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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास मिताक्षरा एवं वेदाचार्य की स्मृतिरत्नावलि में बृहदंगिरा का भी नाम आया है। मिताक्षरा ने ती मध्यम- अंगिरा का भी नाम लिया है। ४०. ऋष्यशृङ्ग मिताक्षरा, अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका तथा अन्य ग्रन्थों ने ऋष्यश्रृंग की चर्चा आचार, अशौच, श्राद्ध एवं प्रायश्चित्त के विषय में बहुत बार की है। अपरार्क ने ऋष्यश्रृंग का एक ऐसा श्लोक उद्धृत किया है जो मिताक्षरा द्वारा शंख का बताया गया है। इस प्रकार कई एक गड़बड़ियाँ भी हैं। अभाग्यवश ऋष्यश्रृंग की स्मृति मिल नहीं सकी है। ४१. कार्णाजिनि विशेषतः श्राद्ध सम्बन्धी बातों में मिताक्षरा, अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका तथा अन्य लोगों ने इस लेखक का उल्लेख किया है। कार्ष्णाजिनि का एक श्लोक अपरार्क ने उद्धृत किया है, जिसमें ब्रह्मा के सात पुत्रों के नाम हैं, यथा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरि, बोदु एवं पञ्चशिख । इसी प्रकार अपरार्क के उद्धरण में कन्या एवं वृश्चिक राशियों के नाम भी आये हैं । ४२. चतुर्विंशतिमत इस कृति की दो प्रतियां डेकन कालेज संग्रह में उपलब्ध हैं । इसमें ५२५ श्लोक हैं । इसके इस नाम का एक कारण है। इसमें २४ ऋषियों की शिक्षाओं ( मतों) का सारतत्त्व पाया जाता है । यथा मन्, याज्ञवल्क्य, अत्रि, विष्णु, वसिष्ठ, व्यास, उशना, आपस्तम्ब, वत्स, हारीत, गुरु (बृहस्पति), नारद, पराशर, कात्यायन गार्ग्य, गौतम, यम, बौधायन, दक्ष, शंख, अंगिरा, शातातप, सांख्य (सांख्यायन ? ), संवर्त । इसमें ये विषय आये हैं- वर्णाश्रम के आचार; शौच आचमन; दन्तधावन; स्नान, प्राणायाम; गायत्रीपाठ; वेदाध्ययन; विवाह; अग्निहोत्र पंचमहाह्निक; जीविका-वृत्ति; वानप्रस्थ; सन्यासी; क्षत्रियों एवं अन्य दो जातियों के धर्म; भयंकर एवं हलके पापों के लिए प्रायश्चित्त; जीविका के साधन; श्राद्ध, जन्म-मरण पर अशौच । इस ग्रन्थ में उशना, मभु, पराशर, अंगिरा, यम, हारीत के मत उद्धृत हैं। इसमें यह आया है कि अर्हत, चार्वाक एवं बुद्धों की शिक्षाएँ लोगों को भ्रम में डालती हैं । इस ग्रन्थ के उद्धरण मिताक्षरा, अपरार्क तथा कालान्तर के ग्रंथों में मिलते हैं । किन्तु विश्वरूप एवं मेधातिथि उनके विषय में मौन हैं। हो सकता है। कि उनके काल तक यह ग्रन्थ महत्ता न प्राप्त कर सका हो । बनारस संस्कृत माला में जो संस्करण प्रकाशित है उसमें लक्ष्मीधर के पुत्र भट्टोजि की टीका है। यह टीका विद्वत्तापूर्ण है और बहुत-से लेखकों का हवाला देती है । किसी-किसी हस्तलिखित प्रति में यह भाष्य रामचन्द्र का कहा गया है। ४३. दक्ष याज्ञवल्क्य ने दक्ष का उल्लेख किया है । विश्वरूप, मिताक्षरा, अपरार्क ने दक्ष से उद्धरण लिये हैं । दक्ष के ये दो श्लोक बहुधा उद्धृत किये जाते हैं -- “सामान्यं याचितं न्यस्तमाधिर्दाराश्च तद्धनम् । अन्वाहितं च निक्षेपः सर्वस्वं चान्वये सति ।। आपत्स्वपि न देयानि नव वस्तूनि पण्डितैः । यो ददाति स मूढात्मा प्रायश्चित्तीयते नरः ।। " व्यवहार पर लिखने वाले लेखक इन श्लोकों को, जिनमें दान में न दिये जानेवाले नौ पदार्थों की चर्चा है, बहुधा उद्धृत करते ही हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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