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________________ २२ धर्मशास्त्र का इतिहास के नियम, कुछ विशिष्ट पक्षियों एवं पशुओं के मांस के बारे में नियम; (१५) गोद लेने का नियम, उनके लिए नियम जो वेदों की भर्त्सना करते हैं या शूद्रों का यज्ञ कराते हैं, अन्य पापों के लिए नियम; (१६) न्यायशासन के बारे में, राजा नाबालिगों का अभिभावक, तीन प्रकार के प्रमाण, यथा कागद-पत्र, साक्षियाँ, अधिकार, प्रतिकूल अधिकार एवं राजा के मतदाता, साक्षियों की पात्रता, कुछ मामलों में मिथ्याभाषण का मार्जन; (१७) औरस पुत्र की प्रशंसा, क्षेत्रज पुत्र के विषय में विरोधी मत- क्या वह अपने पिता का पूत्र है या अपनी माता के पूर्व पति का पुत्र है, बारहों प्रकार के पुत्र, भाइयों में धन-सम्पत्ति-विभाजन, विभाजन-भाग से हटाने के कारण, नियोग के नियम, युवती किन्तु अविवाहित कन्या के बारे में नियम, वसीयत के बारे में नियम, राजा अन्तिम उत्तराधिकारी है; (१८) प्रतिलोम जातियाँ, यथा चाण्डाल, शूद्रों के लिए या उनके सामने वेदाध्ययन की मनाही है; (१९) रक्षण करना एवं दण्ड देना राजा का कर्तव्य, पुरोहिता की महत्ता; (२०) जाने एवं अनजाने किये हुए कर्मों के लिए प्रायश्चित्त; (२१) शूद्र के व्यभिचार के लिए प्रायश्चित्त, ब्राह्मण-स्त्री के साथ व्यभिचार करने तथा गो-हत्या के लिए प्रायश्चित्त; (२२) वजित भोजन करने पर प्रायश्चित्त तथा इन पापों से मुक्त होने के लिए पवित्र मूल-ग्रन्थ या मन्त्र; (२३) संभोग एवं सुरापान करने पर ब्रह्मचारी के प्रायश्चित्त; (२४) कृच्छ एवं अतिकृच्छ; (२५) गुप्त व्रत एवं हलके-फुलके पापों के लिए व्रत; (२६) एवं (२७) प्राणायाम के गुण, पवित्रीकरण के लिए गायत्री के वैदिक सूक्त ; - (२८) नारी-प्रशंसा, अघमर्षण एवं दान-सम्बन्धी वैदिक मन्त्रों की प्रशंसा; (२९) दान-पुरस्कार, ब्रह्मचर्य, तप आदि; (३०) धर्म-प्रशंसा, सत्य एवं ब्राह्मण। ___ ऊपर जितने धर्मसूत्रों का वर्णन हो चुका है, उनसे वसिष्ठधर्मसूत्र बहुत कुछ मिलता है। विषय-सूची में कोई अन्तर नहीं है और न शैली में ही, क्योंकि यह भी गद्य में है और यत्र-तत्र इसमें भी पद्य मिलते हैं। इसकी शैली गौतमधर्मसूत्र से बहुत मिलती है और उस सूत्र से इसमें बहुत कुछ लिया गया है। बोधायनधर्मसूत्र का भी यह ऋणी है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, इस धर्मसूत्र के अध्यायों के विषय में बड़ा मतभेद है; ६ अ० से लेकर ३० अध्यायों में यह प्रकाशित है। इस बात से इस धर्मसूत्र की प्रमाणयुक्तता पर सन्देह किया जाता है। इसमें कुछ ऐसे भी पद्य हैं, जिनके कारण यह बहुत बाद का कहा जा सकता है। इसमें कुछ क्षेपक भी हैं, किन्तु वे बहुत पहले आ चुके थे, क्योंकि इसके बहुत-से उद्धरण प्राचीन टीकाओं में मिल जाते हैं, यथा मिताक्षरा में।। ____वसिष्ठधर्मसूत्र में ऋग्वेद एवं वैदिक संहिताओं से उद्धरण लिये गये हैं। ब्राह्मणों में ऐतरेय एवं शतपथ अधिकतर संकेतित हुए हैं। वाजसनेयक एवं काठक के नाम तक आये हैं। आरण्यकों, उपनिषदों एवं वेदांगों के उद्धरण आये हैं। इतिहास एवं पुराण की भी चर्चा हुई है। इस धर्मसूत्र में व्याकरण, मुहूर्त, भविष्यवाणी, फलित ज्योतिष, नक्षत्र-विद्या का वर्णन भी आया है। इस धर्मसूत्र ने अन्य धर्मशास्त्रकारों के ग्रन्थों एवं लेखकों की ओर संकेत किया है। मनु से भी बहुत बातें ली गयी हैं या नहीं, इस पर विवेचन मनुस्मृति वाले प्रकरण में होगा। ___ बुहलर के मतानुसार वसिष्ठधर्मसूत्र के माननेवालों की शाखा के लोग नर्मदा के उत्तर में थे। किन्तु यह बात अनिश्चित है, क्योंकि अभी यही नहीं तयं हो सका है कि यह धर्मसूत्र किसी शाखा से सम्बन्धित है। मनु ने सबसे पहले इस धर्मसूत्र को धर्म-प्रमाण माना है। जब मनु ने इसे प्रमाण माना है तो यह कैसे कहा जा सकता है कि इस धर्मसूत्र ने मनुस्मृति से उद्धरण लिया है ? हो सकता है कि दोनों का कालान्तर में संशोधन हुआ और इसकी बातें उसमें और उसकी बातें इसमें चली आयी हैं। तत्त्रवातिक ने कहा है कि इस धर्मसूत्र को ऋग्वेदी लोग पढ़ते थे। विश्वरूप, मेघातिथि तथा अन्य व्याख्याकारों ने इसकी चर्चा की है और इसे उद्धृत किया है। तीवरदेव के रागिम ताम्रपत्र में इस धर्मसूत्र का उद्धरण है। इस ताम्रपत्र का समय है आठवीं शताब्दी का अन्तिम चरण। ईसा की प्रथम शताब्दियों में यह धर्मसूत्र उपस्थित था ही, अन्य ग्रन्थकारों ने सातवीं For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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