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________________ सत्रिय, वैचोप का मारा देखना चाहिए, दूसरे भाग में नगर एवं ग्राम के लोगों के झगड़ों का निपटारा करना चाहिए, गतरे भाग में स्नान, वेदाध्ययन या वेदपाठ एवं भोजन करना चाहिए, बाप भाग में सोने के रूप में कर लेना तथा अध्यषों का नियुक्ति करनी चाहिए, पांचवें भाग में मन्त्रिपरिषद् से वार्ता या लिखा-पढ़ी करना तथा गुप्तचरों द्वारा प्राप्त समाचार सुनना चाहिए, छठे भाग में उसे क्रीड़ा-कौतुक आदि में लगना तथा राजकीय कार्यों पर विचार-विमर्श करना चाहिए, सातवें में उसे हाथियों, घोड़ों, रथों एवं सैनिकों का निरीक्षण या देखभाल करनी चाहिए, तया आठवें भाग में राजा को अपने प्रधान सेनापति के साथ आक्रमण करने की योजनाओं पर विचार विमर्श करना चाहिए। दिवसावसान पर राजा को सन्ध्या-वन्दन करना चाहिए। रात्रि के प्रथम भाग में उसे गुप्त दूतों से भेट करनी चाहिए, दूसरे भाग में वह स्नान कर सकता है, पाठ दुहरा सकता है एवं भोजन कर सकता है, तीसरे भाग में उसे दुन्दुमि एवं नगाड़ों की धुन में पर्यक पर पड़ जाना चाहिए और चौथे एवं पांचवें भाग तक सोना चाहिए। छठे भाग में उसे वाद्ययन्त्रों की धुन के साब जग जाना चाहिए, शास्त्रों में लिखित अनुशासनों का ध्यान करना चाहिए तथा उन्हें कार्यान्वित करने की विधि पर सुविचारणा करनी चाहिए, सातवें भाग में उसे निर्णय करना चाहिए एवं गुप्त दूतों को बाहर भेजना चाहिए, तथा आठवें भाग में उसे यज्ञ कराने वाले आचार्यों एवं पुरोहितों के साथ आशीर्वचन ग्रहण करना चाहिए तथा अपने बंब, प्रधान पाचक एवं ज्योतिषी को देखना चाहिए। इसके उपरान्त बछड़े सहित गाय एवं बैल की प्रदक्षिणा कर उसे राज्यसभा में जाना चाहिए। राजा अपनी योग्यता के अनुसार रात एवं दिन को (अपने मन के अनुसार) विभाजित कर सकता है। अन्य स्मृतिकारों के मतों में यत्र-तत्र कुछ अंतर पाया जाता है। याज्ञवल्क्य (११३२७-३३३) ने कांटिल्य की तालिका को संक्षिप्त रूप में मान लिया है। मनुस्मृति में भी कौटिल्य द्वारा उपस्थित समय तालिका एवं राजकर्तव्य का ब्यौरा पाया जाता है, और कोई अन्य महत्त्वपूर्ण बात नहीं जोड़ी गयी है। दशकुमारचरित (उच्छ्वास ८) के लेखक ने कौटिल्य की तालिका ज्यों-की-त्यों मान ली है। उसमें वर्णित विदूषक विहारनद्र द्वारा कौटिल्य के प्रति उपस्थापित हास्य अवलोकनीय है। अन्य वर्गों के धर्म स्मृतियों में वैश्यों एवं शूद्रों के लिए कोई विशिष्ट आह्निक कर्तव्य नहीं रखे गये हैं। ब्राह्मणों के लिए रचे गये नियमों के अनुसार उन्हें अपने को अभियोजित करना पड़ता था। वैश्य भी द्विजातियों में आते हैं, वे केवल पौरोहित्य, वेदाध्यापन एवं दान-ग्रहण के कार्यों को छोड़कर अन्य सभी ब्राह्मण-धर्मों के अनुसार चल सकते थे। शूद्रों के विशेषाविकारों एवं उनकी अयोग्यताओं या सीमाओं के विषय में देखिए इस माग का तीसरा अध्याय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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