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________________ अध्याय १६ वेश्या इस ग्रन्थ में जब स्त्रियों के विषय में तथा विवाह आदि संस्कारों के विषय में पर्याप्त विस्तार किया गया है, तो संक्षेप में वेश्या के जीवन पर भी प्रकाश डालना परमावश्यक है । वेश्यावृत्ति का इतिहास अति प्राचीन है और यह प्रायः संसार के सभी भागों में प्रचलित रही है। ऋग्वेद से प्रकट है कि उस काल में कुछ ऐसी भी नारियाँ थीं, जो सभी की थीं, और वे थीं वेश्या या गणिका । ऋग्वेद (१।१६७।४) में मरुत्-गण ( अन्घड़ के देवता) विद्युत् के साथ उसी प्रकार संयुक्त माने गये हैं, जिस प्रकार युवती वेश्या से पुरुष लोग संयुक्त होते हैं।' ऋग्वेद (२।२९।१ ) के एक संकेत से अभिव्यक्त होता है कि उस समय भी ऐसी नारियाँ थीं जो गुप्त रूप से बच्चा जनकर उसे मार्ग के एक ओर रख देती थीं । ऋग्वेद ( १६६४, १ ११७ १८ १।१३४।३ आदि) में कई स्थानों पर जार (गुप्त प्रेमी) का उल्लेख हुआ है । गौतम ( २२/२७ ) के अनुसार ब्राह्मणी वेश्या को मारने पर प्रायश्चित्त की कोई आवश्यकता नहीं है, केवल ८ मुट्ठी अन्न दान कर देना ही पर्याप्त है । मनु (४ | २०९) ने वेश्या के हाथ का भोजन ब्राह्मण के लिए वर्जित माना है ( और देखिए ४।२१९ ) । मनु ( ८/२५९ ) ने घूर्त वेश्याओं को दण्डित करने के लिए राजा को प्रेरित किया है। महाभारत में वेश्यावृत्ति एक स्थिर संस्था के रूप में प्रचलित पायी जाती है। आदिपर्व ( ११५ । ३९) में आया है कि गान्धारी के गर्भवती रहने के कारण धृतराष्ट्र की सेवा में एक वेश्या रहती थी।' उद्योगपर्व ( ३०।३८) में आया है कि युधिष्ठिर ने कौरवों की वेश्याओं को शुभ-सन्देश भेजे थे। जब श्री कृष्ण कौरवों की सभा में शान्ति स्थापना का सन्देश लेकर आये थे तो वेश्याएँ भी उनके स्वागतार्थ आयी थीं (उद्योगपर्व ८६।१५) । जब पाण्डवों की सेना ने युद्ध के लिए कूंच किया तो गाड़ियाँ, हार्ट एवं वेश्याएँ उसके साथ चली (उद्योगपर्व १५१।५८ ) । और देखिए वनपर्व ( २३९।३७), कर्णपर्व ( ९४।२६ ) । याज्ञवल्क्य (२।२९०) ने रखैलों को दो भागों में बाँटा है' - ( १ ) अवरुद्धा (जो घर में रहती है और उसके साथ कोई अन्य व्यक्ति संभोग नहीं कर सकता ) तथा (२) भुजिष्या (जो घर में नहीं रहती, किन्तु एक व्यक्ति की रखैल के रूप में और कहीं रहती है)। यदि इनके साथ कोई अन्य व्यक्ति संभोग करे तो उसे ५० पण का दण्ड देना पड़ता था । ' नारद (स्त्रीपुंस, ७८-७९ ) का कथन है- "अब्राह्मणी स्वैरिणी, वेश्या, दासी, निष्कासिनी यदि अपनी जाति से निम्नजाति की हों तो संभोग की अनुमति है, किन्तु उच्च जाति की स्त्रियों से ऐसा व्यवहार वर्जित है । यदि ये स्त्रियाँ किसी की रखैल हों तो उनसे संभोग करने पर वही अपराध होता है जो किसी की पत्नी से करने पर होता है । इन स्त्रियों १. परा शुभ्रा अयासी यग्या साधारण्येव मरुतो मिमिक्षुः । ऋग्वेद (१।१६७।४) । २. गान्धार्या क्लिश्यमानायामुदरेण विवर्धता । धृतराष्ट्रं महाराजं वेश्या पर्यचरत्किल । आदिपर्व (११५।३९) । ३. अवरुद्धासु दासीषु भुजिष्यासु तथैव च । गम्यास्वपि पुमान्दाप्यः पञ्चाशत्पणिकं दमम् ॥ याज्ञबल्क्य ( २२९०) । धर्म० ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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