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दान के प्रकार होने में, प्रतिलाम की दशा में, कुपात्र एवं पापी को वचन रूप में दिये गये दान अप्रामाणिक माने जाते हैं। कात्यायन (अपरार्क पृ० ७८१ में उद्धृत) ने भी यही बात कही है, किन्तु यह भी जोड़ दिया है कि यदि कोई प्राणभय के कारण अपनी सम्पत्ति दे देने के लिए प्रतिश्रुत हो गया हो तो वह अपने वचन से पलट सकता है । और देखिए बृहस्पति (अपरार्क, पृ० ७८२)। मनु (८।१६५) के मत से छल द्वारा सम्पादित बिक्री, इजारा (बन्धक), दान या वे सारे कारवार जितमें कपटाचरण पाया जाय, राजा द्वारा रद्द कर दिये जाने चाहिए। किन्तु कात्यायन ने एक अपवाद दिया है। स्वस्थता या अस्वस्थता की दशा में धार्मिकं उपयोग के लिए पिता द्वारा प्रतिश्रुत दान पिता के मर जाने पर पुत्र द्वारा दिया जाना चाहिए. (अपरार्क पृ० ७८२)।
२५. कुराहण्टभीतातलम्पबालस्थविरमूतमत्तोन्मतवाक्यान्यनृतान्यपातकानि। गौतम ५२। अवतं तु भयकोषशोकबेगसमन्वितः। तबोत्कोवपरीहासव्यत्यासछल्योगतः॥ बालमूढास्वतन्त्रातमत्तोन्मत्तापजितः। कर्ता ममा कर्मेति प्रतिसाभेच्छया च यत्॥ अपात्र पानमित्युक्ते कार्य वा धर्मसंहिते। यहतं स्यावविज्ञानावरतमिति तत्स्मृतम् ॥ नारर (दत्तात्रयानिक १.१०)।
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