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________________ मनुस्मति माण्डलिक ने कहा है कि मनुस्मृति ने महाभारत का भावांश लिया है। बुहलर ने बड़ी छानबीन के उपरान्त यह उद्घोषित किया है कि महाभारत के बारहवें एवं तेरहवें पर्यों को किसी मानवधर्मशास्त्र का ज्ञान था और यह मानवधर्मशास्त्र आज की मनुस्मृति से गहरे रूप में सम्बन्धित लगता है। किन्तु यहाँ बुहलर ने महाभारत के साथ अपना पक्षपात ही प्रकट किया है। हाप्किन ने यह कहा है कि महाभारत के तेरहवें अध्याय में वर्तमान मनुस्मृति की चर्चा है। मनुस्मृति में बहुत-से ऐतिहासिक नाम आये हैं, यथा---अंगिरा, अगस्त्य, वेन, नहुष, सुदास, पंजवन, निमि, पृथु, 'मनु, कुबेर, गाधिपुत्र, वसिष्ठ, वत्स, अक्षमा, सारङ्गी, दक्ष, अजीगर्त, वामदेव, भरद्वाज, विश्वामित्र। इनमें बहुत-से नाम वैदिक परम्परा के भी हैं। मनुस्मृति ने यह नहीं कहा है कि ये नाम महाभारत के हैं। महाभारत में 'मनुरब्रवीत्', 'मनुराजधर्माः', 'मनुशास्त्र' जैसे शब्द आये हैं, जिनमें कुछ उद्धरण आज की मनुस्मृति में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त महाभारत के बहुत-से श्लोक मनुस्मृति से मिलते हैं, यद्यपि वहाँ यह नहीं कहा गया है कि वे मनु से लिये गये हैं। इससे स्पष्ट है कि मनुस्मृति महाभारत से पुराना ग्रन्थ है। ई० पू० चौथी शताब्दी में स्वायंभुव मनु द्वारा प्रणीत एक धर्मशास्त्र था, जो सम्भवतः पद्य में था। इसी काल में प्राचेतस मनु द्वारा प्रणीत एक राजधर्म भी था। हो सकता है कि दो ग्रन्थों के स्थान पर एक बहत ग्रन्थ रहा हो जिसमें धर्म एवं राजनीति दोनों पर विवेचन था। महाभारत ने प्राचेतस का एक वचन उद्धत किया है जो आज की मनस्मति में ज्यों-का-त्यों पाया जाता है (३.५४) । उपर्युक्त दोनों तथाकथित मनु की पुस्तकों की ओर या केवल एक पुस्तक की ओर स्क, गौतम, बौधायन एवं कौटिल्य संकेत करते हैं। महाभारत भी अपने पहले के पों में ऐसा ही करता है। यह बहुवि अच आज की मनुस्मृति का आधार एवं मूलबीज है। तब ई० पू० दूसरी शताब्दी एवं ईसा के उपरान्त दूसरी शताब्दी के बीच सम्भवतः भृगु ने मंनुस्मृति का संशोधन किया। यह कृति प्राचीन ग्रन्थ के संक्षिप्त एवं परिवर्धित रूप में प्रकट हुई। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मनु के बहुत-से उद्धरण जो अन्य पुस्तकों में मिलते हैं, आज की मनुस्मृति में क्यों नहीं प्राप्त होते। बात यह हुई कि संशोधन में बहुत-सी बातें हट गयीं और बहुत-सी आ गयीं। वर्तमान महाभारत वर्तमान मनुस्मृति के बाद की रचना है। नारद-स्मृति का यह कथन कि सुमति भार्गव ने मनु के ग्रन्थ को ४००० श्लोकों में संक्षिप्त किया, कुछ सीमा तक ठीक ही है। आज की मनुस्मृति में लगभग २७०० श्लोक हैं। हो सकता है, ४००० श्लोकों में नारद ने वृद्ध-मनु एवं बृहन्मनु के श्लोकों को भी सम्मिलित कर लिया है। मनुस्मृति का प्रभाव भारत के बाहर भी गया। चम्पा के एक अभिलेख में बहुत-से श्लोक मनु (२.१३६) से मिलते हैं। बरमा में जो धम्मथट् है, वह मनु पर आधारित है। बालि द्वीप का कानून मनुस्मृति पर आधारित था। मनु के बहुत-से टीकाकार हो गये हैं। मेधातिथि, गोविन्दराज एवं कुल्लूक के विषय में हम कुछ विस्तार से ६३वें, ७६वें एवं ८८वें प्रकरण में पढ़ेंगे। इन लोगों के अतिरिक्त व्याख्याकार हैं नारायण, राघवानन्द, नन्दन एवं रामचन्द्र। कुछ अन्य व्याख्याकार थे जिनकी कृतियां पूर्णरूप से उपस्थित नहीं हैं, अन्य हैं एक कश्मीरी टीकाकार (नाम अज्ञात है), असहाय, उदयकर, भागुरि, भोजदेव, धरणीधर। मेघातिथि ने अपने पहले के भाष्यकारों की ओर संकेत किया है। ___ आह्निक, व्यवहार एवं प्रायश्चित्त पर विश्वरूप (याज्ञ० पर, १.६९), मिताक्षरा, स्मृतिचन्द्रिका, पराशरमाधवीय तथा अन्य लेखकों ने वृद्ध-मनु से दर्जनों उद्धरण लिये हैं। मिताक्षरा (याज्ञः पर, ३.२०) तथा अन्य कृतियों ने बृहत्मनु से कुछ श्लोक उद्धृत किये हैं। किन्तु अभी तक वृद्ध-मनु एवं बृहन्मनु के कोई सतन्य ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हो सके हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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