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धर्मशास्त्र का इतिहास से बहुत-कुछ मिलते-जुलते हैं। इसके बहुत-से श्लोक वसिष्ठ एवं विष्णु के धर्म सूत्रों में भी पाये जाते हैं। भाषा एवं सिद्धान्तों में मनुस्मृति एवं कौटिलीय में बहुत-कुछ समानता है।
मनुस्मृप्ति की विषय-सूची यह है--(१) वर्णधर्म की शिक्षा के लिए ऋषिगण मनु के पास जाते हैं; मनु बहुत कुछ सांख्य मत के अनुसार आत्मरूप से स्थित भगवान् से विश्व-सृष्टि का विवरण देते हैं; विराट की उत्पत्ति, विराट् से मनु, मनु से दस ऋषियों की सृष्टि हुई; भाँति-माँति के जीव, यथा--मनुष्य, पशु, पक्षी आदि की सृष्टि ; ब्रह्मा वे धर्म-शिक्षा मनु को दी, मनु ने ऋषियों को शिक्षित किया; मनु ने भृगु को ऋषियों को धर्म की शिक्षा देने का आदेश दिया ; स्वायंभुव मनु से छः अन्य मनु उत्पन्न हुए; निमेष से वर्ष तक की कालइकाइयाँ, चारों युग एवं उनके सन्ध्या-प्रकाश; एक सहस्र युग ब्रह्मा के एक दिन के बराबर हैं; मन्वन्तर, प्रलय का विस्तार; चारों युगों में क्रमशः धर्मावनति; चारों युगों में विभिन्न धर्म एवं लक्ष्य ; चारों वर्गों के विशेषाधिकार एवं कर्तव्य ; ब्राह्मणों एवं मनु के शास्त्र की स्तुति; आचार परमोच्च धर्म है ; सम्पूर्ण शास्त्र की विषयसूची; (२) धर्म-परिभाषा; धर्म के उपादान हैं वेद, स्मृति, भद्र' लोगों का आचार, आत्मतुष्टि ; इस शास्त्र के लिए किसका अधिकार है; ब्रह्मावर्त, ब्रह्मर्षिदेश, मध्यदेश, आर्यावर्त की सीमाएँ; संस्कार क्यों आवश्यक हैं; ऐसे संस्कार, यथा-जातकर्म, नामधेय, चूडाकर्म, उपनयन; वर्गों के उपनयन का उचित काल, उचित मेखला, पवित्र जनेऊ, तीन वर्षों के ब्रह्मचारियों के लिए दण्ड, मृगछाला, ब्रह्मचारी के कर्तव्य एवं आचरण; (३) ३६, १८ एवं २ वर्षों का ब्रह्मचर्य ; समावर्तन, विवाह; विवाहयोग्य लड़की ; ब्राह्मण चारों वर्गों की लड़कियों से विवाह कर सकता है; आठ प्रकार के विवाहों की परिभाषा, किस जाति के लिए कौन विवाह उपयुक्त है, पति-पत्नी के कर्तव्य ; नारी-स्तुति, पंचाह्निक; गृहस्थ जीवन की प्रशंसा, अतिथि-सत्कार, मधुपर्क; श्राद्ध, श्राद्ध में कौन निमन्त्रित नहीं होते; (४) गृहस्थ की जीवन-विधि एवं वृत्ति; स्नातक-आचार-विधि, अनध्याय-नियम; वर्जित एवं अवजित भोज्य एवं पेय के लिए नियम; (५) कौन-से मांस एवं तरकारियां खानी चाहिए; जन्म-मरण पर अशुद्धिकाल, सपिण्ड एवं समानोदक की परिभाषा; विभिन्न प्रकार से विभिन्न वस्तुओं के स्पर्श से पवित्रीकरण, पत्नी एवं विधवा के कर्तव्य ; (६) वानप्रस्थ होने का काल, उसकी जीवनचर्या, परिव्राजक एवं उसके कर्तव्य ; गृहस्थ-स्तुति; (७) राजधर्म, दण्ड-स्तुति, राजा के लिए चार विद्याएँ, काम से उत्पन्न राजा के दस अवगुण एवं क्रोध से उत्पन्न आठ अवगुण (दोष); मन्त्रि-परिषद की रचना, दूत के गुण (पात्रता), दुर्ग एवं राजधानी, पुरुष एवं विविध विभागों के अध्यक्ष; युद्ध-नियम; साम. दान, भेद एवं दण्ड नामक चार साधन; ग्राममुखिया से ऊपर वाले राज्याधिकारी; कर-नियम; बारह राजाओं के मण्डल की रचना; छ: गुण-संधि, युद्ध-स्थिति, शत्रु पर आक्रमण, आसन, शरण लेना एवं द्वध; विजयी के कर्तव्य ; (८) न्यायशासन-सम्बन्धी राजा के कर्तव्य ; व्यवहारों के १८ नाम, राजा एवं न्यायाधीश, अन्य न्यायाधीश ; सभा-रचना; नाबालिगों, विधवाओं, असहाय लोगों, कोष आदि को देखने के लिए राजा का धर्म; चोरी गये हुए धन का पता लगाने में राजा का कर्तव्य; दिये हुए ऋण को प्राप्त करने के लिए ऋणदाता के साधन; स्थितियाँ जिनके कारण अधिकारी मुकदमा हार जाता है, साक्षियों की पात्रता, साक्ष्य के लिए अयोग्य व्यक्ति, शपथ, झूठी गवाही के लिए अर्थ-दण्ड,
८९. तुलना कीजिए-'अलब्धलाभार्था लब्धपरिरक्षिणी रक्षितविवर्धनी वृद्धस्य तीर्थेषु प्रतिपादिनी च। कोटिल्य (१-४) और 'अलम्पमिच्छेदण्डेन लब्धं रक्षेदवेक्षया। रक्षितं वर्धये वृद्धमा वृद्धं पात्रेषु निक्षिपेत् ॥ मनु० (७.१०१)।
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