SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 423
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास के साथ उसका एक एक मन्त्र कहना चाहिए। स्त्रियों एवं शूद्रों को केवल " शिवाय नमः” या “विष्णवे नमः" कहना चाहिए | वृद्धहारीत ( ११।८१ ) के मत से स्त्रियों को बाल कृष्ण तथा विधवाओं को हरि की पूजा (१०१२०८) करनी चाहिए। स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत एवं नैवेद्य में प्रत्येक के उपरान्त आचमन होना चाहिए (नरसिंहपुराण ६२।१४ ) । कुछ उपचारों के नाम आश्वलायनगृह्यसूत्र (४/७/१० एवं ४।८।१ ) में भी श्राद्ध के समय आमन्त्रित ब्राह्मणों की पूजा में प्रयुक्त हुए हैं, यथा--स्नान, अर्द्ध, गन्ध, माल्य (पुष्प), धूप, दीप एवं आच्छादन (वस्त्र) । देवपूजा एवं पितृ कृत्य के लिए जल उसी दिन का लाया हुआ होना चाहिए ( विष्णुधर्मसूत्र ६६ । १ ) । पूजा करनेवाले को बाँस या प्रस्तर, यज्ञ काम में न आनेवाले काष्ठ, खाली पृथिवी, घास से बने या हरी घास से निर्मित आसन पर नहीं बैठना चाहिए, बल्कि उसे कम्बल, रेशम के वस्त्र या मृगचर्म पर बैठना चाहिए (पूजाप्रकाश, पृ० ९५) । अध्यं में निम्नलिखित आठ या जितनी सम्भव हो सकें, सामग्रियाँ डालनी चाहिए - दही, धान, कुश के ऊपरी भाग, दूध, दूर्वा, मधु, व एवं सफेद सरसों (मत्स्यपुराण २६७।२, पूजाप्रकाश, पृ० ३४ में उद्धृत) । यह भी कहा गया है कि विष्णु को अर्ध्य देने के लिए शंख में जल के साथ चन्दन, पुष्प एवं अक्षत होने चाहिए । आचमन के जल में इलायची, लवंग, उशीर (खस) तथा जितना सम्भव हो उतना कक्कोल मिला देना चाहिए। मूर्ति के स्नान के लिए पञ्चामृत (दूध, दही, घृत, मधु एवं शक्कर) होना चाहिए। इनमें सबका प्रयोग क्रम से होना चाहिए और शक्कर अन्त में पड़नी चाहिए, जिससे कि घृत आदि से उत्पन्न मसृण अंश समाप्त हो जाय। इसके उपरान्त पवित्र जल से स्नान होता है | पंचामृत स्नान में पांच मन्त्र कहे जाते हैं, यथा ऋग्वेद १।९१/१६, ४१३९/६, २/३/११, ११९०२६, ९८५२६ । किन्तु चित्र एवं मिट्टी की मूर्ति को स्नान नहीं कराया जाता । यदि स्नान के लिए अन्य पदार्थ न हों तो विष्णु को उनकी प्रिय तुलसी की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करा देना चाहिए। मूर्ति के स्नान वाला जल बड़ा पवित्र माना जाता है, पूजा करने वाला, कुटुम्ब के लोग, मित्र-गण उसका आचमन करते हैं और उस जल को तीर्थ कहा जाता है। लोग इसे अपने सिर पर भी छिड़कते हैं । अनुलेप या गन्ध के विषय में बहुत से नियम बने हैं। अनुलेप का निर्माण चन्दन, देवदारु, कस्तूरी, कर्पूर, कुंकुम एवं जातिफल ( या जातीफल) से होता है। आभूषण के लिए सच्चा सोना या बहुमूल्य रत्न होने चाहिए, नकली नहीं ( विष्णुधर्मसूत्र ६६।२, ६६।४) । पुष्पों के विषय में बड़े लम्बे नियम बने हैं। पूजाप्रकाश ( पृ० ४२ । ४९ ) ने विष्णुपूजा में तुलसी की बड़ी महिमा गायी है। इसकी पत्तियाँ पुष्प के अभाव में प्रयुक्त होती हैं । पुष्प-सम्बन्धी नियमों को हम स्थानाभाव के कारण छोड़ रहे हैं। पूजा के दिन जो पुष्प चढ़ाये जाते हैं, उन्हें दूसरे दिन पूजा के समय उठा लिया जाता है और उन्हें निर्माल्य कहा जाता है; उनका बड़ा महत्त्व माना जाता है और उन्हें सिर पर चढ़ाया जाता है। शिव पूजा में क्रम से ये पुष्प अच्छे कहे जाते हैं, यथा -- अर्क, करवीर, बिल्वपत्र, द्रोण, अपामार्ग-पत्र, कुश-पुष्प, शमीपत्र, नील कमलदल, धतूर पुष्प, शमी-पुष्प, नील कमल । नील कमल को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। पुष्पाभावे फल, फलाभावे पत्र, या केवल अक्षत या केवल जल प्रयोग में लाना चाहिए। बीप में घृत होना चाहिए किन्तु घृताभावे सरसों का तेल दिया जा सकता है। मूर्ति के समक्ष कर्पूर जलाना चाहिए। एक प्रथा है आरात्रिक (आरती) की ( मूर्ति के चतुर्दिक् दीप घुमाने की क्रिया)। आरती का कृत्य एक थाल में दीप या कर्पूर के टुकड़े जलाकर मूर्ति के चतुर्दिक् तथा सिर पर घुमाकर सम्पादित होता है। नैवेद्य में वर्जित भोजन नहीं होना चाहिए और न बकरी या भैंस का दूध होना चाहिए (यद्यपि हमारे लिए इसका उपयोग वर्जित नहीं है); इसी प्रकार पाँच नखों वाले पशुओं, मछली तथा सूअर का मांस भी वर्जित है । सामान्य नियम है - "जो भोजन व्यक्ति करता है वही देवताओं को भी देना चाहिए (अयोध्याकाण्ड १०३।३० ) । नैवेद्य सोने, चाँदी, काँसे, ताम्र या मिट्टी के पात्र, पलाश-पत्र या कमलदल में देना चाहिए। ब्रह्मपुराण (अपरार्क, पृ० १५३।१५४ एवं पूजाप्रकाश, पृ० ८२ में उद्धृत) के मत से ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, देवी, मातृका, भूत, प्रेत, पिशाच को दिया गया नैवेद्य ब्राह्मणों, सात्वतों (भागवतों), भस्म लगानेवालों, मगों, ४०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy