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धर्मशास्त्र का इतिहास
देने चाहिए (देखिए आश्व० गृह्य० ६।१०।२)। यज्ञिय घास एवं घृत का प्रबंध करना चाहिए। इसमें (अन्त्येष्टि क्रिया में) वे घृत को दही में डालते हैं। यही पृषदाज्य है जो पितरों के कृत्यों में प्रयुक्त होता है। (मृत के सम्बन्धी) उसकी पूताग्नियों एवं उसके पवित्र पात्रों को उस दिशा में जहाँ चिता के लिए गड्ढा खोदा गया है, ले जाते हैं। इसके उपरान्त विषम संख्या में बूढ़े (पुरुष और स्त्रियाँ साथ नहीं चलती) लोग शव को ढोते हैं। कुछ लोगों का कथन है कि शव बैलगाड़ी में ढोया जाता है। कुछ लोगों ने व्यवस्था दी है कि (श्मशान में) एक रंग की या काली गाय या बकरी ले जानी चाहिए। (मृत के सम्बन्धी) बायें पैर में (एक रस्सी) बाँधते हैं और उसे शव के पीछे-पीछे लेकर चलते हैं। उसके उपरान्त (मृत के) अन्य सम्बन्धी यज्ञोपवीत नीचा करके (शरीर के चारों ओर करके) एवं शिखा खोलकर चलते हैं; वृद्ध लोग आगे-आगे और छोटी अवस्था वाले पीछे-पीछे चलते हैं। श्मशान के पास पहुंच जाने पर अन्त्येष्टि क्रिया करनेवाला अपने शरीर के वामांग को उसकी ओर करके चिता-स्थल की तीन बार परिक्रमा करते हुए उस पर शमी की टहनी से जल छिड़कता है और 'अपेत वीता विच सर्पतात.' (ऋ० १०॥१४॥१) का पाठ करता है। (श्मशान के) दक्षिण-पूर्व कुछ उठे हुए एक कोण पर वह (पुत्र या कोई अन्य व्यक्ति) आहवनीय अग्नि, उत्तर-पश्चिम दिशा में गार्हपत्य अग्नि और दक्षिण-पश्चिम में दक्षिण अग्नि रखता है। इसके उपरान्त चिता-निर्माण में कोई निपुण व्यक्ति चितास्थल पर चिता के लिए लकड़ियाँ एकत्र करता है। तब कृत्यों को सम्पादित करनेवाला लकड़ी के ढूह पर (कुश) बिछाता है और उस पर कृष्ण हरिण का चर्म, जिसका केश वाला भाग ऊपर रहता है, रखता है और सम्बन्धी लोग गार्हपत्य अग्नि के उत्तर से और आहवनीय अग्नि की ओर सिर करके शव को चिता पर रखते हैं। वे तीन उच्च बों में किसी भी एक वर्ण की मत व्यक्ति की पत्नी को शव के उत्तर चिता पर सो जाने को कहते क्षत्रिय रहता है तो उसका धनष उत्तर में रख दिया जाता है। देवर, पति का कोई प्रतिनिधि या कोई शिष्य या पुराना नौकर या दास 'उदीज़ नार्य भि जीवलोकम' (ऋ०१०।१८१८) मन्त्र के साथ उस स्त्री को उठ जाने को कहता है। यदि शूद्र उठने को कहता है तो मन्त्रपाठ अन्त्येष्टि-क्रिया करनेवाला ही करता है, और 'धनुर्हस्तादाददानो' (ऋ०१०।१८।९) के साथ धनुष उठा लेता है। प्रत्यंचा को तानकर (चिता बनाने के पूर्व, जिसका वर्णन नीचे होगा) उसे टुकड़े-टुकड़े करके लकड़ियों के समह पर फेंक देता है। इसके उपरान्त उसे शव पर निम्नलिखित यज्ञिय वस्तुएँ रखनी चाहिए; दाहिने
२६. बहुत-से सूत्र पत्नी को शव के उत्तर में चिता पर सो जाने और पुनः उठ जाने की बात कहते हैं। देखिए कौशिकसूत्र (८०१४४-४५) 'इयं नारीति पत्नीमुपसंवेशयति । उदीव॑त्युत्थापयति ।' ये दोनों मन्त्र अथर्ववेद (१८५३॥१-२) के हैं। सत्याषाढश्रौतसूत्र (२८।२।१४-१६) का कथन है कि शव को चिता पर रखने के पूर्व पत्नी 'इयं नारी' उच्चारण के साथ उसके पास सुलायी जाती है और उसके उपरान्त देवर या कोई ब्राह्मण 'उदीष्वं नारों के साथ उसे उठाता है। वही सूत्र (२८।२।२२) यह भी कहता है कि शव को चिता पर रखे जाने पर या उसके पूर्व पत्नी को उसके पास सुलाना चाहिए।
२७. यहाँ पर शतपथ ब्राह्मण (१२।५।२।६) एवं कुछ सूत्र (यथा-कात्यायनश्रौतसूत्र २५।७।१९; शांखामनश्रौतसूत्र ४।१४।१६-३५; सत्यावाढीतसूत्र २४।२।२३-५०; कौशिकसूत्र ८१६१-१९; बौधायनपितृमेघसूत्र १३८-९) तथा गोभिल (३॥३४) जैसी कुछ स्मृतियां इतना और जोड़ देती हैं कि सात मार्मिक वायु-स्थानों, यथा मुख, दोनों नासारंध्रों, दोनों आँखों एवं दोनों कों पर वे सोने के टुकड़े रखते हैं। कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि घृतमिश्रित तिल भी शव पर छिड़के जाते हैं। गौतमपितृमेधसूत्र (२।७।१२) का कथन है कि अध्वयं मृत शरीर के सिर पर कपालों (गोल पात्रों) को रखता है।
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