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________________ अन्त्येष्टि की विभिन्न प्रथाएँ ११३७ - थे। किन्तु सम्भव है कि शव के गाड़ने की ओर संकेत न भी हो ; कुछ पूर्वज बहुत दूर लड़ाई में मारे गये हों, या शत्रुओं द्वारा पकड़ लिये गये हों, मार डाले गये हों, और उनके शव यों ही छोड़ दिये गये हों, अर्थात् न तो उन्हें जलाया गया, न गाड़ दिया गया । छान्दोग्योपनिषद् ( ८1८1५) में आये हुए एक कथन से कुछ विद्वान् गाड़ने की बात निकालते हैं'अतः वे अब भी उन मनुष्यों को असुर नाम देते हैं जो दान नहीं देते, जो विश्वास नहीं रखते ( धर्म नहीं मानते ) और न यज्ञ ही करते हैं; क्योंकि यह असुरों का गूढ़ सिद्धान्त है। वे मृत के शरीर को मिक्षा (धूप-गंघ या पुष्प ? ) एवं वस्त्र से संवारते हैं और सोचते हैं कि वे इस प्रकार दूसरे लोक को जीत लेंगे।' यद्यपि यह वचन स्पष्ट नहीं है किन्तु असुरों, उनके शव शृंगार और परलोक-प्राप्ति की ओर जो संकेत है उससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि असुरों में शव को गाड़ने की प्रथा संभवतः थी । ऋग्वेद ( ७।८९।१) में ऋषि ने प्रार्थना की है कि 'हे वरुण, मैं मिट्टी के घर में न जाऊँ ।' संभवतः यह गाड़ने की प्रथा की ओर संकेत है। इसके अतिरिक्त अस्थियों को इकट्ठा करके पात्र में रखकर भूमि में गाड़ने और बहुत दिनों के उपरान्त उस पर श्मशान बना देने आदि की प्रथा भी प्रचलित थी, जैसा कि हम शतपथब्राह्मण आदि की उक्तियों से अभी जानेंगे । अथर्ववेद ( १८/२/२५ ) में ऐसा आया है— उन्हें वृक्ष कष्ट न दे और न पृथिवी माता ही ( ऐसा करे ) ।' इससे शवाचार ( ताबूत) एवं शव को गाड़ने की ओर संभवतः संकेत मिलता है। यह कुछ विचित्र-सा है कि पश्चिम के प्रगतिशील राष्ट्र बाइबिल के कथन की शाब्दिक व्याख्या में विश्वास करते हुए कि 'मृत का मौतिक शरीरोत्थान होता है,' केवल शव को गाड़ने की ही प्रथा से चिपके रहे और उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक ईसाई लोग शवदाह के लिए कभी तत्पर नहीं हुए। सन् १९०६ में क्रेमेशन एक्ट (इंग्लैंड में) पारित हुआ जिसके अनुसार स्वास्थ्यमंत्री - समर्थित समतल भूमि पर शवदाह करने की अनुमति अन्त्येष्टि-क्रिया के अध्यक्ष को प्राप्त होने लगी। कैथोलिक चर्च वाले अब भी शवदाह नहीं करते। आदिकालीन रोम के लोग शवदाह को सम्मान्य समझते थे और शव गाड़ने की रीति केवल उन लोगों के लिए बरती जाती थी जो आत्महन्ता या हत्यारे होते थे । कुछ समय तक शव को विकृत होने से बचाने के लिए तेल आदि में रख छोड़ना भारत में अज्ञात नहीं था । शतपथ ब्राह्मण (२९।४।२९) एवं वैखानसश्रौतसूत्र ( ३१।३२ ) ने व्यवस्था दी है कि यदि आहिताग्नि अपने लोगों से सुदूर मृत्यु को प्राप्त हो जाय तो उसके शव को तिल तेल से पूर्ण द्रोण (नाद) में रखकर गाड़ी द्वारा घर लाना चाहिए । रामायण में यह कई बार कहा गया है कि मरत के आने के बहुत दिन पूर्व से ही राजा दशरथ का शव तेलपूर्ण लम्बे द्रोण या नांद में रख दिया गया था ( अयोध्याकाण्ड, ६६।१४-१६, ७६।४) । विष्णुपुराण में आया है कि निमि का शव तेल तथा अन्य सुगंधित पदार्थों से इस प्रकार सुरक्षित रखा हुआ था कि वह सड़ा नहीं और लगता था कि मृत्यु मानो अभी हुई हो। ऋग्वेद के प्रणयन के पूर्व की स्थिति के विषय में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। ऋग्वेद तथा सिन्बु घाटी के मोहेंजोदड़ो एवं हरप्पा अवशेषों के काल के निर्णय के विषय में अभी कोई सामान्य निश्चय नहीं हो सका है। सर जान मार्शल (मोहेंजोदड़ो, जिल्द १, पृ० ८६) ने पूर्ण रूप से गाड़ने, आंशिक रूप में गाड़ने एवं शवदाह के उपरान्त गाड़ने के रीतियों की ओर संकेत किया है। लौरिया नन्दनगढ़ की खुदाई से कुछ ऐसी श्मशान भूमियों का पता चला है जो वैदिक काल की कही जाती हैं और उनमें एक छोटी स्वर्णिम वस्तु पायी गयी है जो नंगी स्त्री, संम्भवतः ४१. ये निखाता ये परोप्ता ये दग्धा ये चोदिताः । सर्वास्तानग्न आ वह पितृन् हविषे अत्तवे ॥ अथर्ववेद (१८/२०१४)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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