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________________ दान के प्रकार ४६३ जाता है। कल्प्रपादप (कल्पवृक्ष) के नीचे कामदेव एवं उसकी चार स्त्रियों की सोने की आकृतियां रख दी जाती हैं। जलपूर्ण आठ कलश वस्त्र से ढककर दीपकों, चामरों एवं छातों के साथ रख दिये जाते हैं। इनके साथ १८ धान्य रहते हैं।" संसाररूपी समुद्र से पार कराने के लिए कल्पवृक्ष की स्तुतियां की जाती हैं। इसके उपरान्त कल्पवृक्ष गुरु को तथा अन्य चार टहनियाँ चार पुरोहितों को दे दी जाती हैं। सन्तानहीन पुरुष एवं स्त्री को यह महादान करना चाहिए (अपरार्क, पृ. ३२६)। गोसहन-(मत्स्य २७८ एवं लिंग २।३८)। दाता को तीन या एक दिन केवल दूध पर रहना चाहिए और तब लोकपालों के आवाहन, पुण्याहवाचन, होम आदि कृत्यों का सम्पादन होना चाहिए। इसके उपरान्त एक सुवर्णमय बैल के शरीर पर सुगंधित पदार्थ का लेप करके उसे वेदी पर खड़ा करना चाहिए और एक सहस्र गायों में से १० गायों को चुन लेना चाहिए। इन गायों पर वस्त्र उढ़ाया रहना चाहिए, इनके सींगों के ऊपर सुनहरा पानी चढ़ा देना या सोने का पत्र लगा देना चाहिए, खुरों पर चाँदी चढ़ा देनी चाहिए और तब उन्हें मण्डप में लाकर सम्मानित करना चाहिए। इन दसों गायों के मध्य में नन्दिकेश्वर (शिव के बैल) को खड़ा कर देना चाहिए। नन्दिकेश्वर के गले में सोने की पण्टियां, ऊपर रेशमी वस्त्र, गन्ध, पुष्प होने चाहिए तथा उसके सींगों पर सोना चढ़ा रहना चाहिए। इसके उपरान्त दाता को सवौं षधियों से पूरित जल में स्नान करके हाथों में पुष्प लेकर मन्त्रों के साथ गायों का आह्वान करना चाहिए और उनकी महत्ता की प्रशंसा करनी चाहिए। इसी प्रकार दाता को चाहिए कि वह नन्दिकेश्वर बैल (नन्दी) को धर्म कहकर पुकारे। इसके उपरान्त दाता दो गायों के साथ नन्दी की स्वर्णाकृति गुरु को तथा आठ परोहितों में प्रत्येक को एक-एक गाय देता है। शेष गायों को, ५ या १० की संख्या में, अन्य ब्राह्मणों में बाँट दिया जाता है। दाता को पुनः एक दिन दूध पर ही रह जाना पड़ता है तथा पूर्ण सन्तोष रखना पड़ता है। इस महादान के करने से दाता शिवलोक की प्राप्ति करता है तथा अपने पितरों, नाना एवं अन्य मातृपितरों की रक्षा करता है। ____ कामधेनु-(मत्स्य २७९, लिग २।३५)। बहुत अच्छी सोने की दो आकृतियां बनायी जाती हैं; एक गाय की और दूसरी बछड़े की। सोने की तोल १००० या ५०० या २५० पलों की या सामर्थ्य के अनुसार केवल तीन पलों की हो सकती है। वेदी पर एक काले मृग का चर्म बिछा देना चाहिए जिस पर सोने की गाय आठ मंगल-घटों, फलों, १८ प्रकार के अनाजों, चामरों, ताम्रपात्रों, दीपों, छाता, दो रेशमी वस्त्रों, घंटियों, गले के आभूषणों आदि के साथ रख दी जाती है। दाता पौराणिक मन्त्रों के साथ गाय का आह्वान करता है और तब गुरु को गाय एवं बछड़े का दान हिरण्याश्व-(मत्स्य २८०) । वेदी पर मृगचर्म बिछाकर उस पर तिल रख देने चाहिए। कामधेनु के बराबर तोल वाले सोने का एक घोड़ा बनाना चाहिए। दाता घोड़े का भगवान् के रूप में आह्वान करता है और वह आकृति १९. श्यामाकधान्ययवमुद्गतिलाणुमाषगोधूमकोद्रयकुलत्यसतीनशिम्बः। ___ अष्टादशं चणकलायमयोष्टराजमाषप्रियंगुसहितं च मसूरमाहुः॥ (अपराक पृ० ३२३) । मत्स्यपुराण (२७६७) ने भी १८ अन्न बताये हैं। २०. पञ्चते देवतरवो मन्दारः पारिजातकः। सन्तानः कल्पवृक्षश्स पुंसि वा हरिचन्दनम् । अर्थात् कल्पवृक्ष (अभिकांक्षा की पूर्ति करनेवाले) पाँच है-मन्दार, पारिजातक, सन्तान, कल्पवृक्ष एवं हरिचन्दन। २१. सर्वोपषियों बस हैं-"कुष्ठं मांसी हरित वेमुरा शैलेयचयनम् । वाचम्पकमुक्तं च सयौंषभ्यो वश स्मृताः॥ छन्दोगपरिशिष्ट (दानमयूख पृ० १७ में उपत)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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