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________________ मनुस्मृति पढ़ाया । मार्कण्डेय ने भी इसे ८,००० श्लोकों में संक्षिप्त कर सुमति भार्गव को दिया, जिन्होंने स्वयं उसे ४,००० श्लोकों में संक्षिप्त किया। वर्तमान मनुस्मृति में आया है (१.३२-३३) कि ब्रह्मा से विराट की उद्भूति हुई, जिन्होंने मनु को उत्पन्न किया, जिनसे भृगु, नारद आदि ऋषि उत्पन्न हुए; ब्रह्मा ने मनु को शास्त्राध्ययन कराया, मनु ने दस ऋषियों (१.५८) को वह ज्ञान दिया; कुछ बड़े ऋषि मनु के यहां गये और वर्णों एवं मध्यम जातियों के धर्मों (कर्तव्यों) को पढ़ाने के लिए उनसे प्रार्थना की और मनु ने कहा कि यह कार्य उनके शिष्य भृगु करेंगे (१.५९-६०)। मनुस्मृति में यह पढ़ाने की बात आरम्भ से अन्त तक है और स्थान-स्थान पर ऋषि लोग भृगु के व्याख्यान को रोककर उनसे कठिन बातें समझ लेते हैं (५.१-२; १२.१-२)। मनु सर्वत्र विराजमान हैं; उनका नाम 'मनुराह' (९.१५८, १०.७८ आदि) या 'मनुरजवीत्' या 'मरोरनुशासनम्' (८. १३९, २७९, ९.२३९ आदि) के रूप में दर्जनों बार आया है। भविष्य पुराण के अनुसार, जैसा कि हमें हेमाद्रि, संस्कारमयूख तथा अन्य ग्रन्थों से पता चलता है, स्वायंभुव-शास्त्र के चार संस्करण थे, जो भृगु, नारद, बृहस्पति एवं अंगिरा द्वारा प्रणीत थे। अति प्राचीन लेखक विश्वरूप ने मनुस्मृति के उद्धरण दिये हैं और वहाँ मनु स्वयंभू कहे गये हैं (याज्ञ पर भाष्य, २. ७३, ७४, ८३, ८५, जहाँ मनु० ८.६८, ७०-७१, ३८० एवं १०५-६ क्रमशः स्वयंभू के नाम से उद्धृत हैं)। किन्तु विश्वरूप हारा उद्धृत भृयु की बातें मनुस्मृति में नहीं पायी जाती। इसी प्रकार अपरार्क द्वारा उद्धृत भृगु की बातें भी मनुस्मृति में नहीं पायी जाती। . मनुस्मृति का प्रणयन किसने किया, यह कहना कठिन है। यह सत्य है कि मानव के आदि पूर्वज मनु ने इसका प्रणयन नहीं किया है। इसके प्रणेता ने अपना नाम क्यों छिपा रखा, यह कहना दुष्कर ही है। हो सकता है कि इस महान् ग्रन्थ को प्राचीनता एवं प्रामाणिकता देने के लिए ही इसे मनुकृत कहा गया है। मैक्समूलर के साथ डा० बुहलर ने यही प्रमाणित करने का प्रयत्न किया है कि मानव-चरण के धर्मसूत्र का संशोधित रूप ही मनुस्मृति है। किन्तु सम्भवतः मानवधर्मसूत्र नामक ग्रन्थ कभी विद्यमान ही नहीं था (देखिए प्रकरण १३)। महाभारत ने स्वायंभुव मनु एवं प्राचेतस मनु में अन्तर बताया है, जिनमें प्रथम धर्मशास्वकार एवं दूसरे अर्थशास्त्रकार कहे गये हैं। कहीं-कहीं केवल मनु राजधर्म या अर्थविद्या के प्रणेता कहे गये हैं। हो सकता है, आरम्भ में मनु के नाम से दो ग्रन्थ रहे होंगे। जब कौटिल्य 'मानवों' की ओर संकेत करते हैं तो वहाँ सम्भवतः वे प्राचेतस मनु की बात उठाते हैं। चाहे जो हो, यह कल्पना करना असंगत नहीं है कि मनुस्मृति के लेखक ने मनु के नाम वाले धर्मशास्त्र एवं अर्थशास्त्र की बातों को ले लिया। यह बात सम्भवतः कौटिल्य को ज्ञात नहीं थी, क्योंकि सम्भवतः तब तक यह संशोधन-सम्पादन नहीं हो सका था, या हुआ भी रहा होगा तो कौटिल्य को इसकी सूचना नहीं थी। वर्तमान मनुस्मृति में इसके लेखक को स्वायंभुव मनु कहा गया है, जिनके अतिरिक्त छ: अन्य मनुओं की चर्चा की गयी है, जिनमें प्राचेतस की गणना नहीं हुई है। - वर्तमान मनुस्मृति में १२ अध्याय एव' २६९४ श्लोक हैं। मनुस्मृति सरल एवं धाराप्रवाह शैली में प्रणीत है। इसका व्याकरण अधिकांश में पाणिनि-सम्मत है। इसके सिद्धान्त गौतम, बौधायन एवं आपस्तम्ब के धर्मसूत्रों ८८. भार्गवीया नारखोयाबार्हस्पत्याङ्गिरस्यपि। स्वायंभुवस्य शास्त्रस्य चतस्रः संहिता मताः॥ चतुर्वर्ग०, पानमण, पृ० ५२८, संस्कारमयूख, पृ०२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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