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देवपूजा
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की परीक्षा के लिए) किराती का वेश धारण किया था (३९।४)। कुमारसम्भव (१।२६ एवं ५।२८) में कालिदास ने पार्वती, उमा एवं अपर्णा की चर्चा करके अन्तिम दो की व्युत्पत्ति की है। याज्ञवल्क्य (११२९०) ने अम्बिका को विनायक की माता कहा है। मार्कण्डेयपुराण (अध्याय ८१-९३) के देवीमाहात्म्य का उत्तर भारत में प्रभूत महत्त्व है। एपिरॅफिया इण्डिका (जिल्द ९, पृ० १८९) से पता चलता है कि सन् ६२५ ई० के लगभग दुर्गा का आवाहन एक महती देवी के रूप में होता था। बाण ने कादम्बरी में चण्डिका के मन्दिर, रक्त-दान, त्रिशूल एवं महिषासुर के वध का वर्णन किया है। कृत्यरत्नाकर (पृ० ३५१) ने देवीपुराण का उद्धरण देकर व्यक्त किया है कि मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी (विशेषतः आश्विन मास की) देवी के लिए पवित्र है और उस दिन बकरे या मेंसे की बलि होनी चाहिए। बंगाल के कालीमन्दिर एवं दुर्गा के अन्य मन्दिरों में रक्तरंजित कृत्य अब भी सम्पादित होता है। बंगाल में आश्विन मास की दुर्गा पूजा एक विशिष्ट पर्व होता है। रघुनन्दन ने दुर्गार्चन-पद्धति में आश्विन मास की दूर्गा-पूजा का विशद वर्णन किया है। दुर्गा की पूजा शक्ति के रूप में भी होती है। शाक्त पूजा का सारे भारत में प्रभाव रहा है। इस पर हम आगे लिखेंगे।
___ ईसा की आरम्भिक शताब्दियों से ही तान्त्रिक साहित्य ने देव-पूजा के कृत्यों पर प्रभाव डाला है और बहुत पहले से पूजा करनेवालों के मन में पूजा-सम्बन्धी मुद्राओं, न्यासों एवं अन्य रहस्यपूर्ण आसनों ने घर कर रखा है। भागवतपुराण (११।२७।७) के मत से देव-पूजा के तीन प्रकार हैं, वैदिकी, तान्त्रिकी एवं मिश्रा, जिनमें प्रथम एवं तृतीय उच्च वर्गों के लिए तथा द्वितीय शूद्रों के लिए है।
२४. स्वासरपिरतवी तुष्पति वै भृशम्। महिपीछागमेषानां रुधिरेग तथा नृप ॥ एवं नानाम्लेच्छाः पूज्यते सर्वरस्युभिः। अंगवंगकलिगश्च किनरर्वरः शकः॥ कृत्परत्नाकर (पृ० ३५७) में उदत भविष्यपुराण।
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