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________________ शोक-निवारण ११३९ जब मृत के संबंधीगण ( पुत्र आदि) जलतर्पण एवं स्नान करके जल ( नदी, जलाशय आदि) से बाहर निकल कर हरी घास के किसी स्थल पर बैठ गये हों, तो गुरुजनों (वृद्ध आदि) को उनके दुःख कम करने के लिए प्राचीन गाथाएँ कहनी चाहिए (याज्ञ० ३।७ एवं गौ० पि० सू० १।४ । २ ) । ३ विष्णुधर्मसूत्र ( २०/२२-५३ ) में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है 'कि किस प्रकार काल (समय, मृत्यु) सभी को, यहाँ तक कि इन्द्र, देवों, दैत्यों, महान् राजाओं एवं ऋषियों को घर दबोचता है, कि प्रत्येक व्यक्ति जन्म लेकर एक दिन मरण को प्राप्त होता ही है ( मृत्यु अवश्यंभावी है), कि ( पत्नी को छोड़कर) कोई भी मृत व्यक्ति के साथ यमलोक को नहीं जाता है, कि किस प्रकार सदसत् कर्म मृतात्मा के साथ जाते हैं, कि किस प्रकार श्राद्ध मृतात्मा के लिए कल्याणकर है।' इसने निष्कर्ष निकाला है कि इसी लिए संबंधियों को श्राद्ध करना चाहिए और रुदन छोड़ देना चाहिए, क्योंकि उससे कोई लाभ नहीं और केवल धर्म ही ऐसा है जो मृतात्मा के साथ जाता है। " ऐसी ही बातें याज्ञ० ( ३।८-११ = गरुड़पुराण २।४१८१-८४ ) में भी पायी जाती हैं; 'जो व्यक्ति मानवजीवन में, जो केले के पौधे के समान सारहीन है, और जो पानी के बुलबुले के समान अस्थिर है, अमरता खोजता है, वह भ्रम में पड़ा हुआ है। रुदन से क्या लाभ है जब कि शरीर पूर्व जन्म के कर्मों के कारण पंचतत्त्वों से निर्मित हो पुनः उन्हीं तत्त्वों में समा जाता । पृथिवी, सागर और देवता नाश को प्राप्त होनेवाले हैं ( भविष्य में जब कि प्रलय होता है) । यह कैसे संभव है कि वह मृत्युलोक, जो फेन के समान क्षणभंगुर है, नाश को प्राप्त नहीं होगा ? मृतात्मा को असहाय होकर अपने संबंधियों के आँसू एवं नासिकारंध्रों से निकले द्रव पदार्थ को पीना पड़ता है, अतः उन संबंधियों को रोना नहीं चाहिए बल्कि अपनी सामर्थ्य के अनुसार श्राद्धकर्म आदि करना चाहिए।' गोभिलस्मृति ( ३।३९ ) ने बलपूर्वक कहा है कि 'जो नाशवान् है और जो सभी प्राणियों की विशेषता ( नियति ) है उसके लिए रोना- कलपना क्या ? केवल शुभ कर्मों के संपादन में, जो तुम्हारे साथ जानेवाले हैं, लगे रहो ।' गोभिल ने याज्ञ० (३।८-१०) एवं महाभारत को उद्धृत किया है--'सभी संग्रह क्षय को प्राप्त होते हैं, सभी उदय पतन को, सभी संयोग वियोग को और जीवन मरण को। *५ अपरार्क ने रामायण एवं महाभारत से उदाहरण दिये हैं, यथा दुर्योधन की मृत्यु में परिवर्तित कर दिया और उन्हें संपूर्ण भारत में वितरित कर दिया। इस प्रकार ८४००० स्तूपों का निर्माण उन पर किया गया। राइस डेविड्स ने अपने ग्रंथ 'बुद्धिस्ट इंडिया' ( पृ० ७८-८०) में यह कहते हुए कि जन या धन से विशिष्ट मृत लोगों या राजकर्मचारियों या शिक्षकों के शव जलाये जाते और अवशिष्ट भस्मांश स्तूपों (पालि में यूप या टोप) के अन्दर गाड़ दिये जाते थे, निर्देश किया है कि साधारण लोगों के शव अजीव ढंग से रखे जाते थे । वे खुले स्थल में रख दिये जाते थे, नियमानुकूल वे शव या चितावशेष गाड़े नहीं जाते थे, प्रत्युत पक्षियों या पशुओं द्वारा नष्ट किये जाने के लिए छोड़ दिये जाते थे अथवा वे स्वयं प्राकृतिक रूप से नष्ट हो जाया करते थे। ४३. शोकमुत्सृज्य कल्याणीभिर्वाग्भिः सात्त्विकाभिः कथाभिः पुराणः सुकृतिभिः श्रुत्वाधोमुखा व्रजन्ति । गौतमपितृमेधसूत्र (१।४।२ ) । ४४. यह अवलोकनीय है कि विष्णुधर्मसूत्र के कुछ पद्य ( २०१२९, ४८-४९ एवं ५१-५३ ) भगवद्गीता के पद्यों (२।२२-२८, १३।२३-२५ ) के समान ही हैं। विष्णु० ( २०१४७ यथा धेनुसहस्रेषु आदि ) शान्तिपर्व (१८१।१६, १८७।२७ एवं ३२३ । १६ ) एवं विष्णुधर्मोत्तर (२।७८।२७ ) के समान ही है। इसी प्रकार देखिए विष्णु० ( २०१४१ ) एवं शान्ति ० ( १७५।१५ एवं ३२२।७३ ) । देखिए कल्पतरु ( शुद्धिप्रकाश, पृ० ९१ ९७), याज्ञ० (३१७११), विष्णु ० ( २०।२२-५३ ) एवं भगवद्गीता ( २।१३, १८ ) । ४५. सर्वे क्षयान्ता निचयाः पतनान्ताः समुच्छ्रयाः ।. संयोगा विप्रयोगान्ता मरणान्तं च जीवितम् ॥ और देखिए शान्तिपर्व ( ३३१।२० ) । ७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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