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याज्ञवल्क्य-स्मृति
पुराणों के संशोधित रूप हैं, और सम्भवतः संशोधन-कार्य ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में हुआ था। महाभारत ने वायुपुराण का उल्लेख किया है। बाण ने भी इस पुराण का नाम लिया है। कुमारिल भट्ट के तन्त्रवार्तिक में पुराणों का उल्लेख हुआ है और विष्णु एवं मार्कण्डेय नामक पुराणों से उद्धरण लिये गये हैं। इससे स्पष्ट है कि यदि समी नहीं तो कुछ पुराण ६०० ई० के पूर्व प्रणीत हो चुके थे।
परम्परा के अनुसार प्रमुख पुराण १८ एवं उपपुराण १८ हैं। इनके नामों के विषय में बड़ा मतभेद है। मत्स्यपुराण के अनुसार निम्न १८ नाम हैं--ब्रह्म, पद्म, विष्णु, वायु, भागवत, नारदीय, मार्कण्डेय, आग्नेय, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वराह, स्कन्द, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड़ एवं ब्रह्माण्ड । विष्णुपुराण ने अपनी सूची में वायु के स्थान पर शव कहा है। पुराणों एवं उपपुराणों के विषय में अन्य जानकारियों के लिए भागवतपुराण (१२.१३. ४-८) अवलोकनीय है।
आरम्भिक भाष्यकारों में अपरार्क, बल्लालसेन एवं हेमाद्रि ने पुराणों को धर्म के उपादान के रूप में ग्रहण कर उनसे उद्धरण लिये हैं। कुल्लूक ने मनु पर टीकाओं के रूप में भविष्यपुराण से उदाहरण लिये हैं। मत्स्यपुराण में धर्मशास्त्र-सम्बन्धी बहुत-सी बातें आयी हैं। विष्णुपुराण में (३. अध्याय ८-१६) वर्णाश्रम के कर्तव्य, नित्य-नैमित्तिक क्रियाएँ, गृहस्थ-सदाचार, पंचमहायज्ञ, जातकर्म एवं अन्य संस्कार, मृत्यु पर अशौच, श्राद्ध आदि के विषय में पर्याप्त चर्चा है। इसी प्रकार सभी पुराणों में धर्मशास्त्र की कुछ-न-कुछ बातें पायी जाती हैं। अग्निपुराण के कुछ श्लोक नारदस्मति में ज्यों-के-त्यों पाये जाते हैं। गरुडपुराण में लगभग ४०० श्लोक बेतरतीब ढंग से याज्ञवल्क्य के प्रथम एवं तृतीय प्रकरणों से लिये गये हैं।
पुराणों की तिथि-समस्या महाकाव्यों की भाँति कठिन ही है। यहाँ हम उसका विवेचन नहीं करेंगे।
पुराणों के मौलिक गठन के विषय में अभी अन्तिम निर्णय नहीं उपस्थित किया जा सका है। महापुराणों की संख्या एव उनके विस्तार के विषय में बड़ा मतभेद है। विष्णुपुराण के टीकाकार विष्णुचित्त ने उसके ८,०००, ९,०००, १०,०००, २२,०००, २४,००० श्लोकों वाले संस्करणों की चर्चा की है, किन्तु उन्होंने केवल ६००० श्लोकों वाले संस्करण की हो टोका की है। इसी प्रकार अन्य पुराणों के विस्तार के विषय में मतभेद रहा है और आज भी है। आज का भारतीय धर्म पूर्णतः पौराणिक है। पुराणों में धर्मशास्त्रसम्बन्धी अनगिनत विषय एवं बातें पायी जाती हैं। १८ महापुराणों के अतिरिक्त १८ उपपुराण भी हैं । इनके अतिरिक्त गणेश, मौद्गल, देवी, कल्कि आदि पुराण-शाखा के अन्य ग्रन्थ हैं। पद्म पुराण ने १८ पुराणों को तीन विभागों में विभाजित किया है, यथा--सात्त्विक, राजस एवं तामस, और विष्णु, नारदीय, भागवत, गरुड़, पद्म एवं वराह को सात्त्विक माना है। मत्स्यपुराण ने भी इसी विभाजन को माना है। बहुत-से पुराण मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, पराशरस्मृति, नारदस्मृति के बहुत बाद प्रणीत हुए हैं।
पुराणों में धर्म-सम्बन्धी निम्न बातों का उल्लेख हुआ है--आचार, आह्निक, अशौच, आश्रमधर्म, भक्ष्याभक्ष्य, ब्राह्मण (वर्णधर्म के अन्तर्गत), दान (प्रतिष्ठा एवं उत्सर्ग के अन्तर्गत), द्रव्याशुद्धि, गोत्र एवं प्रवर, कालस्वरूप, कलिवर्ण्य, कर्मविपाक, नरक, नीति, पातक, प्रतिष्ठा, प्रायश्चित्त, राजधर्म, संस्कार, शान्ति, श्राद्ध, स्त्रीधर्म, तीर्थ, तिथि (व्रतों के अन्तर्गत); उत्सर्ग (जन-कल्याण के लिए), वर्णधर्म, विवाह (संस्कार के अन्तर्गत), व्रत, व्यवहार, युगधर्म (कलिस्वरूप के अन्तर्गत) ।
३४. याज्ञवल्क्यस्मृति इस स्मृति का प्रकाशन दर्जनों बार हुआ है। इस ग्रन्थ में निर्णयसागर संस्करण (मोघे शास्त्री धर्म-७
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