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________________ था और उसे सुरा का तलछट पीना पड़ता था। शतपय ब्राह्मण (५।५।४।२८) ने सोम को 'सत्य, समृद्धि एवं प्रकाश' तथा सुरा को 'असत्य, क्लेश एवं अन्धकार' कहा है। इसी ब्राह्मण (५।५।४।२१) ने सोम एवं सुरा के मिश्रण के भयानक रूप का वर्णन किया है। काठकसंहिता (१२।१२) में मनोरंजक वर्णन आया है ; “अतः प्रौढ, युवक, वधुएँ और श्वशुर सुरा पीते हैं, साथ-साथ प्रलाप करते हैं; मूर्खता (विचारहीनता) सचमुच' अपराध है, अतः ब्राह्मण यह सोचकर कि यदि मैं पीऊँगा तो अपराध करूँगा, सुरा नहीं पीता, अत: यह क्षत्रिय के लिए है। ब्राह्मण से कहना चाहिए-यदि क्षत्रिय सुरा पिये तो उसकी हानि नहीं होगी।" इस कथन से स्पष्ट है कि काठकसंहिता के काल में सामान्यतः ब्राह्मण लोग सुरा पीना छोड़ चुके थे। सौत्रामणी यज्ञ में सुरा का तलछट पीने के लिए भी ब्राह्मण का मिलना कठिन हो गया था (तैत्तिरीय ब्राह्मण ११८०६)। ऐतरेय ब्राह्मण (३७।४) में अभिषेक के समय पुरोहित द्वारा राजा के हाथ में सुरापात्र का रखा जाना वर्णित है। छान्दोग्योपनिषद् (५।१०।९) में सुरापान करने वाले को पांच पापियों में परिगणित किया गया है। इसी उपनिषद् (५।११२५) में केकय के राजा अश्वपति ने कहा है कि उसके राज्य में मद्यप नहीं पाये जाते। कुछ गृह्यसूत्रों में एक विचित्र बात पायी जाती है--अन्वष्टका के दिन जब पुरुष पितरों को पिण्ड दिया जाता है तो माता, पितामही (दादी) एवं प्रपितामही को पिण्डदान के साथ सुरा भी दी जाती है। उदाहरणार्थ, आश्वलायनगृह्यसूत्र (२।५।५) में आया है-"पितरों की पलियों को सुरा दी जाती है और पके हुए चावल का अवशेष भी।" यही बात पारस्करगृह्यसूत्र (३१३) में भी पायी जाती है। काठकगृह्यसूत्र (६५।७-८) में आया है कि अन्वष्टका में नारी पितरों के पिण्डों पर चमस से सुरा छिड़की जानी चाहिए और वे पिण्ड नौकरों या निषादों द्वारा खाये जाने चाहिए, या उन्हें पानी या अग्नि में फेंक देना चाहिए या ब्राह्मणों को खाने के लिए दे देना चाहिए। इस विचित्र बात का कारण बताना कठिन है। यदि अनुमान द्वारा कारण बताया जा सके तो कहा जा सकता है कि (१) उन दिनों नारियां सुरापान किया करती थीं (सम्भवतः लुक-छिपकर), या (२) गृह्यसूत्रों के काल में अन्तजर्जातीय विवाह चलते थे और घरमें. क्षत्रिय एवं वैश्य पत्नियाँ सुरापान किया करती थीं। मनु (११३९५) ने ब्राह्मणों के लिए सुरापान वर्जित माना है, किन्तु कुल्लू क का कथन है कि कुछ टीकाकारों के मत से यह प्रतिबन्ध नारियों पर लागू नहीं होता था। गृह्यसूत्रों की दृष्टि में उपर्युक्त छूट के लिए जो भी कारण रहे हों, किन्तु यह बात काठकसंहिता एवं ब्राह्मण ग्रन्थों के लिए ही नहीं प्रत्युत एकमत से धर्मसूत्रों एवं स्मृतियों के लिए पूर्णरूपेण अमान्य रही है। गौतम (२०२५), आपस्तम्बधर्मसूत्र (१।५।१७।२१), मनु (१११९४) ने एक स्वर से ब्राह्मणों के लिए सभी अवस्थाओं में सभी प्रकार की नशीली वस्तुओं को वर्जित जाना है। सुरा या मद्य का पानं एक महापातक कहा गया है (आपस्तम्बधर्म सूत्र ११७४२११८, वसिष्ठधर्मसूत्र ११२०, विष्णुधर्मसूत्र १५३१, मनु १११५४, याज्ञवल्क्य ३।२२७)। यह सब होते हुए भी बौधायनधर्मसूत्र (१।२।४) ने लिखा है कि उत्तर के ब्राह्मणों के व्यवहार में लायी जाने वाली विचित्र पाँच वस्तुओं में सीधु (आसव) भी है। इस धर्मसूत्र ने उन सभी विलक्षण पांचों वस्तुओं की कर्सना की है। मनु (१११९३-९४) की ये बातें निबन्धों एवं टीकाकारों ने उद्धृत की हैं-"सुरा भोजन का मल है, और पाप को मल कहते हैं, अतः ब्राह्मणों, राजन्यों (क्षत्रियों) एवं वैश्यों को चाहिए कि वे सुरा का पान न करें। सुरा तीन प्रकार की होती है-गुड़ वाली, आटे वाली तथा मधूक (महुआ) के फूलों वाली (गौड़ी, पैष्टी एवं माध्वी), इनमें किसी को भी ब्राह्मण न पिये।"१२ महाभारत (उद्योगपर्व ५५।५) में वासुदेव एवं अर्जुन मदिरा पीकर मत्त हुए १२. सुरा व मलमन्नानां पाप्मा च मलमुच्यते। तस्माद् ब्राह्मणराजन्यौ वैश्यश्च न सुरां पिबेत् ॥ गौरी पैष्टी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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