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________________ ४२६ धर्मशास्त्र का इतिहास स्वर सुनने के उपरान्त एक कौर भी खा लिया है तो उसे एक दिन का उपवास करना चाहिए। मृत्यु-शोक वाले घर के भोजन को निमित्तदुष्ट (किसी अवसर या संयोग के कारण जित) कहा जाता है। अस्वस्थ या अपवित्र वस्तुओं या लहशुन आदि के सम्पर्क में आगत भोजन संसर्गदुष्ट का उदाहरण है। कुत्ता आदि से देखा गया भोजन क्रियादुष्ट (कुछ विशिष्ट कारणों से दूषित, कहा जाता है। स्मृतिकारों ने व्यावहारिक ज्ञान का भी प्रदर्शन किया है । बौधायनवर्मसूत्र (२७।७) एवं वैखानस (९।१५) का कथन है कि यदि विपुल भोजन-राशि में बाल, नाखून के टुकड़े, चर्म, कीट, मूसे की लैंड़ियाँ दिखाई पड़ जायें, तो वहां से थोड़ा भोजन निकाल लेना चाहिए, उस पर पवित्र भस्म (भभूत) छिड़ककर, पानी छिड़ककर तथा ब्राह्मणों द्वारा उसे पवित्र घोषित करवाकर खाना चाहिए। पराशर (६७१-७४) ने भी यही बात दूसरे ढंग से कही है और पवित्रीकरण के लिए सोने की शलाका का स्पर्श, अग्नि-स्पर्श (जलते कुश से) तथा ब्राह्मण द्वारा पढ़े गये मन्त्र की विधि बतायी है। केवल अपने लिए पकाये हुए भोजन को (जिसका कुछ भी अंश देवों या अतिथि के लिए नहीं हो) वजित माना गया है (गौतम १७।१९ एवं मनु ४।२१३)। ऐसे भोजन को संस्कारदुष्ट (पवित्र क्रियाओं या कृत्यों के अभाव के कारण दूषित या त्याज्य) कहा गया है (स्मृत्यर्थ सार, पृ०६८)। परिग्रहदुष्ट भोजन (भोजन भले ही अच्छा हो किन्तु विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा लाये जाने अथवा उपस्थित किये जाने के कारण जो त्याज्य माना जाता है) के विषय में बहुत-से नियम बने हैं। इस सम्बन्ध में आपस्तम्बधर्मसूत्र (१।६।१८-१६-३३ एवं श६।१९।१), गौतम (१५।१८ एवं १७।१७-१८), वसिष्ठधर्मसूत्र (१४।२-११), मनु (४।२०५-२२०), याज्ञवल्क्य (१।१६०-१६५), व्यास (३।५०-५४), ब्रह्मपुराण तथा अन्य ग्रन्थों में निम्नलिखित व्यक्तियों की चर्चा हुई है-- पवित्र अग्नियों (श्रौत एवं गृह्य अग्नियों) को न रखने वाला, कंजूस (जो अपने माता-पिता, बच्चों एवं पत्नी को लोभ के कारण भूखे रखता है), वन्दी, चोर, नपुंसक, पहलवान (या अभिनय करके जीविका चलाने वाला), वैण (बाँस का काम करने वाला या विश्वरूप के अनुसार नट), गायक, अभिनेता, अभिशस्त (महापातक का अपराधी), बलात् ग्राही (अर्थात् जबरदस्ती हड़प जाने वाला या दूसरे की सम्पत्ति पर बलात् अधिकार करने वाला), वेश्या, संघ या गण (दुष्ट ब्राह्मणों या दुष्ट लोगों का दल), वैदिक यज्ञ करने के लिए दीक्षित (जिसने अभी यज्ञ समाप्त न किया हो, अर्थात् जिसने अभी सोम नहीं मँगाया है और अग्नि तथा सोम को पशु-बलि नहीं दी है), वैद्य (जो औषध से जीविका चलाता है), चीर-फाड़ करने वाला (जर्राह), व्याध, आखेटक (या मछली वेचने वाला), न अच्छे होनेवाले रोग से पीड़ित, क्रूर, व्यभिचारिणी, मत्त (मदिरा के नशे में या धन-सम्पत्ति या विद्या के मद में चूर), वैरी, उग्र (क्रोधी स्वभाव वाला या उग्र जाति का व्यक्ति), पतित (जातिच्युत), व्रात्य, कपटी, जूठा खानेवाला, विधवा, अपुत्र, स्वर्णकार, स्त्रैण (स्त्री के वश में रहने वाला), ग्रामपुरोहित, अस्त्र-शस्त्र बेचने वाला, लोहार, निषाद, दर्जी, श्ववृत्ति (कुत्ते का व्यवसाय करने वाला या सेवक), गजा, राजपुरोहित, धोबी (या रंगरेज), कृतघ्न, पशु मारकर जीविका चलाने वाला, मदिरा बनाने एवं बेचने वाला, जो अपनी पत्नी के जार (प्रेभी) के घर में ठहरता है, सोम लता बेचने वाला, चगलखोर, झूठा, तेली, माट, दायाद (जब तक उसे सन्तान न हो जाय), पुत्रहीन, बिना बेद पढ़े यज्ञ करने वाला, यज्ञ करने वाली स्त्री, बढ़ई, ज्योतिषी (ज्योतिष से जीविका चलाने वाला), घण्टी बजाने वाला (राजा को जगाने के लिए घण्टी बजाने वाला), ग्रामकुट (ग्राम का अधिकारी), परिवित्ति, परिविविदान, शूद्र नारी का पति, (पुनर्विवाहित ) विधा का पति, पुनर्भू का पुत्र, खाल का काम करने वाला, कुम्भकार, गुप्तचर, संन्यास आश्रम के नियमों का पालन न करने वाला संन्यासी, पागल, जो धर्ण (धरने) में अपने ऋणी के घर पर बैठ गया हो। मन् (१२२:) ने उपर्युक्त व्यक्तियों का भोजन बिना जाने हए कर लेने पर भी तीन दिनों के व्रत की व्यवस्था तथा जानकारी में इनका भोजन खा लेने पर कृच्छ की व्यवस्था दी है। बौधायनधर्मसूत्र (२।३।१०) ने ग्वेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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