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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास याज्ञवल्क्यस्मृति पर कई टीकाएँ हैं, जिनमें विश्वरूप, विज्ञानेश्वर, अपरार्क एवं शूलपाणि अधिक प्रसिद्ध हैं। इन टीकाकारों के विषय में हम प्रकरण ६०, ७०, ७९ एवं ९५ में पढ़ेंगे। आधुनिक भारत में मिताक्षरा (विज्ञानेश्वरलिखित) पर आधारित व्यवहारों का अधिक प्रचलन है, इस कारण याज्ञवल्क्य को अधिक गौरव प्राप्त है। ३५. पराशर-स्मृति इस स्मृति का प्रकाशन कई बार हुआ है, किन्तु जीवानन्द तथा बम्बई संस्कृतमाला के संस्करण, जिनमें माधव की विस्तृत टीका है, अधिक प्रसिद्ध हैं। पराशरस्मृति एक प्राचीन स्मृति है, क्योंकि याज्ञवल्क्य ने पराशर को प्राचीन धर्मवक्ताओं में गिना है। किन्तु इससे यह नहीं सिद्ध होता है कि हमारी वर्तमान स्मृति प्राचीन है। सम्भवतः वर्तमान प्रति प्राचीन प्रति का संशोधन है। गरुडपुराण (अध्यात १०७) ने पराशरस्मृति के ३९ श्लोकों को संक्षिप्त रूप में ले लिया है। इससे स्पष्ट है कि यह स्मृति पर्याप्त प्राचीन है। कौटिल्य ने पराशर या पराशरों के मतों की चर्चा छ: बार की है। पराशर ने राजनीति पर भी लिखा था, इससे यह स्पष्ट हो जाता है। वर्तमान पराशरस्मृति में १२ अध्याय एवं ५९३ श्लोक हैं। इसमें केवल आचार एवं प्रायश्चित्त पर चर्चाएँ हुई हैं। इसके टीकाकार माधव ने यों ही अपनी ओर से व्यवहार-सम्बन्धी विजेचन जोड़ दिया है। पराशर नाम बहुत प्राचीन है। तैत्तिरीयारण्यक एवं बृहदारण्यक (वंश में) में क्रम से व्यास पाराशर्य एवं पाराशर्य नाम आये हैं। निरुक्त ने 'पराशर' के मूल पर लिखा है। पाणिनि ने भी भिक्षसूत्र नामक ग्रन्थ को पाराशर्य माना है। स्मति की भमिका में आया है कि ऋषि लोगों ने व्यास के पास जाकर उनसे प्रार्थना को कि वे कलियग में मानवों के लिए आचार-सम्बन्धी धर्म की बातें उन्हें बतायें। व्यासजी उन्हें व में शक्तिपुत्र अपने पिता पराशर के पास ले गये और पराशर ने उन्हें वर्णधर्म के विषय में बताया। पराशरस्मृति में अन्य १९ स्मृतियों के नाम आये हैं। इस स्मृति की निम्न लिखित विषय-सूची है (१) आरम्भिक श्लोक (भूमिका); पराशर ऋषियों को धर्म-ज्ञान देते हैं; युगधर्म; चारों युगों का विविध दृष्टिकोणों से अन्तर्भेद; सन्ध्या, स्नान, जप, होम, वैदिक अध्ययन, देव-पूजा नामक छ: आह्निक; वैश्वदेव एवं अतिथि-सत्कार; अतिथि-सत्कार-स्तुति ; क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र की जीविका-वृत्ति के साधन; (२) गुहस्थधर्म; कृषि, पशुओं के प्रति अनजाने में पांच प्रकार के घातक-कर्म; (३) जन्म-मरण से उत्पन्न अशुद्धि का पवित्रीकरण; (४) आत्महत्या; दरिद्र, मूर्ख या रोगी पति को त्यागने पर स्त्री को दण्ड; कुण्ड, गोलक, परिवित्ति एवं परिवित्त के लिए परिभाषा एवं नियम; स्त्री का पुनर्विवाह; पतिव्रता नारियों को पुरस्कार; (५) साधारण बातों, जैसे कुत्ता काटने पर शुद्धि; उस ब्राह्मण के विषय में जिसने अग्नि-स्थापना की हो, यात्रा में मर रहा हो या आत्महत्या कर रहा हो; (६) कतिपय पशुओं, पक्षियों, शूद्रों, शिल्पकारों, स्त्रियों, वैश्यों, क्षत्रियों को मारने पर शुद्धीकरण; पापी ब्राह्मण; ब्राह्मण-स्तुति; (७) धातु, काष्ठ आदि के बरतनों का निर्मलीकरण; मासिक धर्म में नारी के विषय में; (८) कई प्रकार से अनजाने में गाय-बैल मारने पर शुद्धीकरण; शुद्धि के लिए किसी परिषद् में जाना; परिषद्-गठन; विद्वान् ब्राह्मण-स्तुति; (९) गाय एवं बैल को मारने के लिए छड़ी की उचित मुटाई; मोटी छड़ी से चोट पहुँचाने पर शुद्धि; (१०) वर्जित नारियों से संभोग करने पर चान्द्रायण या अन्य व्रत या शुद्धि; (११) चाण्डाल से लेकर खाने पर शुद्धि; किससे लेकर खाय और किसका न खाय, इसके विषय में नियम; पशु गिर जाने पर कूप का पवि करण; (१२) दुःस्वप्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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