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षोडश उपचार
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शाक्तों, स्त्रियों एवं दरिद्र को देना चाहिए। स्वयं पूजा करनेवाला भी नैवेद्य ले सकता है। नैवेद्य के उपरान्त ताम्बूल दिया जाता है। प्राचीन गृह्य एवं धर्मसूत्रों में ताम्बूल एवं मुखवास का कहीं भी उल्लेख नहीं हुआ है। सम्भवतः ईसा
के कुछ शताब्दियों पहले या आरम्भ में ताम्बूल सर्वप्रथम दक्षिण भारत में प्रयुक्त हुआ और फिर क्रमशः उत्तर भारत में भी प्रचलित हो गया। स्मृतियों में संवर्त (५५), लघु-हारीत, लघु-आश्वलायन ( १।१६० - १६१ एवं २३|१०५ ), औशनस ने भोजन के उपरान्त ताम्बूल चर्वण का उल्लेख किया है । कालिदास ( रघुवंश ६।६४ ) ने ताम्बूल पौधों को ताम्बूल- लताओं से घिरा हुआ लिखा है। कामसूत्र (१।४।१६) ने लिखा है कि व्यक्ति को प्रातः मुख धोकर, आदर्श (दर्पण) में मुख देखकर और ताम्बूल खाकर अपने श्वास को सुगन्धित करते हुए प्रतिदिन के कार्यों में लग जाना चाहिए ( अन्य ताम्बूल - सम्बन्धी संकेतों के लिए देखिए कामसूत्र ३/४ ४०, ४। १ ३६, ५/२/२१ एवं २४, ६।१।२९, ६।२८) । वराहमिहिर की बृहत्संहिता ( ७७/२५-३७ ) में ताम्बूल एवं इसके अन्य उपकरणों के गुणों का बखान है । कादम्बरी (३५) में राजप्रासाद की तुलना ताम्बूलिक (तमोली) के घर से की गयी है, जिसमें लवली, लवंग, इलायची, कक्कोल सं गृहीत रहते हैं । पराशरमाघवीय (१।१, पृ० ४३४ ) ने वसिष्ठ के उद्धरण द्वारा बताया है कि किस प्रकार ताम्बूल की दोनों नोकों को काटकर खाया जाता है । चतुर्वर्गचिन्तामणि ( जिल्द २, भाग १, पृ० २४२ ) के व्रतखण्ड में हेमाद्रि ने रत्नकोष का उद्धरण देकर समझाया है कि ताम्बूल का अर्थ है ताम्बूल का पत्र एवं चूना तथा मुखवास का तात्पर्य है इलायची, कर्पूर, कक्कोल, चोप्र एवं मातुलुंग के टुकड़ों का एक साथ प्रयोग । नित्याचारपद्धति (१०५४९) में ताम्बूल के नौ उपकरणों का वर्णन है, यथा-सुपारी, ताम्बूल पत्र, चूना, कर्पूर, इलायची, लवंग, कक्कोल, चोप्र, मातुलुंग फल । " आधुनिक काल में बादाम के टुकड़े, जातीफल एवं उसकी छाल, कुंकुम, खदिरसार लिया जाता है, किन्तु मातुलुंग छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार ताम्बूल के १३ उपकरण हैं। आजकल ताम्बूल के १३ गुण (या तो १३ उपकरणों के कारण या अन्य गुणों के कारण ) विख्यात हैं।
कुछ लोगों के मत से प्रदक्षिणा (दाहिनी ओर से मूर्ति के चतुर्दिक् जाना) एवं नमस्कार केवल एक उपचार कहे जाते हैं। नमस्कार या तो अष्टांग (आठ अंगों के साथ) होता है या पंचांग (पांच अंगों के साथ) होता है। अष्टांग में व्यक्ति पृथिवी पर इस प्रकार पड़ जाता है कि हथेलियाँ, पैर, घुटने, छाती, मस्तक पृथिवी को स्पर्श करते हैं, मन, वाणी एवं आँखें मूर्ति की ओर लगी रहती हैं तथा पंचांग में हाथों, पैरों एवं सिर के बल पृथिवी पर पड़ जाना होता है।
आजकल सूर्य के लिए १२ नमस्कार या १२ के कई गुने नमस्कार प्रचलित हैं। सूर्य को १२ नामों से नमस्कार होता है, जो ये हैं- मित्र, रवि, सूर्य, भानु, खग, पूषा, हिरण्यगर्भ, मरीचि, आदित्य, सविता, अर्क एवं भास्कर । पूजाप्रकाश ( पृ० १६६-१८८) ने ३२ अपराध गिनाये हैं, जिनसे पूजा के समय दूर रहना चाहिए। वराहपुराण (१३०१५ ) ने भी इन ३२ अपराधों की चर्चा की है।
२०. स प्रातरस्थाय कृतनियतकृत्यो गृहीतवन्तधावनः... दृष्ट्वाबों मुखं गृहीतमुखवासताम्बूलः कार्यान्यनुतिष्ठेत् । कामसूत्र १।४।१६
२१. मुकाविश्रयं गन्धकर्पूरमेलका तथा । लवंगं चैव कनकोल नारिकेलं सुपक्वकम्। मातुलुंगं तथा पक्वं ताम्बूलांगान्यमूनि वै ॥ इति नवांगताम्बूलं प्रधानतया दद्यात् । नित्याचारपद्धति, पृ० ५४९ ।
२२. ताम्बूलं कटुतिक्तमुष्णमधुरं क्षारं कषायान्वितं वातघ्नं कफनाशनं कृमिहरं दुर्गन्धिविध्वंसकम् । वक्त्रस्याभरणं विशुद्धिकरणं कामाग्निसंदीपनं ताम्बूलस्य सखे त्रयोदश गुणाः स्वर्गेपि ते दुर्लभाः ॥ सुभाषित ।
धर्म० ५१
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