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धर्मशास्त्र का इतिहास गुरु को दान में दे देता है। हेमाद्रि ने घोड़े की आकृति के चारों पैरों एवं मुख पर चांदी की चद्दर लगाने की बात कही है (दानखण्ड, पृ० २७८)।
हिरण्याश्वरथ-(मत्स्य २८१) । सात या चार घोड़ों, चार पहियों एवं ध्वजा वाला एक सोने का रथ बनवाना चाहिए। ध्वजा पर नीले रंग का कलश रहना चाहिए। चार मंगल-घट होते हैं। इसका दान चामरों, छाता, रेशमी परिधानों एवं सामर्थ्य के अनुसार गायों के साथ किया जाता है।
हेमहस्तिरप-(मत्स्य २८२)। चार पहियों एवं मध्य में आठ लोकपालों, ब्रह्मा, शिव, सूर्य, नारायण, लक्ष्मी एवं पुष्टि की आकृतियों के साथ एक सोने का रथ (छोटा अर्थात् खिलौने के आकार का) बनवाना चाहिए। ध्वजा पर गरुड़ एवं स्तम्भ पर गणेश की आकृति होनी चाहिए। रथ में चार हाथी होने चाहिए। आह्वान के उपरान्त रथ का दान कर दिया जाता है।
पञ्चांगलक-(मत्स्य २८३)। पुष्ट वृक्षों की लकड़ी के पांच हल बनवाने चाहिए। इसी प्रकार पांच फाल सोने के होने चाहिए। दस बैलों को सजाना चाहिए; उनके सींगों पर सोना, पूंछ में मोती, खुरों में चांदी लगानी चाहिए। उपर्युक्त वस्तुओं का दान सामर्थ्य के अनुसार एक खर्बट के बराबरं भूमि, खेट या ग्राम या १०० या ५० निवतनों के साथ होना चाहिए। एक सपत्नीक ब्राह्मण को सोने की सिकड़ियों, अंगूठियों, रेशमी वस्त्रों एवं कंगनों का दान करना चाहिए।
धरादान या हेमघरादान-(मत्स्य २८४)। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ५ पलों से लेकर १००० पल सोने की पृथिवी का निर्माण कराना चाहिए। पृथिवी की आकृति जम्बूद्वीप-जैसी होनी चाहिए, जिसमें किनारे पर अनेक पर्वत, मध्य में मेरु पर्वत और सैकड़ों आकृतियां एवं सातों समुद्र बने रहने चाहिए। इसका पुन: आवाहन किया जाता है। आकृति का १/२ या १/४ गुरु को तथा शेष पुरोहितों को बांट दिया जाता है।
विश्वचक्र-(मत्स्य २८५) । एक सोने के चक्र का निर्माण होना चाहिए, जिसमें १६ तीलियाँ एवं ८ मण्डल (परिधि) हों और उसकी तोल अपनी सामर्थ्य के अनुसार २० पलों से लेकर १००० पलों तक होनी चाहिए। प्रथम मध्यभाग पर योगी की मुद्रा में विष्णु की आकृति होनी चाहिए, जिसके पास शंख एवं चक्र तथा आठ देवियों की आकृतियाँ रहनी चाहिए। दूसरे मण्डल पर अत्रि, भृगु, वसिष्ठ, ब्रह्मा, कश्यप तथा दशावतारों की आकृतियाँ खुदी रहनी चाहिए। तीसरे पर गौरी एवं माता-देवियों, चौथे पर १२ आदित्यों तथा चार वेदों, पांचवें पर पांच भूतों (क्षिति, जल, पावक, गगन एवं समीर) एवं ११ रुद्रों, छठे पर आठ लोकपालों एवं दिशाओं, आठ हस्तियों, सातवें पर आठ अस्त्र-शस्त्रों एवं आठ मंगलमय वस्तुओं तथा आठवें पर सीमा के देवताओं की आकृतियाँ बनी रहती हैं। दाता चक्र का आवाहन करके दान कर देता है।
___ महाकल्पलता-(मत्स्य २८६) । विभिन्न पुष्पों एवं फलों की आकृतियों के साथ सोने की दस कल्पलताएँ बनानी चाहिए, जिन पर विद्याघरों की जोड़ियों, लोकपालों से मिलते हुए देवताओं एवं ब्राह्मी, अनन्तशक्ति, आग्नेयी, बारुणी तथा अन्य शक्तियों की आकृतियाँ होनी चाहिए तथा सबके ऊपर एक वितान की आकृति भी होनी चाहिए।
२२. आठ प्रकार के अस्त्र-शस्त्र ये हैं-खड्ग शूलगवाशक्तिकुन्तांकुशधषि च । स्वपितिश्चेति शस्त्राणि तेषु चापंप्रशस्यते ॥ गापुराण (हेमाद्रि, वानखण्ड, पृ० ३३३)। आठ प्रकार के मंगल्य पदार्थ ये हैं-दक्षिणावर्तशंखरच रोचना चन्दनं तपा। मुक्ताफलं हिरण्यं च छत्रं चामरमेव च। आवश्चेति विज्ञयं मंगल्यं मंगलाबहम् ॥ पराशर (हेमाद्रि, वही)।
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