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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास विषय-वस्तुओं एवं प्रकरणों में धर्मसूत्रों का गृह्यसूत्रों से गहरा सम्बन्ध है। अधिकतर गृह्यसूत्रों के विषय हैं--पूत गृहाग्नि, गृहयज्ञ - विभाजन, प्रातः सायं की उपासना, अमावस्या और पूर्णमासी की उपासना, पके भोजन का हवन, वार्षिक यज्ञ, विवाह, पुंसवन, जातकर्म, उपनयन एवं अन्य संस्कार, छात्रों, स्नातकों एवं छुट्टियों के नियम, श्राद्ध कर्म, मधुपर्क । गृह्यसूत्रों का सम्बन्ध अधिकांश घरेलू जीवन की चर्याओं से है, वे मनुष्य के आचारों, अधिकारों, कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों की ओर बहुत ही कम ध्यान देते हैं, अर्थात् इन बातों के नियमों से उनका सम्बन्ध न-कुछ-सा है। इसी प्रकार धर्मसूत्रों में भी उपर्युक्त कुछ विषय-वस्तुओं या प्रकरणों के विषय में नियम पाये जाते हैं, यथा विवाह, संस्कारों, विद्यार्थियों, स्नातकों, छुट्टियों, श्राद्ध एवं मधुपर्क के विषय में । धर्मसूत्रों में गृह्यजीवन के क्रिया - संस्कारों के विषय में चर्चा कभी ही कभी पायी जाती है, और वह भी बहुत कम, क्योंकि उनकी विषय-परिधि बहुत विस्तृत होती है। धर्मसूत्रों का मुख्य ध्येय है आचार विधि-नियम (कानून) एवं क्रिया-संस्कारों की विधिवत् चर्चा करना । आपस्तम्ब गृह्य एवं धर्म के बहुत-से सूत्र एक ही हैं। " कभी-कभी गृह्य-सूत्र धर्मसूत्र की ओर निर्देश भी कर बैठते हैं। " कुछ ऐसे लक्षण भी हैं जिनके द्वारा धर्मसूत्रों (अधिकतर प्राचीन धर्मसूत्रों) एवं स्मृतियों में आन्तरिक भेद भी उपस्थित किया जा सकता है, और वे लक्षण निम्न हैं--- (क) बहुत से धर्मसूत्र या तो प्रत्येक चरण के कल्प के भाग हैं या गृह्यसूत्रों से गहरे रूप से सम्बन्धित हैं । (ख) धर्मसूत्र कभी-कभी अपने चरण तथा अपने वेद के उद्धरण के प्रति पक्षपात प्रदर्शित करते हैं । (ग) प्राचीन धर्मसूत्रों के प्रणेता गण अपने को ऋषि या अति मानव नहीं कहते, " किन्तु स्मृतियों के लेखक, यथा मनु एवं याज्ञवल्क्य, ब्रह्मा ऐसे देवताओं के समकक्ष ला दिये गये हैं, अर्थात् इनके लेखक मानव नहीं कहे जाते, वे अतिमानव हैं। (घ) धर्मसूत्र गद्य में या मिश्रित गद्यपद्य में हैं, किन्तु स्मृतियाँ पद्यबद्ध हैं। (ङ) धर्मसूत्रों की भाषा स्मृतियों की भाषा की अपेक्षा अधिक प्राचीन है । (च) धर्मसूत्रों की विषय-वस्तु एक तारतम्य से व्यवस्थित नहीं है, किन्तु स्मृतियों (यहाँ तक कि प्राचीनतम स्मृति मनुस्मृति) में ऐसी अव्यवस्था नहीं पायी जाती है, प्रत्युत इनकी विषय-वस्तु तीन प्रमुख शीर्षकों में है, यथा आचार, व्यवहार एवं प्रायश्चित्त । (छ) अधिकतम धर्मसूत्र अधिकतम स्मृतियों से प्राचीन हैं। ५. गौतम का धर्मसूत्र विद्यमान धर्मसूत्रों में गौतमधर्मसूत्र सबसे पुराना है ।" इसे विशेषतः सामवेद के अनुयायी पढ़ते थे । चरणव्यूह १० ५६. यथा, पालाशी दण्डो ब्राह्मणस्य.... इत्यवर्णसंयोगेनैक उपविशन्ति । आप० गु०, ४.१७, १५, १६ तथा आप० भ० १.१.२.३८ । ५७. यथा, आप० गु० (८.२१.१ ) में आया है— 'मासि श्राद्धस्यापरपक्षे यथोपदेशं काला : ' जिसका निर्देश है आप० ध० सू० (२.७. १६. ४-२२) की ओर । ५८. तुलना कीजिए-गौ० प० १. ३-४ तथा आप० ष० सू० १.२.५.४ ' तस्मावृषयोऽवरेषु न जायन्ते नियमातिक्रमात् ' तथा आप० ४० सू० २.६. १३.९ 'तवन्वीक्ष्य प्रयुञ्जानः सोबत्यवरः । ' ५९. गौतमधर्मसूत्र का प्रकाशन कई बार हुआ है, यथा डा० स्टेपलर का संस्करण (१८७६), कलकता संस्करण (१८७६), में आनन्दाश्रम संस्करण, जिसको हरदत्त को टोका है तथा मैसूर संस्करण, जिसमें मस्करी का भी है, जिसका अंग्रेजी अनुवाद बुहलर ने भूमिका के साथ किया है (क्रेड बुक आफ दि ईस्ट, जिल्द २) । इस ग्रन्थ में आनन्दाश्रम का सन् १९१० वाला संस्करण काम में लाया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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