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________________ ३६ धर्मशास्त्र का इतिहास अत्रिसंहिता का प्रकाशन हुआ है, जिसमें ४०० श्लोक हैं। इसमें स्वयं अत्रि प्रमाण-स्वरूप उद्धृत किये गये हैं। इसमें आपस्तम्ब, यम, व्यास, शंख, शातातप के नाम एवं उनकी कृतियों की चर्चा है। वेदान्त, सांख्य, योग, पुराण, भागवत का भी वर्णन आया है। अत्रि में सात प्रकार के अन्त्यजों के नाम आये हैं, यथा धोबी, चर्मकार, नट, बुरुड, कैवर्त (मल्लाह), मेद एवं भिल्ल। अत्रि ने कहा है कि मेला, विवाह-काल, वैदिक यज्ञों एवं अन्य उत्सवों में अस्पृश्यता का प्रश्न नहीं उठता। उन्होंने कहा है कि मगध, मथुरा एवं अन्य तीन स्थानों के ब्राह्मण, चाहे वे बृहस्पति के समान विद्वान् ही क्यों न हों, श्राद्ध के समय नहीं आदृत होते। ____ अत्रि में राशि-चक्र के लक्षण, कन्या एवं वृश्चिक के नाम आये हैं, अतः यह कृति ईसा की प्रथम शताब्दी के पहले प्रणीत नहीं हुई होगी। जीवानन्द के संग्रह में एक लघु-अत्रि (भाग १, पृ० १-१२) है, जो ६ अध्यायों एवं १२० श्लोकों में है। इसमें मनु का नाम आया है। इसके बहुत-से अंश वसिष्ठधर्मसूत्र में भी आये हैं। जीवानन्द में एक वृद्धा यस्मृति (भाग १, पृ० ४७-५७) भी है, जिसमें १४० श्लोक एवं ५ अध्याय हैं। इसमें और लघु अत्रि-स्मृति में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। महाभारत में भी एक अत्रि के मत का वर्णन आया है (अनुशासन, ६५, १)। १७. उशना कई सूत्रों से पता चलता है कि उशना ने राजनीति पर एक ग्रन्थ लिखा था। स्वयं कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में उशना का नाम सात बार लिया है। उसमें शासन-सम्बन्धी बातों के अतिरिक्त अन्य वातें भी थीं। महाभारत में भी उशना की राजनीति की ओर संकेत है (शान्तिपर्व, १३९-७०)। मुद्राराक्षस में भी औशनसी दण्डनीति का नाम आया है। याज्ञवल्क्य के व्याख्याकार विश्वरूप ने भी उशना की चर्चा की है। लगता है, औशनसी-राजनीति में श्लोक भी थे, क्योंकि मनु के भाष्यकार मेघातिथि ने दो श्लोक उद्धृत किये हैं (७.१५; ८.५०)। ताण्ड्य महाब्राह्मण का कहना है कि काव्य उशना असुरों के पुरोहित थे (७.५.२०)। डेकन कालेज संग्रह में औशनस धर्मशास्त्र की दो अप्रकाशित प्रतियाँ हैं। दोनों कई अंशों में अपूर्ण हैं। इस धर्मशास्त्र के विषयों में कोई नवीनता नहीं है। इसमें १४ विद्याओं के नाम आये हैं, यथा ४ वेद, ६ अंग, मीमांसा, न्याय, धर्मशास्त्र एवं पुराण। औशनस का जाति-सम्बन्धी वर्णन बौधायन से बहुत मिलता है। यह कृति गद्य-पद्य दोनों में है। इसमें ब्राह्मण की शूद्र पत्नी से उत्पन्न पुत्र ‘पारशव' कहा जाता है, किन्तु कुछ धर्मशास्त्रकारों ने उसे 'निषाद' कहा है। मनु और उशना के बहुत-से अंश एक ही हैं। औशनस-धर्मसूत्र के बहुत-से गद्यांश मनु के श्लोकों में आते हैं। इस धर्मसूत्र में वसिष्ठ, हारीत, शौनक एवं गौतम के मत भी उद्धृत हैं। गौतमवर्मसूत्र के व्याख्याकार हरदत्त तथा स्मृतिचद्रिका के उद्धरणों से पता चलता है कि उन्हें उशना की पुस्तक की जानकारी थी। इन विवेचनों से पता चलता है कि औशनस धर्मसूत्र गौतम, वसिष्ठ एवं मनु के बाद की कृति है। जीवानन्द के संग्रह में एक अन्य औशनस धर्मशास्त्र आया है और यही बात आनन्दाश्रम संग्रह में भी है। मिताक्षरा में आया है कि जीविका के साधनों की जानकारी के लिए उशना एवं मनु की कृतियों को पढ़ना चाहिए। मनु के टीकाकार कुल्लूक (१०.४९) ने भी औशनस ग्रंथ की चर्चा की है। एक ओशनस-स्मृति गी है, जिसमें मनु, भृगु (भृगुपुत्र तृतीय), प्रजापति के साथ उशना का भी नाम आया है। इसमें पुराण, मीमांसा, वेदान्त, पांचरात्र, कापालिक एवं पाशुपत की चर्चा आयी है। किन्तु उपर्युक्त कृतियों में राजनीति-विषयक बातें नहीं आयी हैं। मिताक्षरा (याज्ञ० ३.२६०) एवं अपरार्क में उशना के पद्यांश एवं गद्यांश दोनों के उद्धरण आये हैं। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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