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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास २८. शातातप याज्ञवल्क्य एवं पराशर ने शातातप को धर्मवक्ताओं में गिना है ( १.४-५ ) । विश्वरूप, हरदत्त एव अपरार्क ने प्रायश्चित्त के विषय में शातातप के बहुत से गद्यांश उद्धृत किये हैं। मिताक्षरा, स्मृतिचन्द्रिका तथा अन्य ग्रन्थों में शातातप के बहुत से श्लोक लिये गये हैं। लगता है, शातातप के नाम की कई स्मृतियाँ हैं । जीवानन्द के संग्रह में कर्मविपाक नामक शातातपस्मृति है जिसमें ६ अध्याय एवं २३१ श्लोक हैं। यह बहुत बाद की कृति है । इसमें बालहत्या के लिए हरिवंश ( २.३० ) का पाठ करना कहा गया है। 'इण्डिया आफिस' की पुस्तक सूची में १३६२वाँ ग्रन्थ है शातातपस्मृति, जो १२ अध्यायों में है । अपरार्क ने कई स्थानों पर वृद्ध शातातप के मतों की चर्चा करते हुए शातातप का भी उल्लेख किया है। डेकन कालेज के संग्रह में तथा 'इण्डिया आफिस में १३६०वाँ ग्रन्थ वृद्ध - शातातप का है। हेमाद्रि ने भी अन्य स्मृतिकारों में वृद्ध-शातातप का नाम लिया है। जीमूतवाहन की व्यवहारमात्रिका में वृद्ध - शातातप का उद्धरण आया है जो यह सिद्ध करता है कि इन्होंने व्यवहार पर भी कुछ लिखा था । मिताक्षरा ने (याज्ञ० पर, ३.२९०) बृहत्शातातप की तथा हेमाद्रि ने उनके भाष्यकार की चर्चा की है। ૪૦ २९. सुमन्तु विश्वरूप, हरदत्त एवं अपरार्क के भाष्यों से पता चलता है कि विशेषतः आचार एवं प्रायश्चित्त पर सुमन्तु ने एक धर्मसूत्र प्रणीत किया था । विश्वरूप ने इसके गद्यांशों को उद्धृत किया | विश्वरूप द्वारा लिखे गये उद्धरण अपरार्क में भी पाये जाते हैं । अशौच पर सुमन्तु के सूत्र हारलता द्वारा भी उद्धृत हैं। सरस्वतीविलास में राज्य के सात अंगों के विषय में सुमन्तु के एक गद्यांश की चर्चा हुई है । विश्वरूप के उद्धरणों से कहा जा सकता है कि सुमन्तु का धर्मसूत्र बहुत पहले प्रणीत हुआ था । एवं पराशर में से किसी ने भी सुमन्तु को धर्मवक्ताओं में नहीं गिना है। भागवतपुराण (१२.६.७५ तथा ७.१ ) में सुमन्तु को जैमिनि का शिष्य है । महाभारत (शान्तिपर्व, १४१.१९) में सुमन्तु को व्यास का शिष्य कहा गया है। प्रति दिन के तर्पण ( आह्निक तर्पण) में जैमिनि, वैशम्पायन, पैल के साथ सुमन्तु का भी नाम आया है। अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका तथा अन्य ग्रन्थों में सुमन्तु के धर्म-सम्बन्धी श्लोक उद्धृत हुए हैं। हो सकता है, यह सुमन्तुधर्मसूत्र के अतिरिक्त कोई अन्य ग्रन्थ है । मिताक्षरा तथा अपरार्क ने सुमन्तु के व्यवहार-सम्बन्धी श्लोक नहीं उद्धृत किये, किन्तु सरस्वतीविलास में इस सम्बन्ध में बहुत उद्धरण हैं । ३०. स्मृतियाँ 'स्मृति' शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है । एक अर्थ में यह वेदवाङमय से इतर ग्रन्थों, यथा पाणिनि के व्याकरण, श्रौत, गृह्य एवं धर्मसूत्रों, महाभारत, मनु, याज्ञवल्क्य एवं अन्य ग्रन्थों से सम्बन्धित है । किन्तु संकीर्ण अर्थ में स्मृति एवं धर्मशास्त्र का अर्थ एक ही है, जैसा कि मनु का कहना है । " तैत्तिरीय आरण्यक में भी 'स्मृति' शब्द आया है ( १२ ) । गौतम (१.२) तथा वसिष्ठ (१.४) ने स्मृति को धर्म का उपादान माना है । किन्तु बात ऐसी है नहीं । याज्ञवल्क्य किन्तु सुमन्तु नाम बहुत प्राचीन है। एवं अथर्ववेद का उद्घोषक कहा गया ८५. श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रं तु वै स्मृतिः । मनु० २.१० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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