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________________ उत्सर्जन ४३९ कई महीनों तक वेदाध्ययन छोड़ देना सम्भवतः अच्छा नहीं माना जाता था, अतः मनु (४।९८), वसिष्ठधर्मसूत्र तथा ओशनस ( पृ० ११५ ) ने उत्सर्जन के उपरान्त उपाकर्म तक महीनों के शुक्ल पक्षों में वेदाध्ययन तथा कृष्ण पक्षों में या जैसी इच्छा हो, वेदांगों का अध्ययन करने की व्यवस्था दी है। क्रमशः पौष एवं माघ के उत्सर्जन कृत्य की परम्परा समाप्त हो गयी। मानवगृह्य (१।५१ ) की टीका में अष्टावक्र ने अपने समय की भर्त्सना की है जब कि उत्सर्जन कृत्य बन्द सा हो गया था । स्मृत्यर्थसार ( पृ० ११) ने लिखा है कि उपाकर्म के पश्चात् एक वर्ष तक वेदाध्ययन करने के उपरान्त उपाकर्म के दिन उत्सर्जन किया जा सकता है या नहीं भी किया जा सकता है। आजकल उत्सर्जन उसी दिन सम्पादित होता है जिस दिन उपाकर्म होता है। ये दोनों श्रावणी (श्रावण की पूर्णिमा) को या श्रवण नक्षत्र में या श्रावण शुक्ल पञ्चमी को सम्पादित होते हैं, अतः इन्हें श्रावणी मी कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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