SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गौतम का धर्मसूत्र की टीका से पता चलता है कि गौतम सामवेद की राणायनीय शाखा के नौ उपविभागों में से एक उपविभाग के आचार्य, शाखाकार थे। सामवेद के लाट्यायनश्रौतसूत्र (१. ३. ३ तथा १. ४. १७) तथा बाह्यायण श्रौतसूत्र (१. ४. १७; ९. ३ . १५) में गौतम नामक आचार्य का वर्णन अधिकतर आया है। सामवेद के गोभिलगृह्यसूत्र (३.१०. ६) ने गौतम को प्रमाण-स्वरूप माना है । अतः प्रतीत होता है; श्रौत, गृह्य एवं धर्म के सिद्धान्तों से समन्वित एक सम्पूर्ण गौतमसूत्र था। गौतमधर्मसूत्र का सामवेद से गहरा सम्बन्ध था इसमें कोई सन्देह नहीं। गौतम एक जातिगत नाम है। कठोपनिषद् में नचिकेता (२. ४. १५; २. ५. ६) एवं उसके पिता (१. १. १०) दोनों गौतम नाम से पुकारे गये हैं। छान्दोग्योपनिषद् में हारिद्रुमत गौतम नामक एक आचार्य का नाम आया है टीकाकार हरदत्त के अनुसार गौतमधर्मसूत्र में कुल २८ अध्याय हैं। कलकत्ता वाले संस्करण में 'कमविपाक' नामक एक और अध्याय है, जो १९वें अध्याय के उपरान्त आया है । गौतमधर्मसूत्र की विषय-सूची बहुत ही संक्षेप में इस प्रकार है--(१)धर्म के उपादान, मूल वस्तुओं की व्याख्या के नियम, चारों वर्गों के उपनयन का काल, प्रत्येक वर्ण के लिए उचित मेखला (करधनी), मृगचर्म, परिधान एवं दण्ड, शौच एवं आचमन के नियम, गुरु के पास पहुंचने की विधि; (२) यज्ञोपवीत-विहीन व्यक्तियों के बारे में नियम, ब्रह्मचारी के नियम, छात्रों का नियन्त्रण, अध्ययनकाल; (३) चारों आश्रम, ब्रह्मचारी, भिक्षु एवं वैखानस के कर्तव्य ; (४) गृहस्थ के नियम, विवाह, विवाह के समय अवस्था, विवाह के आठों प्रकार, उपजातियाँ ; (५) विवाहोपरान्त संभोग के नियम, प्रतिदिन के पंचयज्ञ, दानों के फल, मधुपर्क, कतिपय जातियों के अतिथियों के सम्मान करने की विधि; (६) माता-पिता, नातेदारों (स्त्री एवं पुरुष) एवं गुरुओं को सम्मान देने के नियम, मार्ग के नियम; (७) ब्राह्मण की वृत्तियों के बारे में नियम, विपत्ति में उसकी वृत्तियाँ, वे वस्तुएँ जिन्हें न तो ब्राह्मण बेच सकता न क्रय कर सकता था; (८)-४० संस्कार तथा ८ आध्यात्मिक गुण (यथा दया, क्षमा आदि); (९)स्नातक तथा गृहस्थ के आचरण; (१०) चार जातियों के विलक्षण कर्तव्य, राजा के उत्तरदायित्व, कर, स्वामित्व के उपादान, कोष-सम्पत्ति, नाबालिग के धन की अभिभावकता; (११) राजधर्म, राजा के पुरोहित के गुण; (१२) अपमान, गाली, आक्रमण, चोट, बलात्कार, कई जातियों के लोगों की चोरी के लिए दण्ड, ऋण देने, सूदखोरी, विपरीत सम्प्राप्ति, दण्ड के विषय में ब्राह्मणों के विशेषाधिकार, ऋण का भुगतान, जमा; (१३) साक्षियों के विषय में नियम, मिथ्याचार का प्रतिकार; (१४) जन्म-मरण के समय अपवित्रता (अशौच) के नियम; (१५) पांचों प्रकार के श्राद्ध, श्राद्ध के समय न बुलाये जाने योग्य व्यक्ति; (१६) उपाकर्म, वर्ष में वेदाध्ययन का काल, उसके लिए छुट्टियाँ एवं अवसर; (१७) ब्राह्मण तथा अन्य जातियों के भोजन के विषय में नियम ; (१८) नारियों के कर्तव्य. नियोग एवं इसकी दशाएँ, नियोग से उत्पन्न पुत्र के बारे में चर्चा; (१९) प्रायश्चित्त के कारण एवं अवसर, पापमोचन की पांच बातें (जप, तप, होम, उपवास एवं दान), पवित्र करने के लिए वैदिक मन्त्र, जप करनेवाले के लिए पूत भोजन, तप एवं दान के विभिन्न प्रकार, जप के लिए उचित स्थान, काल आदि; (२०) प्रायश्चित्त न करनेवाले व्यक्ति का परित्याग एवं उसके लिए नियम; (२१) पापियों की श्रेणियां, महापातक, उपपातक आदि; (२२) ब्रह्महत्या, बलात्कार, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, गाय या किसी अन्य पशु की हत्या से उत्पन्न पापों के लिए प्रायश्चित्त; (२३) मदिरा तथा अन्य बुरी वस्तुओं के पान, व्यभिचार, अस्वाभाविक अपराधों तथा ब्रह्मचारी द्वारा किये गये बहुत प्रकार के उल्लंघनों के लिए प्रायश्चित्त; (२४-२५) महापातक एवं उपपातक के लिए गुप्त प्रायश्चित्त; (२६) कृच्छ एवं अतिकृच्छ नामक व्रत; (२७) चान्द्रायण नामक व्रत, सम्पत्ति-विभाजन, स्त्रीधन, पुनःसन्धि, द्वादश प्रकार के पुत्र, वसीयत । गौतमधर्मसूत्र केवल गम में है। इसमें उद्धरण रूप में भी कोई पद्य नहीं मिलता। अन्य धर्मसूत्रों में ऐसी Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy