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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास ३२. दोनों महाकाव्य दोनों महाकाव्यों, विशेषतः महाभारत में, बहुत-से ऐसे स्थल हैं, जहाँ धर्मशास्त्र-सम्बन्धी बातें पायी जाती हैं। कालान्तर के ग्रन्थों में रामायण एवं महाभारत की गणना स्मृतियों में हुई है। आदिपर्व में महाभारत धर्मशास्त्र कहा गया है (२.८३)। रामायण तो प्रमुखतः एक काव्य है, किन्तु एक आदर्श ग्रन्थ होने के कारण यह महाभारत के समान धर्म का उपादान माना जाता है। कालान्तर के निबन्धों में इन काव्यों की पर्याप्त चर्चा हुई है। अयोध्याकाण्ड (सर्ग १००) तथा अरण्यकाण्ड (३३) में राजनीति एवं शासन-सम्बन्धी विवेचन आया है। मास के प्रथम दिन में अनध्याय के विषय में स्मृतिचन्द्रिका ने रामायण के सुन्दरकाण्ड (५९.३१) से पर्याप्त प्रचलित श्लोक उद्धृत किया है। तर्पण एवं श्राद्ध पर भी रामायण से उद्धरण लिये गये हैं (अयोध्या०, १०३.३०; १०४.१५) । इसी प्रकार हारलता एवं अपरार्क (याज्ञ० पर, ३.८-१०) ने रामायण से उद्धरण लिये हैं। हम यहाँ रामायण एवं महाभारत के काल-निर्णय के पचड़े में नहीं पड़ेंगे। महाभारत में धर्मशास्त्र सम्बन्धी बातें संक्षिप्त रूप से यों हैं-अभिषेक (शान्ति० ४०), अराजक (शान्ति० ६७), अहिंसा (शान्ति० २६४, २६६), आश्रमधर्म (शान्ति० ६१, २४३-२४६), आचार (अनुशासन० १०४, आश्वमेधिक० ४५), आपद्धर्म (शान्ति० १३१), उपवास (अनु० १०६-१०७), गोस्तुति (अनु० ५१ एवं ७३), तीर्थ (वनपर्व, ८२, अनु० २५-२६, शल्य० ३५-५४), दण्डस्तुति (शान्ति० १५, १२१, २४६, २९५), दान (वन० १८६, शान्ति० २३५, अनु० ५७-९९), दायभाग (अनु० ४५ एवं ४७), पुत्र (अनु० ४८-४९), प्रायश्चित्त (शान्ति० ३४-३५, १६५), ब्राह्मण-वृत्ति (शान्ति० ७६-७८), भक्ष्याभक्ष्य (शान्ति० ३६, ७८), राजनीति (सभा० ५, वन० १५०, उद्योग. ३३-३४, शान्ति० ५९-१३० एवं २९८, आश्रमवासिक० ५-७), वर्णधर्म (शान्ति० ६० तथा २९७, वर्णसंकर, शान्ति० ६५, २९७ तथा अनु० ४८-४९), विवाह (अनु० ४४-४६), श्राद्ध (स्त्रीपर्व, २६-२७, अनु० ८७-९५)। रामायण की निम्नलिखित सूची संक्षिप्त रूप में ही दी जा रही है-अभिषेक (अयोध्या काण्ड १५, युद्ध० १२८), अराजक (अयो०६७), पातक (किष्किन्धा० १७.३६-३७, १८.२२२३), राजधर्म (बाल० ७, अयोध्या० १००, आरण्य० ६.११-१४, ९.२-९, ३३, ४०.१०-१४, ४१.१-६, युद्ध० १७-१८ तथा ६३), श्राद्ध (अयोध्या० ७७, १०३, १११. १०४-१२०), सत्यप्रशंसा (अयोध्या० १०९), स्त्रीधर्म (अयोध्या० २४, २६-२७, २९, ३९, ११७-११८)। ३३. पुराण पुराणों की साहित्य-परम्परा बहुत प्राचीन है। तैत्तिरीय आरण्यक में ब्राह्मणों, इतिहासों, पुराणों एवं नाराशंसो गाथाओं की चर्चा हुई है।" छान्दोग्योपनिषद् (७.१.२ एवं ४) में 'इतिहास-पुराण' को पांचवा वेद कहा गया है। बृहदारण्यक (४.१.२) में भी 'इतिहास एवं पुराण का उल्लेख हुआ है। गौतमधर्मसूत्र ने भी नाम लिया है। लगता है, आरम्भ में केवल एक ही पुराण था। मत्स्यपुराण भी आरम्भ के एक ही पुराण की बात कहता है (पुराणमेकमेवासीत् तदा कल्पान्तरेऽनघ) । पतञ्जलि के महाभाष्य में पुराण एक वचन में आया है। आपस्तम्बधर्मसूत्र के उद्धरण से ज्ञात होता है कि पुराण पद्यबद्ध थे। विद्यमान पुराण पुराने ९०. सा प्रकृत्येव तन्वङ्गो त्वद्वियोगाच्च कशिता। प्रतिपत्पाठशीलस्य विशेष तनुतां गता॥ ९१. ब्राह्मणानीतिहासान् पुराणानि कल्पान्गाथा नाराशंसीः। तैत्तिरीय आरण्यक (२.१०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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