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________________ सती-प्रथा ३५४ अर्थात् माता, पिता एवं पति के कुलों को पवित्र कर देती है । मिताक्षरा ने सती प्रथा अर्थात् अवरोहण को ब्राह्मण से लेकर चाण्डाल तक की स्त्रियों के लिए समान रूप से श्रेयस्कर माना है, किन्तु उस स्त्री को, जो गर्भवती है या छोटे बच्चों वाली है, सती होने से रोक दिया है (याज्ञवल्क्य १४८६ ) । कुछ प्राचीन टीकाकारों ने सती होने का विरोध किया है। मेघातिथि ( मनु ५।१५७ ) ने इस प्रथा की तुलना श्येनयाग ( जिसके द्वारा लोग अपने शत्रु पर काला जादू करके उसे मारते थे) से की है। मेघातिथि का कहना है कि यद्यपि अंगिरा ने अनुमति दी है, किन्तु यह आत्महत्या है और स्त्रियों के लिए वर्जित है । यद्यपि वेद कहता है; " श्येनेनाभिचरन् यजेत", किन्तु इसे अर्थात् श्येनयाग को लोग अच्छी दृष्टि से नहीं देखते अर्थात् उसे धर्म नहीं मानते for अधर्म कहते हैं (जैमिनि १।१।२ पर शबरर), उसी प्रकार यद्यपि अंगिरा ने ( सती प्रथा का ) अनुमोदन किया, तथापि यह अधर्म है । अवरोहण इस वेदोक्ति के विरुद्ध है - "जब तक आयु न बीत जाय किसी को यह लोक छोड़ना नहीं चाहिए।" मिताक्षरा (याज्ञवल्क्य १।८६) ने मेधातिथि का तर्क न मानकर कहा है- " श्येनयाग वास्तव में अनुचित है अतः अधर्म है, वह इसलिए कि उसका उद्देश्य है दूसरे को कष्ट में डालना, किन्तु अनुगमन वैसा नहीं है, यहाँ प्रतिश्रुत फल है स्वर्ग प्राप्ति जो उचित कहा जाता है और जो श्रुतिसम्मत है, यथा- 'सम्पत्ति की प्राप्ति के लिए वायु hat बकरी देनी चाहिए।' इसी प्रकार अनुगमन के बारे में स्मृति श्रुति के विरुद्ध नहीं है, वहाँ उसका अर्थ है - "किसी को स्वर्गिक आनन्द के लिए अपने जीवन का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि स्वर्गिक आनन्द ब्रह्मज्ञान की तुलना कुछ नहीं है । क्योंकि स्त्री अनुगमन द्वारा स्वर्ग की इच्छा करती है, अतः वह श्रुतिवाक्य के विरोध में नहीं जाती है।" अपरार्क ( पृ० १११ ), मदनपारिजात ( पृ० १९९), पराशरमाघवीय (भाग १, पृ० ५५-५६) ने मिताक्षरा का तर्क स्वीकार किया है। स्मृतिचन्द्रिका का कहना है कि अन्वारोहण, जिसे विष्णुधर्मसूत्र ( २५।१४ ) एवं अंगिरा ने माना हैं, ब्रह्मचर्य से निकृष्ट है, क्योंकि अन्वारोहण के फल ब्रह्मचर्य के फल से हलके पड़ जाते हैं (व्यवहार, पृ० २५४)। इसके विरुद्ध अंगिरा का मत है - " पति के मर जाने पर चिता पर भस्म हो जाने से बढ़कर स्त्रियों के लिए कोई अन्य धर्म नहीं है।” शुद्धितत्त्व के अनुसार ऐसी धारणा केवल सहमरण की महत्ता की अभिव्यक्ति मात्र है । " हमने ऊपर देख लिया कि ब्राह्मणियों को केवल अन्वारोहण की अनुमति थी, अनुगमन की नहीं । सहमरण विषय में और भी नियन्त्रण हैं- "वे पत्नियाँ, जिनके बच्चे छोटे-छोटे हों, जो गर्भवती हों, जो अभी युवा न हुई हों और तु या ॥ मृते भर्तरि या नारी समारोहेद्धृताशनम् । सारुन्धतीसमाचारा स्वर्गलोके महीयते ॥ यावज्चाग्नौ मृते पत्यौ स्त्री नात्मानं प्रदाहयेत् । तावश मुच्यते सा हि स्त्रीशरीरात्कथंचन ॥ याज्ञवल्क्य ( ११८६) पर मिताक्षरा, अपरार्क, पृ० ११०, शुद्धितत्त्व, पृ० २३४ । प्रथम के वो श्लोक 'तिस्रः कोट्यो... आदि पराशर (४।३२ एवं ३३), ब्रह्मपुराण एवं गौतमीमाहात्म्य (१०।७६ एवं ७४) में भी पाये जाते हैं। ४. अयं च सर्वासां ] स्त्रीणामर्गाभणीनामबालापत्यानामाचाण्डालं साधारणो धर्मः । भर्तारं यानुगच्छतीत्यविशेषोपादानात् । मिताक्षरा (याज्ञ० १ १८६ ) ; देखिए मदनपारिजात, पृ० १८६ एवं स्मृतिमुक्ताफल ( संस्कार, पृ० १६२ ) । ५. यत्तु विष्णुना धर्मान्तरमुक्तं मृते भर्तरि ब्रह्मचर्यं तदन्वारोहणं वा तवेतद्धर्मान्तरमपि ब्रह्मचर्यधर्माज्जधन्यम् । निकृष्टफलत्वात् । स्मृतिचन्द्रिका ( व्यवहार, पृ० २५४) । सर्वासामेव नारीणामग्निप्रपतनावृते । नान्यो धर्मो हि विज्ञेयो मृते भर्तरि कर्हिचित् ॥ अंगिरा ( अपरार्क द्वारा पू० १०९ में, पराशरभाघवीय द्वारा २१, पृ० ५८ में उद्धृत ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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