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________________ अध्याय २४ अप्रधान गृह्य तथा अन्य कृत्य सूत्रों ने वर्ष की कुछ निश्चित तिथियों के कुछ अन्य कृत्यों का वर्णन किया है। अब इनकी बहुत-सी विधियाँ रामाप्त हो चुकी हैं, किन्तु कुछ के अवशेष चिह्न अब भी पाये जाते हैं। गौतम ( ८/१९ ) ने अपने चालीस संस्कारों में सात पाकयज्ञ संस्थाओं की भी गणना की है। इन सात पाकयज्ञों में अष्टका, पार्वण एवं श्राद्ध का वर्णन हम श्राद्ध नामक अध्याय में आगे करेंगे। सात हविर्यज्ञों एवं सात सोमसंस्थाओं का वर्णन श्रौत सम्बन्धी टिप्पणी में किया जायगा । कुछ कृत्यों का वर्णन नीचे किया जा रहा है। पार्वण स्थालीपाक गौतम द्वारा वर्णित सात पाकयज्ञ संस्थाओं में एक है पार्वण स्थालीपाक। जब कोई विवाह करके पत्नी को घर लाता है तो उस नव-विवाहिता से बहुत-से भोज्य पदार्थ पकवाकर उन्हें देवताओं को अग्नि होम द्वारा अर्पित करता है । पत्नी चावल कूटती है और उससे स्थालीपाक बनाती है। वह भोजन पकाकर उस पर आज्य छिड़कती है और अग्नि से उठाकर ले जाती है। तब पति उसे वैदिक दर्श-पूर्णमास के देवताओं को चढ़ाता है और फिर स्विष्टकृत् अग्नि को देता है। बचे हुए भोजन को वह एक विद्वान् ब्राह्मण को देता है और उसे एक बैल दक्षिणा में देता है। उस समय से 'गृहस्थ सभी पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिनों में ऐसा ही पका भोजन अग्नि को चढ़ाता है। जो व्यक्ति तीन वैदिक अग्नियाँ नहीं प्रतिष्टित करता, उसका स्थालीपाक द्रव्य अग्नि के लिए (आग्नेय) होता है। जो तीनों वैदिक अग्नियाँ स्थापित रखता है उसका पूर्णिमा वाला स्थालीपाक अग्नीषोमीय एवं अमावस्या वाला ऐन्द्र या महेन्द्र या ऐाग्न कहलाता है (खादिरगृह्यसूत्र २।२।१-३, आश्वलायनगृह्यसूत्र १।३।८-१२ ) । पति एवं पत्नी पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिन उपवास करते हैं या केवल एक बार प्रातः काल खाते हैं। संक्षेप में यह पार्वण स्थालीपाक है। यह विवाहोपरान्त प्रथम पूर्णिमा को प्रारम्भ होकर पति-पत्नी के जीवन भर चलता रहता है। बैल की दक्षिणा केवल प्रथम बार ही होती है, जीवन भर नहीं । विस्तार के लिए देखिए आश्वलायनगृ• ( १1१०), आपस्तम्बगृ० (७/१-१९), संस्कारकौस्तुभ ( पृ० ८२३ ) एवं संस्कारप्रकाश ( पृ० ९०४-६) । चैत्री यह कृत्य चैत्र मास की पूर्णिमा को होता है। गौतम ( ८1१९ ) की टीका में हरदत्त ने लिखा है कि आपस्तम्बगृ० (१९।१३ ) के अनुयायियों के लिए चैत्री शूलगव (ईशानबलि) के समान है। वैखानस ( ४1८) ने इसका वर्णन किया है-- चैत्र की पूर्णिमा को घर स्वच्छ एवं अलंकृत किया जाता है; पति-पत्नी नये वस्त्र, पुष्प आदि से अलंकृत होते हैं, अग्नि में जब दो आधार' दे दिये जाते हैं तथा देवों के लिए पात्र में चावल पका लिया जाता है तो 'ग्रीष्मो हेमन्तः' १. लगातार एक धार से घृत का अग्नि में ढारना 'आधार' का सूचक होता है। यह आधार प्रजापति के लिए उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व में तथा इन्द्र के लिए दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व में होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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