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________________ भोज्य- अभोज्य विचार ४२७ ( ९/५८ ) के जप की व्यवस्था दी है, और यही व्यवस्था मनु ( ९/२५३) एवं विष्णुधमंसूत्र (५/६/६ ) ने भी दी है। विहित भोजन एवं भोज्यान्न - गौतम एवं आपस्तम्ब के काल में ब्राह्मण लोग क्षत्रियों, वैश्यों एवं शूद्रों के यहाँ खा सकते थे, किन्तु कालान्तर में यह छूट नियन्त्रित हो गयी और केवल उन्हीं शूद्रों के यहाँ ब्राह्मण खा सकते जो ब्राह्मण की कृषि साझे में करते हों, कुटुम्ब या परिवार के मित्र हों, अपने चरवाहे हों, अपने नाई ( नापित) या दास हों। इस विषय में देखिए गौतम ( १७।६), मनु ( ४ २५३), विष्णुधर्म सूत्र (५७।१६), याज्ञवल्क्य (१।१६६), अंगिरा ( १२०-१२१), व्यास ( ३।५५) एवं पराशर (११।२१) । मनु एवं याज्ञवल्क्य ने घोषित किया है कि ऐसा शूद्र जो यह कहे कि वह ब्राह्मण का आश्रित होने जा रहा है, उसके जीवन के कार्य-कलाप इस प्रकार के रहे हैं, और वह ब्राह्मण की सेवा करेगा, तो वह भोज्यान्न (जिसका भोजन खाया जा सकता है) कहलाता है। मिताक्षरा (याज्ञवल्क्य १।१६६ पर एक सूत्र उद्धृत कर) तथा देवल ने कुम्भकार को भी भोज्यान्न घोषित किया है । वसिष्ठधर्मसूत्र ( १४१४ ), मनु (४।२११ एवं २२३) एवं याज्ञवल्क्य ( १।१६० ) ने शूद्रों के भोजन की वर्जितता के विषय में सामान्य नियम दिये हैं। अंगिरा ( १२१) ने लिखा है कि उपर्युक्त वर्णित पाँच प्रकार के शूद्रों के अतिरिक्त अन्य शूद्रों के यहाँ भोजन करने पर चान्द्रायण व्रत करना पड़ता है। अत्रि (१७२- १७३) ने धोबी, अभिनेता, बाँस का काम करने वाले के यहाँ भोजन करने वालों के लिए चान्द्रायण व्रत तथा अन्त्यजों के यहाँ भोजन करने या रहने वालों के लिए पराक प्रायश्चित्त व्यवस्था दी है। इस विषय में और देखिए वसिष्ठधर्मं सूत्र ( ६ । २६-२९), अंगिरा (६९-७० ), आपस्तम्ब (पद्य) ८1९-१०) आदि । अंगिरा (७५) एवं आपस्तम्ब (पद्य, ८४८१९) ने लिखा है कि यदि अग्निहोत्री शूद्र के यहाँ खाता है। तो उसकी पाँच वस्तुएँ नष्ट हो जाती हैं, यथा- आत्मा, वैदिक ज्ञान एवं तीन पवित्र अग्नियां । मनु ( ५१८४ ) की टीका में मेघातिथि ने स्पष्ट लिखा है कि नापित (नाई ) स्पृश्य और मोज्यान्न है ( उसका भोजन खाया जा सकता है)। इससे स्पष्ट होता है कि नवीं शताब्दी तक कुछ शूद्रों के यहाँ भोजन करना भारत के सभी भागों में वर्जित नहीं था। अंगिरा (७७-७८), आपस्तम्ब ( पद्य, ८1११ - १३ ) एवं यम ( गृहस्थरत्नाकर, पृ० ३३४ में उद्धृत ) ने घोषित किया है कि ब्राह्मण ब्राह्मणों के यहाँ सभी समयों में, क्षत्रिय के यहाँ केवल ( पूर्णमासी आदि) पर्व के समय, वैश्यों के यहाँ केवल यश के लिए दीक्षित होते समय भोजन कर सकता है, किन्तु शूद्रों के यहां कभी भी नहीं खा सकता; चारों वर्णों का भोजन क्रम से अमृत, दूष, भोजन एवं रक्त है । यदि कोई अन्य जीविका न हो तो मनु (४।२२३ ) के अनुसार ब्राह्मण शूद्र के यहाँ एक रात्रि के लिए बिना पकाया हुआ भोजन ले सकता है। क्षत्रियों एवं वैश्यों के यहाँ भोजन करना कब वर्जित हुआ, यह कहना कठिन है । गौतम ( १७।१) ने लिखा है कि ईंधन, जल, भूसा (चारा ), कन्दमूल, फल, मधु, रक्षा, बिना मांगे जो मिले, शय्या, आसन, आश्रय, गाड़ी, दूध, दही, भुना अन्न, शफरी (छोटी मछली), प्रियंगु (ज्वार), माला, हिरन का मांस, शाक आदि जब अचानक दिये जायँ तो अस्वीकार नहीं करने चाहिए । यही बात वसिष्ठधर्मसूत्र ( १४।१२ ) एवं मनु (४|५०) में भी पायी जाती है। गृहस्थरत्नाकर ( पृ० ३३७) द्वारा उद्धृत अंगिरा के मत से शूद्र के घर से गाय का दूध, जौ का आटा, तेल, तेल में बने खाद्य, आटे की बनी रोटियाँ तथा दूध में बनी सभी प्रकार की वस्तुएं ग्रहण की जा सकती हैं। बृहत्पराशर ( ६ ) के अनुसार बिना पका मांस, घृत, मघु तथा फलों से निकाले हुए तेल यदि म्लेच्छ के बरतनों में रखे हुए हों तो ज्यों ही वे उससे निकाल लिये जाते हैं पवित्र समझे जाते हैं । इसी प्रकार आभारां (अहीरों) के पात्रों में रखा हुआ दूध एवं दही पवित्र है और वे पात्र भी इन वस्तुओं के कारण पवित्र हैं । लघु-शातातप (१२८) के अनुसार खेत या खलिहान का अन्न, कुएँ से खींचा हुआ जल, गोशाला का दू आदि उनसे भी ग्रहण किये जा सकते हैं जिनका भोजन वर्जित समझा जाता है। पश्चात्कालीन ग्रन्थकारों (यथा हरदत्त) ने मनु (४१२५३) द्वारा वर्णित पाँच प्रकार के शूद्रों के यहाँ केवल आपत्काल में भोजन करने को लिखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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