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धर्मशास्त्र का इतिहास
- शिव-पूजा श्री आर० जी० भण्डारकर ने अपनी पुस्तक "वष्णविज्म एण्ड शविज्म" में दर्शाया है कि ऋग्वेद में रुद्र एक महत्त्वपूर्ण देवता हैं, तैत्तिरीयसंहिता (४।५।१-११) में (रुद्र नामक) ११ अनुवाक हैं, जिनमें रुद्र के विषय में एक उच्च स्तुति है। कतिपय शैव सम्प्रदाय एवं सिद्धान्त भी कालान्तर में उठ खड़े हुए। शिव के चार नामों को लेकर पाणिनि (४१११४९) ने भवानी, शर्वाणी, रुद्राणी एवं मृडानी नामक चार शब्द बनाये हैं। गृह्यसूत्रों में वर्णित 'शूलगव' नामक यज्ञ में रुद्र को महान् देवता मानकर पूजा गया है । आश्वलायनगृह्यसूत्र (४।९।१६) ने रुद्र के १२ नाम गिनाये हैं और कहा है कि इस संसार के सभी नाम, सभी सेनाएँ एवं सभी महान् वस्तुएँ रुद्र की हैं। पतञ्जलि ने शिव-भागवत (शिव के भक्त) का उल्लेख किया है (जिल्द २, पृ० ३८६-३८८)। शंकराचार्य के मत से वेदान्तसूत्र की एक उक्ति (२।२।३७) शंवों के पाशुपत सम्प्रदाय के विरोध में लिखी गयी है। शान्तिपर्व (२८४।१२१-१२४) में पाशुपत लोग वर्णाश्रमधर्म के विरोधी कहे गये हैं। कूर्मपुराण (पूर्वार्ध, अध्याय १६) ने शैव सम्प्रदायों के शास्त्रों का उल्लेख किया है और निम्नोक्त सम्प्रदायों को संसार को भ्रामक मार्ग में ले जानेवाले माना है, यथा-कापाल, नाकुल (लाकुल ? ), वाम, भैरव, पाशुपत । शिव के असुर भक्त बाण ने विभिन्न स्थानों पर १४ करोड़ लिंगों की स्थापना की थी। इन लिगों को बाण-लिंग कहते हैं (नित्याचारपद्धति, पृ० ५५६) और नर्मदा, गंगा एवं अन्य पवित्र नदियों में पाये जानेवाले श्वेत प्रस्तर बाण-लिंग ही कहे जाते हैं। प्रसिद्ध १२ ज्योतिलिंग ये हैं मान्धाता में ओंकार, उज्जयिनी में महाकाल, नासिक के पास ग्यम्बक, एलोरा में धूष्णेश्वर, अहमदनगर से पूर्व नागनाथ, सह्याद्रि पर्वत में भीमा नदी के उद्गम-स्थल पर भीमाशंकर, गढ़वाल में केदारनाथ, बनारस (वाराणसी) में विश्वेश्वर, सौराष्ट्र में सोमनाथ, परली के पास वैद्यनाथ, श्रीशैल पर मल्लिकार्जुन तथा दक्षिण में रामेश्वर। इनमें बहुत-से मन्दिर मध्य एवं पश्चिम भारत में पासपास पाये जाते हैं।
पूजाप्रकाश (पृ० १९४) ने हारीत को उद्धृत कर बताया है कि महश्वर की पूजा पाँच अक्षरों से (नमः शिवाय) या रुद्रगायत्री से या 'ओम' से या 'ईशानः सर्वविद्यानाम्' (तैत्तिरीयारण्यक १०॥४७) नामक मन्त्र से या रुद्र-मन्त्र (तैत्तिरीय संहिता ४।५।१-११) से या 'श्यम्बकं यजामहे' (ऋग्वेद ७।५९।१२) नामक मन्त्र से हो सकती है। शिव के भक्त को रुद्राक्ष की माला पहनना आवश्यक है, जो हाथ पर, बाहु पर, गले में या सिर पर धारण की जा सकती है। शिवलिंग का गाय के दूध, दही, घृत, मधु, ईख के रस, पंचगव्य, कर्पूर एवं अगरु-मिश्रित जल आदि से अभिषेक किया जाता है। बहुत प्राचीन काल से मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शिव के लिए पवित्र मानी जाती रही है।
दुर्गा-पूजा बहुत प्राचीन काल से दुर्गा-पूजा की परम्पराएं गूंजती रही हैं। दुर्गा कई नामों एवं स्वरूपों से पूजित होती रही हैं । तैत्तिरीयारण्यक (१०।१८) में शिव अम्बिका या उमा के पति कहे गये हैं। केनोपनिषद् में उमा हैमवती का इन्द्र को ब्रह्मज्ञान देना वर्णित है (३।२५) । दुर्गा के विभिन्न नाम ये हैं-उमा, पार्वती, देवी, अम्बिका, गौरी, चण्डी (या चण्डिका), काली, कुमारी, ललिता आदि। महाभारत (विराटपर्व ६ एवं भीष्मपर्व २३) में दुर्गा को विन्ध्यवासिनी, रक्त एवं मदिरा पीनेवाली कहा गया है। वनपर्व में आया है कि उमा ने शिव के किरात बनने पर (अर्जुन
२३. सत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो नः प्रचोदयात् ॥ ते० आ० १०।१ एवं काठकसंहिता
१७।११।
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