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________________ मेधातिथि ६३. मेधातिथि मेधातिथि हैं मनुस्मृति की विस्तृत एवं विद्वत्तापूर्ण व्याख्या के यशस्वी लेखक । ये मनुस्मृति के सबसे प्राचीन माने जानेवाले भाष्यकार हैं। मेधातिथि के भाष्य की कई हस्तलिखित प्रतियों में पाये जानेवाले अध्यायों के अन्त में एक श्लोक आता है, जिसका यह अर्थ टपकता है कि सहारण के पुत्र मदन नामक राजा ने किसी देश से मेधातिथि की प्रतियाँ मँगाकर भाष्य का जीर्णोद्धार कराया। बुहलर के कथनानुसार मेघातिथि कश्मीरी या उत्तर भारत के रहनेवाले थे, क्योंकि उनके भाष्य में कश्मीर का बहुत वर्णन है। ___मेधातिथि ने निम्नलिखित स्मृतिकारों की किसी-न-किसी बहाने चर्चा की है----गौतम, बौधायन, आपस्तम्ब, वसिष्ठ, विष्णु, शंख, मनु, याज्ञवल्बध, नारद, पराशर, बृहस्पति, कात्यायन आदि। मेधातिथि ने बृहस्पति को वार्ता एवं राजनीति के लेखकों में गिना है। उशना एवं चाणक्य दण्डनीति, राजनीति एवं राजशासन के लेखकों में गिने गये हैं। कौटिल्य के ग्रन्थ से बहुत स्थानों पर उद्धरण लिये गये हैं। 'कर्मणामारम्भोपायः पुरुषद्रव्यसंपद् देशकालविभागो विनिपातप्रतीकारः कार्यसिद्धिः' नामक पाँच मन्त्रांगों के नाम जैसे कौटिल्य में आये हैं वैसे ही मेधातिथि में। मेधातिथि ने असहाय एवं अन्य स्मृतिविवरणकारों के नाम लिये हैं। सांख्यकारिका के एक श्लोक का उद्धरण आया है। मेधातिथि ने पुराणों का उल्लेख किया है। उनके कथनानुसार व्यास ही पुराणों के लेखक हैं और पुराणों में सृष्टि का विवरण पाया जाता है। उन्होंने वाक्यपदीय का एक श्लोक उद्धृत किया है। मेधातिथि ने (मनु पर, २.६) लिखा है कि पांचरात्र, निन्थि (जैन) एवं पाशुपत लोग आयों के समाज से बाहर के हैं। मेधातिथि ने पूर्वमीमांसा का विशेष अध्ययन किया था। उनके भाष्य में 'विधि' एवं 'अर्थवाद' नामक शब्द बहुधा आते गये हैं। जैमिनिसूत्रों का हवाला देकर मेधातिथि ने बहुत स्थानों पर मनु की व्याख्या की है। उन्होंने शाबरभाष्य से उद्धरण लिये हैं। उनके भाष्य में कुमारिल का नाम और उनकी उपाधि भट्टपाद का उल्लेख हुआ है (मनु पर, २.१८) । मेधातिथि ने कई स्थलों पर शंकराचार्य के शारीरकभाष्य के मत का उद्घाटन किया है। किन्तु उन्होंने शंकर की मांति मोक्ष का सारन केवल ज्ञान है, ऐसा नहीं माना है, प्रत्युत उन्होंने ज्ञान एवं कर्म दोनों को आवश्यक समझा है। इसका कारण है मीमांसा का प्रभाव। मेधातिथि के भाष्य-ग्रन्थ से प्रकट होता है कि आज की ही मनुस्मृति इनके समय में भी थी। इन्होंने चिरन्तन एवं पूर्व मनुस्मृति-माष्यकारों का उल्लेख किया है। इनके भाष्य में मनोरंजक सूचनाएँ भरी हुई हैं। मिताक्षरा (याज्ञ० पर, २.१२४) ने असहाय एद मेधातिथि (मनु० पर, ९.११८) के मतों की चर्चा करते हुए कहा है कि भाइयों में बँटवारे के समय इन लोगों ने अविाहित बहिन के लिए चौथाई भाग की व्यवस्था की है। मिताक्षरा ने लिखा है कि ब्राह्मणों के अशौच की अवधियों के विषय में धारेश्वर, विश्वरूप एवं मेधातिथि ने ऋष्यशृंग के कथन का खण्डन किया है। मेधातिथि के अनुसार, शास्त्र में लिखे गये कर्तव्यों से छुटकारा ले लेने को संन्यास नहीं कहते हैं, प्रत्युत अहंकार छोड़ देने को संन्यास कहते हैं। इनके अनुसार ब्राह्मण क्षत्रिय लड़के को भी गोद ले सकता है। मनुस्मृति की व्याख्या करते हुए स्थान-स्थान पर मेधातिथि ने अपनी कृति स्मृतिविवेक से भी उद्धरण लिये हैं। स्मृतिविवेक में सम्भवतः पद्य ही थे। पराशरमाधवीय ने स्मृतिविवेक से बहुत उद्धरण लिये हैं। लोल्लट ने अपने श्राद्धप्रकरण ग्रन्थ में मेधातिथि की चर्चा की है। तिथिनिर्णय-सर्वसमुच्चय में मेधातिथि के बहुत-से इलोक उद्धृत हैं। विश्वेश्वर-सरस्वती के यतिधर्मसंग्रह में भी मेधातिथि का उल्लेख हुआ है। इन बातों से स्पष्ट है कि मेधातिथि ने धर्म पर बहुत-सी स्वतन्त्र बातें अपने किसी अन्य में लिख रखी थीं, जो पर्याप्त प्रामाणिक हो चुकी थीं। हो सकता है, यह पुस्तक कभी प्राप्त हो जाय और हमें विद्वान् भाष्यकार के कुछ अन्य विशिष्ट मत प्राप्त हो सकें। मेधातिथि ने असहाय एवं कुमारिल के नाम लिये हैं और सम्भवतः शंकर का मत भी उद्धृत किया है, अतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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