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________________ ११०० धर्मशास्त्र का इतिहास (१०।१३५।१ ) में यम को देवों के संग सोम पीते हुए एवं मानवों का अधिपति दर्शाया गया है। यम के दो कुत्ते हैं ' जिनकी चार आँखें होती हैं, वे मार्ग की रक्षा करते हैं, यम के गुप्तचर हैं और लोगों के बीच विचरण करते हुए उनके कर्मों का निरीक्षण करते रहते हैं। ऋग्वेद (१०।९७/१६) में ऋषि ने प्रार्थना की है -- “ शपथों के उल्लंघन के प्रभाव से पौधे हमें मुक्त करें, वरुण के आदेशों के उल्लंघन से प्राप्त दोषों से वे मुक्त करें, पापियों के पैरों को बाँधने वाली यम की बेड़ियों से हमें मुक्त करें और देवों के विरुद्ध किये गये पापों से छुड़ा दें ।" ऋग्वेद (१०।१६५।४) में यम को मृत्यु कहा गया है और उल्लू या कपोत को यम का दूत माना गया है। ऋग्वेद (१|३८|५) में मरुतों को सम्बोधित करते हुए जो कहा गया है वह उपर्युक्त संकेतों के विरोध में पड़ता दीखता है—'तुम्हारी प्रशस्तियों के गायक यम के मार्ग से न जायें।' इससे प्रकट होता है कि यद्यपि ऋग्वेद में यम एक देवता है और मनुष्य के दयालु शासक के रूप में वर्णित है, तथापि उसमें भय का तत्त्व भी सन्निहित है, क्योंकि उसके दो गुप्तचर कुत्ते एवं उसकी उपाधि 'मृत्यु' इसकी ओर निर्देश कर ही देते हैं। ऋग्वेद के समान ही अथर्ववेद ने यम का उल्लेख किया है। अथर्ववेद (१८|३|१३ ) में आया है - " यम को आहुति दो, वह सर्वप्रथम मारनेवाला मानव था, वह इस लोक से सबसे पहले गया, वह विवस्वान् का पुत्र और मनुष्यों को इकट्ठा करने वाला है।"" तै० सं० ( ५ | १८| २ एवं ५ | २|३|१) में कहा गया है कि यम मर्त्यो ( मनुयों) का स्वामी है और सम्पूर्ण पृथिवी का अधिपति है । ० सं ० में ( ३।३1८-३-४ ) ऐसा घोषित है - " यम अग्नि है ओर यह (पृथिवी एवं वेदिका) यमी है। जब यजमान वेदी पर ओषधियाँ फैलाता है तो यम से कुसीद (ऋण) लेना सार्थक है । यदि यजमान को बिना उन्हें ( ओषधियाँ) जलाये इस लोक से चला जाना पड़े तो वे (यम के गण) उसके गले में बन्धन डालकर उसे दूसरे लोक में ले जा सकते हैं।" ऋग्वेद ( १० | १|४|१०) में आया है कि पितृगण यम के साथ प्रकाशानन्द पाते हैं । ऐतरेय ब्राह्मण ( १३ | ३ ) में ऐसा आया है कि मृत्यु के पास पाश ( बन्धन) एवं स्थाणु (काठ की गदा) होते हैं, जिनसे दुष्ट कर्म करने वाले मनुष्य पकड़े जाते हैं। इन कथनों से स्पष्ट होता है कि यम क्रमशः मनुष्यों को भयानक दण्ड देनेवाला माना जाने लगा था। पुराणों में यम के लोक एवं यम के सहायकों का जिनमें चित्रगुप्त मुख्य है, चित्रवत् वर्णन है। उदाहरणार्थ, वराहपुराण ( २०५११ - १० ) में यम एवं चित्रगुप्त की बातचीत का उल्लेख है, जिसमें चित्रगुप्त मृत लोगों के कर्म का फल या भाग्य घोषित करता प्रदर्शित किया गया है। अग्निपुराण (३७१।१२ ) में ऐसा आया है कि यम की आज्ञा से चित्रगुप्त ( पापी को ) भयानक नरकों में गिराने की घोषणा करता है । अब हम उत्तरकालीन वैदिक साहित्य, सूत्रों, स्मृतियों, पुराणों एवं निबन्धों में प्रतिपादित स्वर्ग-नरक की भावनाओं पर विचार करेंगे। निरुक्त ( १।११) ने कतिपय वैदिक मन्त्रों की चर्चा की है, यथा - "यदि हम (स्त्रियाँ) अपने पतियों के प्रति दुष्टाचरण करेंगी तो हम नरक में गिर सकती हैं।" निरुक्त ने नरक की व्युत्पत्ति दो प्रकार से की है; नि | अरक (न्यरक) अर्थात् (पृथिवी के) नीचे जाना, या न + र +क (नरक) अर्थात् जहाँ आनन्द के लिए तनिक भी स्थान न हो। एक अन्य स्थान ( २।११) पर निरुक्त ने पुत्र को पुत्र इसलिए कहा है कि वह ( पिता को ) पुत् नामक नरक से बचाता है । पुत्र की यही व्युत्पत्ति मनु ( ९ | १३८ -- आदिपर्व २२९/१४ विष्णुधर्मसूत्र १५/४४) ने भी की है। गौतम (१३।७ ) ने सत्य बोलने वाले को स्वर्ग और असत्य बोलने वाले को नरक मिलने की बात कही है। गौतम के मत से अपनी जाति के कर्मों को न करने से द्विजों का पतन होता है, पापों के कारण व्यक्ति १२. यो ममार प्रथमो मर्त्यानां यः प्रेयाय प्रथमो लोकमेतम् । वैवस्वतं संगमनं जनानां यमं राजानं हविषा सपर्यंत ॥ अथर्व ० ( १८|३|१३) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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