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________________ प्रायश्चित्तों (वतों) का परिचय १०९५ सौम्पकृपाछ-याज्ञ० (३।३२१) के मत से यह छ: दिनों तक किया जाता है। प्रथम पांच दिनों तक क्रम से तेल की खली, चावल उबालते समय का फेन, तक्र, केवल जल एवं जौ का सत्तू खाया जाता है और छठे दिन पूर्ण उपवास किया जाता है। मिता०, मदनपारिजात (पृ० ७१७), प्राय० सार (पृ० १७८) एवं अन्य निबन्धों के मत से उपर्युक्त पदार्थ उतनी ही मात्रा में खाये जाने चाहिए कि व्यक्ति किसी प्रकार जीवित रह सके। जाबाल (मिता०, परा० २, भाग २, पृ० १८३ आदि द्वारा उद्धृत) ने इसे चार दिनों का व्रत माना है, जिसमें प्रथम तीन दिनों तक क्रम से तेल की खली, सत्तू एवं तक खाये जाते हैं और चौथे दिन पूर्ण उपवास होता है। अत्रि (१२८-१२९) ने भी इसका उल्लेख किया है। प्रायश्चित्तप्रकाश ने ब्रह्मपुराण को उद्धत करते हुए कहा है कि इसका एक प्रकार छः दिनों का होता है जिसमें प्रथम दिन पूर्ण उपवास किया जाता है, अन्तिम दिन में केवल सत्तू खाया जाता है और बीच के चार दिनों में गोमूत्र में पकायी हुई जौ की लपसी खायी जाती है। " २७. प्रकारान्तरेण षडहः सौम्यकृच्छ उक्तो ब्रह्मपुराणे-प्रथमेऽहनि नाश्नीयात्सौम्यकृच्छेपि सर्वदा। गोमूत्रयावकाहारः षष्ठे सक्तूंच तत्समान् ॥ प्रायश्चितप्रकाश। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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