ता है। आधुनिक काल में शवदाह के प्रथम दिन की क्रियाओं तथा अस्थिसंचयन की क्रियाओं के पश्चात् मतात्मा के लिए सामान्यतः दसवें दिन क्रियाएँ प्रारम्भ होती हैं। कर्ता उस स्थान पर जाता है जहाँ प्रथम दिन के कृत्य सम्पादित हुए थे, वहाँ वह संकल्प करता है और पिण्ड देते समय यह कहता है-'यह पिण्ड उस व्यक्ति के पास जाय, जिसका यह . . नाम है, यह . . गोत्र है, जिससे कि प्रेत को सताने वाली भूख एवं प्यास मिट जाय।' इसके उपरान्त वह तिलजल देता है। मुंगराज एवं तुलसी के दल रखता है और 'अनादिनिधनः' आदि का पाठ करता है, इसके उपरान्त पिण्ड को उस स्थान से हटा देता है। इसके उपरान्त वह मुरभुरी मिट्टी से एक त्रिकोणात्मक वेदिका बनाता है, गोबर से उसका शुद्धीकरण करता है, हल्दी के चूर्ण से संवारता है और उस पर जलपूर्ण पाँच घड़े रखता है, उनमें प्रत्येक पर भात का एक पिण्ड रखता है । इसके उपरान्त वह मध्य के घड़े की प्रार्थना करता है-'यह पिण्ड जलपूर्ण पात्र के साथ इस नाम एवं इस गोत्र वाले मृतात्मा के पास जाय जिससे उसकी भूख एवं प्यास मिट सके।' पूर्व, दक्षिण, पश्चिम एवं उत्तर के घड़ों के समक्ष भी प्रार्थना की जाती है, इसी प्रकार उन लोगों के लिए मी जिन्हें प्रेत ने मित्र बनाया था तथा यम, कौओं एवं रुंद्र के लिए प्रार्थना की जाती है। यहां पर कुछ भिन्न मत भी हैं; कुछ लोग चार और कुछ लोग तीन घड़ों का उल्लेख करते हैं और कुछ लोग प्रेत के लिए निश्चित स्थल पर एक घड़े के जल के साथ पिण्ड देने की बात कहते हैं और अन्यों को केवल पिण्ड देने की व्यवस्था देते हैं। इसके उपरान्त पिण्ड पर जल दिया जाता है और उपर्युक्त सभी पर चन्दन, छत्र, झंडा, रोटी रखी जाती है। इसके पश्चात् पश्चिम में रखे पिण्ड को जब तक कोई कौआ ले नहीं जाता या खा नहीं लेता तब तक कर्ता रुका रहता है। तब अश्मा (पत्थर) पर तेल लगाया जाता है और उसे जल में फेंक दिया जाता है। इसके उपरान्त कर्ता सम्बन्धियों से प्रार्थना करता है, और वे एक अंजलि या दो अंजलि जल जलाशय के तट पर प्रेत को देते हैं। इसके पश्चात् परम्परा के अनुसार पुत्र तथा अन्य लोग बाल एवं नख कटाते हैं। तब परम्परा के अनुसार एक गोत्र के सभी लोग तिल एवं तिष्यफला से स्नान करते हैं, पवित्र एवं सूखे वस्त्र धारण करते हैं, घर जाते हैं और अपना मोजन करते हैं। कुछ पुराणों एवं निबन्धों का कथन है कि जब व्यक्ति मर जाता है तो आत्मा आतिवाहिक" शरीर धारण ५६. आधुनिक काल में कौए द्वारा पिण्ड-भोजन को छूने या उस पर चोंच लगाने पर बड़ा महत्त्व दिया जाता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यदि कौआ पिण्ड को नहीं छूता तो मृतात्मा मरते समय कोई बलवती अभिकांक्षा रखता था और वह पूर्ण नहीं हुई। जब कोई कौआ पिण्ड शीघ्र ही छू लेता है तो ऐसी स्थिति में सम्बन्धी ऐसा अनुभव करते हैं कि उनके मृत सम्बन्धी की सारी अभिलाषाएं पूर्ण हो चुकी थीं! शुद्धिकौमुदी (पृ० १३५) ने काकबलिवान की प्रथा की ओर संकेत किया है तथाचारात् काकबलिदानम् । पिण्डशेषमन्नं पात्रे कृत्वा अमुकगोत्रस्य प्रेतस्यामुकशर्मणो विशेषतृप्तये यमद्वारोपस्थितवायसाय एष बलिन मम इत्युत्सृज्य कृताञ्जलिः-काक स्वं यमदूतोसि गृहाण बलिमुत्तमम् । यमलोकगतं प्रेतं त्वमाप्याययितुमर्हसि ॥ काकाय काकपुरुषाय वायसाय महात्मने । तुम्यं बलिं प्रयच्छामि प्रेतस्य तृप्तिहेतवे॥ ५७. तत्क्षणादेव गलाति शरीरमातिवाहिकम् । ऊध्वं व्रजन्ति भूतानि श्रोण्यस्मात्तस्य विग्रहान् ॥ आति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy