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________________ वसिष्ठधर्मसूत्र २१ ठहरते हैं, क्योंकि हरदत्त ने अपनी व्याख्या के प्रारम्भ में गणेश की स्तुति के उपरान्त महादेव की स्तुति की है। हो सकता है कि महादेव या तो हरदत्त के आचार्य थे, या उनके पिता थे; या वे केवल महादेव (शंकर) के रूप में ही माने गये हों। हरदत्त की उज्ज्वला में स्मृतियों से उद्धरण कम आये हैं, बल्कि गौतमधर्मसूत्र से अपेक्षा कृत अधिक आये हैं । ९. वसिष्ठधर्मसूत्र इस धर्मसूत्र का प्रकाशन कई बार हुआ है। जीवानन्द के संग्रह में केवल २० अध्याय तथा २१वें अध्याय का कुछ अंश है। यही बात श्री एम० एन० दत्त (कलकत्ता १९०८ ) के संग्रह में भी है। किन्तु आनन्दाश्रम स्मृति-संग्रह ( १९०५ ई० ) तथा डा० फुहरर के संस्करण में ३० अध्याय हैं। डा० जॉली का कहना है कि कुछ हस्तलिखित प्रतियों में केवल ६ या १० अध्याय हैं । विद्वन्मोदिनी नामक व्याख्या के साथ वसिष्ठधर्मसूत्र का प्रकाशन काशी से भी हुआ है। कुमारिल के मतानुसार वसिष्ठधर्मसूत्र का अध्ययन विशेषतः ऋग्वेद के विद्यार्थी किया करते थे, किन्तु अन्य चरणों के लिए भी यह धर्मसूत्र प्रमाण था । इस धर्मसूत्र के श्रीत एवं गृह्यसूत्र नहीं प्राप्त होते । ऋग्वेद के केवल आश्वलायन श्री एवं गृह्यसूत्र मिलते हैं। तो क्या वसिष्ठधर्मसूत्र उसके कल्प की पूर्ति है ? इस धर्मसूत्र में सभी वेदों के उद्धरण मिलते हैं और केवल 'वसिष्ठ' नाम की कोई भी विशिष्ट बात नहीं पायी जाती कि इसे हम ऋग्वेद से सम्बन्धित समझें । इस धर्मसूत्र की विषय-सूची निम्नलिखित है-- ( १ ) धर्म की परिभाषा, आर्यावर्त की सीमाएँ, पापी कौन हैं, नैतिक पाप, एक ब्राह्मण किन्ही भी तीन उच्च जातियों की कन्या से विवाह कर सकता है, छः प्रकार के विवाह, राजा प्रजा के आचार को संयमित करनेवाला है तथा धन-सम्पत्ति का षष्ठांश कर के रूप में ले सकता है; (२) चारों वर्ण, आचार्य - महत्ता, उपनयन के पूर्व धार्मिक क्रिया-संस्कारों के लिए कोई प्रमाण नहीं है, चारों जातियों के विशेषाधिकार एवं कर्तव्य, विपत्ति में ब्राह्मण लोग क्षत्रिय या वैश्य की वृत्ति कर सकते हैं, ब्राह्मण कुछ विशिष्ट वस्तुओं का विक्रय नहीं कर सकते, ब्याज लेना निषिद्ध है, ब्याज की दर (३) अपढ़ ब्राह्मण की भर्त्सना, धनसम्पत्ति की प्राप्ति पर नियम, कौन-कौन आततायी हैं, आत्म-रक्षा में वे कब मारे जा सकते हैं, पंक्तिपावन लोग कौन हैं, परिषद का विधान, आचमन, शौच एवं विभिन्न पदार्थों के पवित्रीकरण की विधियाँ; (४) चारों वर्णों का निर्माण जन्म एवं संस्कार-कर्म पर आधारित है, सभी जातियों के साधारण कर्तव्य, अतिथि सत्कार, मधुपर्क, जन्म-मरण पर अशीच ; (५) स्त्रियों की आश्रितता, रजस्वला नारी के आचार-नियम ( ६ ) अत्युत्तम धर्म ही व्यवहार है, आचार-प्रशंसा, मलमूत्र त्याग के नियम, ब्राह्मण की नैतिक विशेषताऐं एवं शुद्र की विलक्षण विशेषताएँ, शूद्रों के घर में भोजनं करने पर भर्त्सना, सौजन्य एवं अच्छे कुल के नियम (७) चारों आश्रम तथा विद्यार्थी - कर्तव्य; (८) गृहस्थ - कर्तव्य अतिथि सत्कार; ( ९ ) अरण्य के साधुओं के कर्तव्य-नियम (१०) संन्यासियों के लिए नियम; (११) विशिष्ट आदर पानेवाले छः प्रकार के व्यक्ति -- यज्ञ के पुरोहित, दामाद, राजा, मातुल एवं पितृकुल (चाचा) तथा स्नातक, पहले किसको भोजन दिया जाय, अतिथि, श्राद्ध-नियम, इसका काल, इसके लिए निमन्त्रित ब्राह्मण, अग्निहोत्र, उपनयन, इसका उचित समय, दण्ड, मेखला आदि के नियम, भिक्षा माँगने की विधि, उपनयनरहित लोगों के लिए प्रायश्चित्त; (१२) स्नातक के लिए आचार-नियम (१३) वेदाध्ययन प्रारम्भ करने के नियम, वेदाध्ययन की छुट्टियों के नियम, गुरु एवं अन्यों के चरणों पर गिरने के नियम, विद्या, धन, अवस्था, सम्बन्ध, पेशे के अनुसार क्रमशः आदर देने के नियम, मार्ग के नियम ; (१४) वर्जित एवं अवजित भोजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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