SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भोज्य-अमोज्य विचार ४२५ (१० ३५४-३५६) आदि ने भी वजित शाक-सब्जियों की सूची उपस्थित की है। सुमन्तु के एक सूत्र (याज्ञवल्क्य ३१२९० की टीका में मिताक्षरा द्वारा उद्धृत) के अनुसार दवा के रूप में लहशुन का प्रयोग वजित नहीं है। गौतम (१७।३२) की टीका में हरदत्त ने लिखा है कि यह नहीं ज्ञात है कि हिंगु (हींग) किसी पेड़ का स्राव है या काट दिये जाने पर निकला हुआ माग है, किन्तु सभी भद्र व्यक्ति इसे प्रयोग में लाते हैं, और कपूर का प्रयोग किया जा सकता है, क्योंकि न तो यह लाल है, न स्राव है और न है काटे हुए पेड़ की छाल का झाग या रस। स्मृतिचन्द्रिका (पृ० ४१३) ने लिखा है कि कुछ स्मृतियों ने हींग को वर्जित माना है किन्तु आदिपुराण ने नहीं, अतः अपनी रुचि के अनुसार इसका प्रयोग हो सकता है। गृहस्थरत्नाकर (पृ० ३५४) ने लिखा है कि गोल अलाबु (लोकी) वर्जित है। वर्जित शाक-माजियों के नामों के लिए देखिए वृद्ध-हारीत (७।११३-११९) एवं स्मृतिमुक्ताफल (आह्निक, पृ० ४३४-४३५)। बर्जित अन्न-आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।८।१८।२) ने श्राद्ध में माष जैसे काले अन्न वर्जित माने हैं। महाभाष्य (जिल्द १, पृ० १२७) ने विशिष्ट अवसरों पर माष को वर्जित अन्न माना है और लिखा है कि जब यह घोषित है कि माष नहीं खाना चाहिए. तो उसे. अन्य अन्नों के साथ मिलाकर भी नहीं खाना चाहिए। राजमाष, स्थल मदग, मसूर आदि को वर्जित माना गया है (ब्रह्मपुराण, गृहस्थरत्नाकर, पृ० ३५९) । आह्निकप्रकाश (पृ० ३९४) में उद्धृत शंखलिखित में आया है कि कोद्रव, चणक (चना), माष, मसूर, कुलत्थ एवं उद्दालक को छोड़कर सभी अन्न. देवयज्ञ में प्रयुक्त हो सकते हैं। वृद्ध-हारीत (७।११०-१११) ने भी वर्जित अन्नों की सूची दी है। वजित पक्व पवार्थ-गौतम (१७।१४), आपस्तम्बधर्मसूत्र (११५।१७।१७-१९), वसिष्ठधर्मसूत्र (१४। २८-२९ एवं ३७-३८), मनु (५।१०, २४-२५) एवं याज्ञवल्क्य (११६७) के अनुसार बासी पक्वान्न (बनाकर बहुत देर से रखा हुआ भोजन) या जो अन्य पदार्थों से मिश्रित कर रख दिया गया हो, या वह भोजन जो रात और दिन अर्थात् लगभग २४ घण्टे का हो चुका हो, नहीं खाना चाहिए। दही, मक्खन, तरकारियों, रोटियों, भुने अन्नों, हलुवा, पापड़ों, तेल या घी में पकाये हुए अन्न, दूध तथा मधु में मिश्रित पदार्थों को छोड़कर दोबारा पकाये हुए पदार्थों को नहीं खाना चाहिए। वह बासी भोजन जिसमें घी या दही मिला हो या जो देवों का प्रसाद हो खा लेना चाहिए। मनु (५।२५), वसिष्ठधर्मसूत्र (१४।३७-३८), आपस्तम्बधर्मसूत्र (१०५।१७।१९) एवं याज्ञवल्क्य (१।१६९) के मत से गेहूँ एवं जो के बासी भोज्य पदार्थ तथा दूध के बासी पदार्थ, बिना घी के मिश्रण के भी द्विजातियों द्वारा प्रयोग में लाये जा सकते हैं, किन्तु ये पदार्थ जब खट्टे हो जाये तो खाने के योग्य नहीं होते। वजित या त्याज्य भोजन-उपरिलिखित वर्जित मांस, दुग्ध एवं शाक-भाजियाँ जातिदुष्ट या स्वभावदुष्ट भोजन के अन्तर्गत आती हैं। समय बीत जाने से उत्पन्न बासी या खट्टे भोजन कालदुष्ट कहे जाते हैं । आपस्तम्बधर्मसूत्र (१।५।१६।१९-२० एवं २४-२९), मनु (४।२०७-२०९, २१२, २१७) एवं याज्ञवल्क्य के अनुसार भोज्य पदार्थ यदि पलांडु जैसे वर्जित पदार्थों से मिश्रित हो जायें, या अपवित्र द्रव्य के सम्पर्क में आ जायँ, या जिसमें बाल या कीट पड़ जायें, या जिसमें चूहे की बीट, अंग या पूंछ पड़ी मिल जाय, या जो रजस्वला नारी से छू जाय, या जिसमें कोए की चोंच लग जाय, या जिसे सूअर छू ले या गाय सूंघ ले, या जो ऐसे घर से आया हो जहाँ कोई मर गया हो या बच्चा उत्पन्न हुआ हो अर्थात् जहाँ सूतक लगा हो, तो उसे वर्जित मानना चाहिए। यदि खाते समय सूअर, अपपात्र, चाण्डाल, कुत्ता, कौआ, मुर्गा या रजस्वला नारी दिखाई पड़ जाय तो भोजन छोड़कर उठ जाना चाहिए। मनु (३३२३९-२४०) ने उपर्युक्त सूची में नपुंसक व्यक्ति भी जोड़ दिया है और कहा है कि इन्हें देवकृत्य, श्राद्ध या दानकर्म के सिलसिले में या खाते समय नहीं देखना चाहिए। कात्यायन ने तो यहाँ तक कह डाला है कि यदि ब्राह्मण खाते पमय चाण्डाल, पतित, रजस्वला नारी का स्वर सुन ले तो उसे भोजन छोड़कर उठ जाना चाहिए, किन्तु यदि उसने धर्म० ५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy