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________________ बृहस्पति, भरखाव एवं भावान हैं। अपरार्क (याज्ञ० पर, १.४-५), कल्पतरु (वीरमित्रोदय, परिभाषा प्र०, पृ. १६), हेमाद्रि एवं जीमूतवाहन (कालविवेक) ने बुध का उल्लेख किया है। डेकन कालेज संग्रह में बुध के धर्मशास्त्र की दो प्रतियां हैं। ये दोनों हस्तलिखित प्रतियां गद्य में ही हैं। यह धर्मसूत्र बहुत ही संक्षेप में है। इसमें उपनयन, विवाह, गर्भाधान से उपनयन तक के संस्कारों, पंचयज्ञों, श्राद्ध, पाकयज्ञ, हविर्यज्ञ, सोमयाग, राजधर्म आदि की चर्चा हुई है। यह प्राचीन ग्रन्थ नहीं है। लगता है, यह किसी एक बृहत् ग्रन्थ का संक्षिप्त संस्करण है। २६. बृहस्पति कौटिल्य ने बृहस्पति को एक प्राचीन अर्थशास्त्रकार माना है और छ: बार उनकी चर्चा की है। महाभारत (शान्तिपर्व, ५९.८०-८५) में आया है कि बृहस्पति ने धर्म, अर्थ एवं काम पर रचित ब्रह्मा के ग्रन्थ को ३००० अध्यायों में संक्षिप्त किया। वनपर्व (३२.६१) में बृहस्पति-नीति का भी उल्लेख है। बृहस्पति द्वारा उच्चरित श्लोकों एवं गाथाओं को महाभारत ने कई बार कहा है। अनुशासनपर्व (३९.१०-११) में बृहस्पति एवं अन्य लेखकों के अर्थशास्त्र की चर्चा हुई है। कामसूत्र में भी आया है कि ब्रह्मा ने धर्म, अर्थ एवं काम पर एक सौ सहस्र अध्यायों में एक महाग्रन्थ लिखा है और बृहस्पति ने उसी के एक अंश अर्थशास्त्र पर लिखा। अश्वघोष ने भी बृहस्पति के राजशास्त्र का उल्लेख किया है। कामन्दक एवं पंचतन्त्र ने भी बृहस्पति के मत का प्रकाशन किया है. (पंचतन्त्र, २.४१)। यशस्तिलक में ऐसा आया है कि बृहस्पति की नीति में देवों को कोई स्थान नहीं मिला है। सेनापति, प्रतीहार, दूत आदि की पात्रताओं के विषय में विश्वरूप ने ऐसे गद्य-अवतरण दिये हैं, जो बृहस्पति के हैं, ऐसा लगता है। विश्वरूप एवं हरदत्त के उल्लेखों से पता चलता है कि बृहस्पति ने धर्म एवं व्यवहार-सम्बन्धी विषय पर एक सूत्र-ग्रन्थ भी लिखा था। यह कहना कि एक ही बृहस्पति ने धर्मसूत्र एवं अर्थशास्त्र दोनों पर ग्रन्थ लिखे, सन्देहास्पद है। यह कहना अधिक उपयुक्त है कि दोनों के दो रचयिता थे। याज्ञवल्क्य ने बृहस्पति को 'धर्मवक्ता' कहा है (१.४-५)। मिताक्षरा तथा अन्य भाष्यों एव निबन्धों में बहस्पति के व्यवहार-सम्बन्धी लगभग ७०० श्लोक तथा आचार एवं प्रायश्चित्त-सम्बन्धी कछ सौ श्लोक उद्धृत हैं, किन्तु यह एक अलग ग्रन्थ है, जिसकी चर्चा आगे होगी। 'बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र' बहुत बाद को लिखा गया है। २७. भरद्वाज एवं भारद्वाज भारद्वाज के नाम से एक श्रौतसूत्र एवं एक गृह्यसूत्र है। विश्वरूप-लिखित उद्धरणों से व्यक्त होता है कि भरद्वाज एवं भारद्वाज रचित एक धर्मसूत्र था। सम्भवतः भरद्वाज एवं भारद्वाज दोनों एक ही व्यक्ति हैं। अपरार्क ने विश्वरूप की भांति भरद्वाज से उद्धरण लिये हैं। स्मृतिचन्द्रिका एवं हरदत्त तथा अन्य ग्रन्थों में भी भारद्वाज का उल्लेख है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से प्रकट होता है कि भारद्वाज अर्थशास्त्र के एक प्राचीन लेखक थे। कौटिल्य ने भारद्वाज को सात बार तथा कणिङ्क भारद्वाज को एक बार लिखा है। महाभारत (शान्तिपर्व, अध्याय १४०) में भारद्वाज एवं सौवीर के राजा शत्रञ्जय के बीच वार्ता की चर्चा है। इसी पर्व में भारद्वाज को राजशास्त्र के लेखकों में गिना गया है। यशस्तिलक ने भी भारद्वाज के दो श्लोकों को उद्धृत किया है। इससे स्पष्ट है कि भारद्वाज का राजनीति-विषयक ग्रन्थ दसवीं शताब्दी में अवश्य विद्यमान था। पराशरमाधवीय में भरद्वाज की चर्चा हुई है। व्यवहार के विषय में सरस्वतीविलास में भरद्वाज की बातें उद्धृत की गयी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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